Friday 12 February 2021

क़ुरआन ला शरीफ़ (10)


क़ुरआन ला शरीफ़  (10)
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सूरह अलबक़र -2-سورتہ البقرہ   
(क़िस्त 9 ) 

मूसा की उम्मत यहूद इल्म जदीद के हर शोबे में आसमान से तारे तोड़ रही है और उम्मते मुहम्मदी आसमान पर ख़्वाबों की जन्नत और दोज़ख़ तामीर कर रही है. इसके आधे सर फ़रोश तरक़्क़ी याफ़्ता क़ौमों के छोड़े हुए हतियार से ख़ुद मुसलमानों पर निशाना साध रहे हैं और आधे सर फ़रोश इल्मी लियाक़त से दरोग़ फ़रोशी कर रहे हैं. 
मुसलमानों! 
ख़ुदा के लिए जागो, 
वक़्त की रफ़्तार के साथ ख़ुद को जोडो, बहुत पीछे हुए जा रहे हो ,
तुम ही न बचोगे तो इस्लाम का मतलब? 
यह इसलाम, यह इस्लामी अल्लाह, यह इस्लामी पयम्बर, सब एक बड़ी साज़िश हैं, काश समझ सको. इसके धंधे बाज़ सब के सब तुम्हारा इस्तेसाल (शोषण) कर रहे है. 
ये जितने बड़े रुतबे वाले, इल्म वाले, शोहरत वाले, या दौलत वाले हैं, सब के सब कल्बे स्याह, बे ज़मीर, दरोग़ गो और सरापा झूट हैं. 
इसलाम तस्लीम शुदा गुलामी है, इस से नजात हासिल करने की हिम्मत जुटाओ, ईमान जीने की आज़ादी है, इसे समझो और मुस्लिम नहीं,मोमिम बनो. 
"अल्लाह के राह में क़त्ताल करो" 
क़ुरआन का यही एक जुमला तमाम इंसानियत के लिए चैलेंज है, 
जिसे कि तालिबान नंगे हथियार लेकर दुन्या के सामने खड़े हुए हैं. 
अल्लाह की राह क्या है? 
इसे कलिमा ए शहादत
"लाइलाहा इललिललाह, मुहम्मदुररसूल लिललाह" 
यानी 
(एक आल्लाह के सिवा कोई अल्लाह आराध्य नहीं और मुहम्मद उसके दूत हैं) 
को आंख बंद करके पढ़ लीजिए और उसकी राह पर निकल पड़िए. 
या जानना चाहते हैं तो किसी मदरसे के तालिब इल्म (छात्र) से अधूरी जानकारी और वहां के मौलाना से पूरी पूरी जानकारी ले लीजिए.
जो लड़के उनके हवाले होते हैं उनको खुफ़िया तअलीम  दी जाती है. 
मौलाना रहनुमाई करते हैं और क़ुरआन  और हदीसें इनको मंजिल तक पहंचा देते हैं. 
मगर ज़रा रुकिए, ये सभी इन्तेहाई दर्जे धूर्त और दुष्ट लोग होते है, 
आप का हिन्दू नाम सुनते ही सेकुलर पाठ खोल देंगे, 
फ़िलहाल हम जैसे ग़ैर जानिब दार पर ही भरोसा कर सकते हैं. 
हम जैसे सच्चों को इस्लाम मुनाफ़िक़ कहता है 
क्यूंकि चेतना और ज़मीर को कलिमा पहले ही खा लेता है. 
जी हाँ ! 
यही कलिमा इंसान को इंसान से मुसलमान बनाता है जो सिर्फ़ एक क़त्ल नहीं क़त्ल का बहु वचन क़त्ताल, सैकडों, हज़ारों क़त्ल करने का फ़रमान जारी करता है. यह फ़रमान किसी और का नहीं अल्लाह में बैठे मुहम्मदुररसूल अल्लाह का होता है. 
अल्लाह तो अपने बन्दों का रोयाँ भी दुखाना नहीं चाहता होगा, 
अगर वह होगा तो बाप की तरह  ही होगा. 

आयत न २४४ के तहत मुहम्मद फिर एक बार मुसलमानों को भड़का रहे हैं कि अल्लाह को मंज़ूर है कि हम काफ़िर का क़त्ताल क रें . 
"अल्लाह जिंदा है, संभालने वाला है, न उसको ऊंघ दबा सकती है न नींद, इसी की ममलूक है सब जो आसमानों में हैं और जो कुछ ज़मीन में है- - - -इसकी मालूमात में से किसी चीज़ को अपने अहाता ए इल्मी में नहीं ला सकते, मगर जिस क़दर वह चाहे इस की कुर्सी ने सब आसमानों और ज़मीन को अपने अंदर ले रखा है,और अल्लाह को इन दोनों की हिफ़ाज़त कुछ गराँ नहीं गुज़रती और वह आली शान और अज़ीमुश्शान है" 
सूरह अलबक़र -2-आयत (255)
मुहम्मद साहब को पता नहीं क्यूँ ये बतलाने की ज़रुरत पड़ गई कि अल्लाह मियां मुर्दा नहीं हैं, 
उन में जान है. और वह बन्दों की तरह  ला परवाह भी नहीं हैं, जिम्मेदार हैं. 
अफ़ीम नहीं खाते या कोई और नशा नहीं करते कि ऊंघते हों, या अंटा ग़फ़ील हो जाएँ, 
सब कुछ संभाले हुए हैं, ये बात अलग है की सूखा, बाढ़, क़हत, ज़लज़ला, तो लाना ही पड़ता है. 
अजब ज़ौक़ के मख़लूक़ हैं, 
जो भी हो अहेद के पक्के हैं. 
दोज़ख़ के साथ किए हुए मुआहिदा को जान लगा कर निभाते, 
उस ग़रीब का पेट जो भरना है. 
सब से पहले उसका मुंह चीरा है, बाक़ी का बाद में - - - 
चालू क़समें जिनको खा लेने पर अल्लाह मुआफ़ करता है, खा कर कहते हैं,
" दीन में ज़बरदस्ती नहीं." 
क़ुरआन  में तज़ाद ((विरोधाभास) का यह सब से बड़ा निशान है. 
दीन ए इस्लाम में तो इतनी ज़बरदस्ती है कि इसे मानो या जज़िया दो या गुलामी क़ुबूल करो 
या तो फिर इस के मुंकिर होकर जान गंवाओ. 
"दीन में ज़बरदस्ती नहीं."
ये बात उस वक़्त कही गई थी जब मुहम्मद की मक्का के क़ुरैश से कोर दबती थी. 
जैसे आज भारत में मुसलमानों की कोर दब रही है, वर्ना इस्लाम का असली रूप तो तालिबानी ही है. 
सूरह अलबक़र -2-आयत (256)
दीन की बातें छोड़ कर मुहम्म्द्द फिर क़िस्सा गोई पर आ जाते हैं. 
अल्लाह से एक क़िस्सा गढ़वाते है, क़िस्सा को पढ़ कर आप हैरान होंगे कि क़िस्सा गो मकानों को उनकी छतों पर गिरवाता है. 
कहानी पढ़िये, कहानी पर नहीं, कहानी कार पर मुकुराइए और उन नमाज़ियों पर आठ आठ आंसू बहाइए जो इसको अनजाने में अपनी नमाज़ों इसे में दोहरात्ते हैं. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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