Friday 2 October 2020

मोमिन का ईमान

मोमिन का ईमान   
       
मोमिन और ईमान, लफ़्ज़ों और इनके मअनों को चुरा कर 
इस्लाम ने इनकी मिटटी पिलीद कर दी है. 
यूँ कहा जाए तो ग़लत न होगा कि इस्लाम ने मोमिन के साथ 
अक़दे-बिल जब्र (जबरन निकाह) कर लिया है 
और अपनी जाने जिगर बतला रहा है, 
जब कि ईमान से इस्लाम कोसों दूर है, 
दोनों का कोई आपस में तअल्लुक़ नहीं है, 
बल्कि बैर है. 
मोमिन की सच्चाई नीचे दर्ज है - -
1- फ़ितरी (प्रकृतिक) सच ही ईमान है. ग़ैर  फ़ितरी बातें बे ईमानी हैं-- 
जैसे हनुमान का पवन सुत या मुहम्मद की सवारी बुर्राक़ का हवा में उड़ना.
2- जो मुम्किनात में से है वह ईमान है. 
''शक़्क़ुल क़मर '' 
मुहम्मद ने उँगली के इशारे से चाँद के दो टुकड़े कर दिए, उनका सफ़ेद झूट है.
3-जो स्वयं सिद्ध हो वह ईमान है. जैसे त्रिभुज के तीन कोनो का योग एक सीधी रेखा. 
या इंद्र धनुष के सात रंगों का रंग बेरंग यानी सफ़ेद.
4- जैसे फूल की अनदेखी शक्ल ख़ुशबू, बदबू का अनदेखा रूप दुर्गन्ध.
5- जैसे जान लेवा जिन्स ए मुख़ालिफ़ में इश्क़ की लज्ज़त.
6- जैसे जान छिड़कने पर आमादा ख़ून ए मादरी व ख़ूने पिदरी.
7- जैसे सच और झूट का अंजाम.
ऐसे बेशुमार इंसानी अमल और जज़्बे हैं जो उसके लिए ईमान का दर्जा रखते हैं. 
मसलन - - - क़र्ज़ चुकाना, 
सुलूक का बदला, 
अहसान न भूलना, 
अमानत में ख़यानत न करना, 
वग़ैरह वग़ैरह. 
मुस्लिम का इस्लाम 
1- कोई भी आदमी 
(चोर, डाकू, ख़ूनी, दग़ाबाज़ मुहम्मद का साथी मुग़ीरा* से लेकर गाँधी कपूत हरी गाँधी उर्फ़ अब्दुल्लाह तक) 
नहा धो कर कलमन (कलिमा पढ़ के) मुस्लिम हो सकता है.
2- कलिमा के बोल हैं ''लाइलाहा इललिल्लाह मुहम्मदुर रसूलिल्लाह'' 
जिसके मानी हैं अल्लाह के सिवा कोई अल्लाह नहीं है और मुहम्मद उसके दूत हैं.
सवाल उठता है हज़ारों सालों से इस सभ्य समाज में अल्लाह और ईशवरों की कल्पनाएँ मात्र उभरी हैं 
मगर आज तक कोई अल्लाह किसी के सामने आने की हिम्मत नहीं कर पा रहा. 
जब अल्लाह साबित नहीं हो पाया तो उसके दूत क्या हैसियत रखते हैं? 
सिवाय इसके कि सब के सब ढोंगी हैं.
3- कलिमा पढ़ लेने के बाद अपनी बुद्धि मुहम्मद के हवाले करो, 
जो कहते हैं कि मैं ने पल भर में सातों आसमानों की सैर की 
और अल्लाह से ग़ुफ़तुगू करके ज़मीन पर वापस आया 
कि दरवाज़े की कुण्डी तक हिल रही थी.
4- मुस्लिम का इस्लाम कहता है यह दुनिया कोई मानी नहीं रखती, 
असली लाफ़ानी ज़िन्दगी तो ऊपर है, 
यहाँ तो इंसान ट्रायल पर इबादत करने के लिए आया है. 
मुसलमानों का यही अक़ीदा क़ौम के लिए पिछड़े पन का सबब है और हमेशा बना रहेगा.
5- मुसलमान कभी लेन देन में सच्चा और ईमान दार हो नहीं सकता क्यूंकि उसका ईमान तो कुछ और ही है और वह है 
''लाइलाहा इललिल्लाह मुहम्मदुर रसूलिल्लाह'' 
इसी लिए वह हर वादे में हमेशा वह 
'' इंशाअल्लाह'' लगाता है. 
मुआमला करते वक़्त उसके दिल में उसके ईमान की खोट होती है. 
बे ईमान क़ौमें दुन्या में कभी न तरक्क़ी कर सकती हैं और न सुर्ख रू हो सकती हैं.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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