Tuesday 9 February 2021

क़ुरआन ए ला शरीफ़

क़ुरआन ए ला शरीफ़

 सूरह अलबक़र -2-سورتہ البقرہ   
(क़िस्त 6 ) 
"आप से लोग चांदों के हालत के बारे में तहकीक करते हैं, आप फ़रमा दीजिए कि वह एक आला ऐ शिनाख्त अवकात हैं लोगों के लिए और हज के लिए. 
और इस में कोई फ़ज़िलत नहीं कि घरों में उस कि पुश्त की तरफ़ से आया करो. हाँ! लेकिन फ़ज़िलत ये है कि घरों में उन के दरवाजों से आओ." 
सूरह अलबक़र -2-आयत (189)
मुहम्मद या उनके अल्लाह की मालूमात आम्मा  और भौगोलिक ज्ञान मुलाहिज़ा हो, 
महीने के तीसों दिन निकलने वाले चाँद को अलग अलग तीस चाँद (चांदों) समझ रहे हैं.
 मुहम्मद तो ख़ैर उम्मी थे मगर इन के फटीचर अल्लाह की पोल तो खुल ही जाती है जिस के पास मुब्लिग़ तीस अदद चाँद हर साइज़ के हैं जिसको वह तारीख़ के हिसाब से झलकाता है.
ओलीमा अल्लाह की ऐसी जिहालत को नाजायज़ हमल की तरह  छुपाते हैं. 
अल्लाह कहता है किसी के घर जाओ तो आगे के दरवाज़े से, 
भला पिछवाड़े से जाने की किसको ज़रूरत पड़ सकती है ? 
मुहम्मद साहब बिला वजेह की बात करते हैं. 
कुछ लोगों के लिए पिछवाड़े का दरवाज़ा मख़सूस होता है.

"और तुम लड़ो अल्लाह की राह में उन लोगों के साथ जो तुम लोगों से लड़ने लगें, और हद से न निकलो, वाक़ई अल्लाह हद से निकलने वालों को पसंद नहीं करता और उनको क़त्ल कर दो जहाँ उनको पाओ और उनको निकाल बाहर करदो, जहाँ से उन्हों ने निकलने पर तुम्हें मजबूर किया था. और शरारत क़त्ल से भी सख़्त तर है - - - फिर अगर वह लोग बाज़ आ जाएँ तो अल्लाह तअला बख़्श देंगे और मेहरबानी फ़रमाएंगे और उन लोगों के साथ इस हद तक लड़ो कि फ़साद-अक़ीदत न रहे और दिन अल्लाह का हो जाए." 
सूरह अलबक़र -2-आयत (190-92) 

मुहम्मद को कुछ ताक़त मिली है, वह मुहतात रवि के साथ इंतेक़ाम पर उतारू हो गए हैं 
"शरारत क़त्ल से सख़्त तर है" 
अल्लाह नबी से छींकने पर नाक काट लो जैसा फ़रमान जारी करा रहा है. 
जैसे को तैसा, अल्लाह कहता है - - - 

"सो जो तुम पर ज़्यादती करे तो तुम भी उस पर ज़्यादती करो जैसा उस ने तुम पर की है" 
सूरह अलबक़र -2-आयत (194) 
क्या ये इंसानी अज़मतें हो सकती हैं? 
ये कोई धर्म हो सकता है? 
ओलिमा डींगें मारा करते हैं कि इसलाम सब्रो इस्तेक़लाल का पैग़ाम देता है और मुहम्मद अमन के पैकर हैं मगर मुहम्मद इब्ने मरियम के उल्टे ही हैं. 

"और जब हज में जाया करो तो ख़र्च ज़रूर ले लिया करो क्यों की सब से बड़ी बात ख़र्च में बचे रहना. और ऐ अक़्ल  वालो! मुझ से डरते रहो. तुम को इस में ज़रा गुनाह नहीं कि हज में मुआश की तलाश करो- - -" 
सूरह अलबक़र -2-आयत (198)
अल्लाह कहता है अक़्ल वालो मुझ से डरते रहो, 
ये बात अजीब है कि अल्लाह अक़्ल वालों को ख़ास कर क्यूँ  डराता है? 
बेवक़ूफ़ तो वैसे भी अल्लाह, शैतान, भूत, जिन्न, परेत, से डरते रहते हैं 
मगर अहले होश से अकसर अल्लाह डर के भागता है क्यों कि ये मतलाशी होते है सदाक़त के. 

