Wednesday 7 October 2020

मुहम्मदुर रसूलिल्लाह


मुहम्मदुर रसूलिल्लाह        
(मुहम्मद ईश्वर के दूत हैं)  

मुहम्मद की फ़ितरत का अंदाज़ा क़ुरआनी आयतें निचोड़ कर निकाला जा सकता है कि वह किस क़द्र ज़ालिम ही नहीं कितने मूज़ी तअबा शख़्स थे. 
क़ुरआनी आयतें जो ख़ुद मुहम्मद ने वास्ते तिलावत बिल ख़ुसूस महफ़ूज़ कर दीं, इस एलान के साथ कि ये बरकत का सबब होंगी न कि इसे समझा जाए. 
अगर कोई समझने की कोशिश भी करता है तो उनका अल्लाह रोकता है 
कि ऐसी आयतें मुशतबह मुराद (संदिग्ध) हैं. 
जिनका सही मतलब अल्लाह ही बेहतर जानता है. 
इसके बाद जो अदना (सरल) आयतें हैं और साफ़ साफ़ हैं 
वह अल्लाह के किरदार को बहुत ही ज़ालिम, जाबिर, 
बे रहम, मुन्तक़िम और चालबाज़ साबित करती है. 
अल्लाह इन अलामतों का ख़ुद एलान करता है कि अगर 
''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' (मुहम्मद ईश्वर के दूत हैं) को मानने वाले न हुए तो 
अल्लाह इतना ज़ालिम और इतना क्रूर है कि इंसानी खालें जला जला कर उनको नई करता रहेगा, इंसान चीख़ता चिल्लाता रहेगा और तड़पता रहेगा मगर उसको मुआफ़ करने का उसके यहाँ कोई जवाज़ नहीं है, कोई सुनवाई नहीं है. 
मज़े की बात ये कि दोबारा उसे मौत भी नहीं है कि 
मरने के बाद नजात की कोई सूरत हो सके, 
उफ़! इतना ज़ालिम है मुहमदी अल्लाह? 
सिर्फ़ इस ज़रा सी बात पर कि उसने इस ज़िन्दगी में 
''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' क्यूं नहीं कहा. 
हज़ार नेकियाँ करे इंसान, 
क़ुरआन गवाह है कि सब हवा में ख़ाक की तरह उड़ जाएँगी, 
अगर बन्दे ने ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' नहीं कहा, 
क्यों कि हर अमल से पहले ईमान शर्त है 
और ईमान है ''मुहम्मदुर रसूल्लिल्लाह'' . 
इस क़ुरआन का ख़ालिक़ कौन है जिसको मुसलमान सरों पर रखते हैं ? 
मुसलमान अपनी नादानी और नादारी में यक़ीन करता है कि 
उसके अल्लाह की मर्ज़ी है, जैसा रख्खे. 
वह जिस दिन बेदार होकर क़ुरआन को ख़ुद पढ़ेगा तब समझेगा 
कि इसका ख़ालिक़ तो दग़ाबाज़ ख़ुद साख़्ता अल्लाह का बना हुवा रसूल मुहम्मद है. 
उस वक़्त मुसलमानों की दुन्या रौशन हो जाएगी.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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