"सूरह में हज के तौर तरीकों का एक तवील सिलसिला है, जिसको मुसलमान निज़ाम हयात कहता है."

हज 
हज जैसे ज़ेह्नी तफ़रीह में कोई तख़रीबी पहलू नज़र नहीं आता, 
सिवाय इसके कि ये मुहम्मद का अपनी क़ौम के लिए एक मुआशी ख़्वाब था. 
आज समाज में हज, हैसियत की नुमाइश एक फैशन भी बना हुवा है. 
दरमियाना तबक़ा अपनी बचत पूंजी इस पर बरबाद कर के अपने बुढ़ापे को ठन ठन गोपाल कर लेता है, 
जो अफ़सोस का मुक़ाम है. 
हज हर मुसलमान पर एक तरह  का उस के मुसलमान होने का क़र्ज़ है, 
जो मुहम्मद ने अपनी क़ौम के लिए उस पर लादा है. 
उम्मी की इस सियासत को दुन्या की हर पिछ्ड़ी हुई क़ौम  ढो रही है. 

अल्लाह कहता है - - - 
"क्या तुम्हारा ख़याल है कि जन्नत में दाख़िल होगे, हाँलाकि तुम को अभी तक इन का सा कोई अजीब वक़ेआ पेश नहीं आया है जो तुम से पहले गुज़रे हैं और उन पर ऐसी ऐसी सख्त़ी और तंगी वाक़े हुई है और उन को यहाँ तक जुन्बिशें हुई हैं कि पैग़म्बर तक और जो उन के साथ अहले ईमान थे बोल उठे कि अल्लाह की मदद कब आएगी. याद रखो कि अल्लाह की इमदाद बहुत नज़दीक है"
सूरह अलबक़र -2-आयत (213)
मुहम्मद अपने शागिर्दों को तसल्ली की भाषा में समझा रहे हैं, कि अल्लाह की मदद ज़रूर आएगी और साथ साथ एलान है कि ये क़ुरआन  अल्लाह का कलाम है. इस कशमकश को मुसलमान सदियों से झेल रहा है कि इसे अल्लाह का कलाम माने या मुहम्मद का. 
ईमान लाने वालों ने इस्लाम क़ुबूल करके मुसीबत मोल ले ली है. 
उन के लिए अल्लाह फ़रमाता है - - - 
(तालिबानी आयत) 
"जेहाद करना तुम पर फ़र्ज़ कर दिया गया है और वह तुम को गराँ है और यह बात मुमकिन है तुम किसी अम्र को गराँ समझो और वह तुम्हारे ख़ैर में हो और मुमकिन है तुम किसी अम्र को मरगू़ब समझो और वह तुम्हारे हक़ में ख़राबी हो और अल्लाह सब जानने वाले हैं और तुम नहीं जानते," 
सूरह अलबक़र -2-आयत (214)
नमाज़, रोजा, ज़कात, हज, जैसे बेसूद और मुहमिल अमल, 
माना कि कभी न ख़त्म होने वाले अमले-ख़ैर होंगे मगर ये जेहाद भी कभी न ख़त्म होने वाला अल्लाह का फ़रमाने-अमल है कि जब तक ज़मीन पर एक भी ग़ैर मुस्लिम बचे या एक भी मुस्लिम बचे? 
जेहाद जारी रहे बल्कि उसके बाद भी? 
मुस्लिम बनाम मुस्लिम (फ़िरक़ा वार) बे शक अल्लाह, उसका रसूल और क़ुरआन  अगर बर हक़ हैं 
तो उसका फ़रमान उस से जुदा नहीं हो सकता. 
सदियों बाद तालिबान, अलक़ायदा जैशे मुहम्मद जैसी इस की बर हक़ अलामतें क़ाएम हो रही हैं, 
तो इस की मौत भी बर हक़ है. 
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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