Sunday 14 February 2021

क़ुरआन ए ला शरीफ़ (12)


क़ुरआन ए ला शरीफ़  (12)

 सूरह अलबक़र -2-سورتہ البقرہ   
(क़िस्त 11 ) 
"लेन देन किया करो तो एक दस्तावेज़ तैयार कर लिया करो, इस पर दो मर्दों की गवाही करा लिया करो, दो मर्द न मिलें तो एक मर्द और दो औरतों की गवाही ले लो" 
सूरह अलबक़र -2-आयत (283)
यानी दो औरत=एक मर्द 
क़ुरआन  में एक लफ़्ज़ या कोई फ़िक़रा या अंदाज ए  बयान का सिलसिला बहुत देर तक क़ायम रहता है जैसे कोई अकसर जाहिल लोग पढ़े लिखों की नक़्ल में पैरवी करते हैं. इस लिए भी ये उम्मी मुहम्मद का कलाम है, साबित करने के लिए लसानी तूल कलामी दरकार है. 
यहाँ पर अल्लाह के रसूल की धुन है 
"लोग आप से पूछते हैं. "
अल्लाह का सवाल फ़र्ज़ी होता है, जवाब में वह जो बात कहना चाहता है. 
ये जवाब एन इंसानी फ़ितरत के मुताबिक़ होते हैं, जो हज़ारों सालों से तस्लीम शुदा हैं. 
जिसे आज मुसलमान क़ुरआनी  ईजाद मानते हैं. 
आम मुसलमान समझता है इंसानियत, शराफ़त, और ईमानदारी, सब इसलाम की देन है, 
ज़ाहिर है उसमें तअलीम  की कमी है. उसे महदूद मुस्लिम मुआशरे में ही रखा गया है. 

क़ुरआन  में कीड़े निकालना भर मेरा मक़सद नहीं है, 
बहुत सी अच्छी बातें हैं, इस पर मेरी नज़र क्यूँ नहीं जाती?
अकसर ऐसे सवाल आप की नज़र के सामने मेरे ख़िलाफ़ कौधते होंगे. 
बहुत सी अच्छी बातें, बहुत ही पहले कही गई हैं, 
एक से एक अज़ीम हस्तियां और नज़रियात इसलाम से पहले इस ज़मीन पर आ चुकी हैं जिसे कि क़ुरआनी  अल्लाह तसव्वुर भी नहीं कर सकता. अच्छी और सच्ची बातें फ़ितरी होती हैं जिनहें आलमीं सचचाइयाँ भी कह सकते हैं. 
क़ुरआन  में कोई एक बात भी इसकी अपनी सच्चाई या इन्फ़रादी सदाक़त नहीं है. 
हज़ारों बकवास और झूट के बीच अगर किसी का कोई सच आ गया हो तो उसको क़ुरआन  का नहीं कहा जा सकता,
"माँ बाप की ख़िदमत करो" 
अगर क़ुरआन  में कहता है तो इसकी अमली मिसाल श्रवण कुमार 
इस्लाम से सदियों पहले क़ायम कर चुका है. 
मौलाना कूप मंडूकों का मुतलिआ क़ुरआन  तक सीमित है,  
इस लिए उनको हर बात क़ुरआन  में नज़र आती है. 
यही हाल अशिक्षित मुसलमानों का है. 

सूरह के आख़ीर में अल्लाह ख़ुद अपने आप से दुआ मांगता है, 
बक़ौल मुहम्मद क़ुरआन अल्लाह का कलाम है ? 
देखिए आयत में अल्लाह अपने सुपर अल्लाह के आगे कैसे ज़ारो क़तार गिड़गिड़ा रहा है. 
सदियों से अपने फ़लसफ़ा को दोहरते दोहराते, मुल्ला अल्ला को बहरूपिया बना चुका है, 
वह दुआ मांगते वक़्त बन्दा बन जाता है. 
मुहम्मद दुआ मांगते हैं तो एलानिया अल्लाह बन जाते हैं. 
उनके मुंह से निकली बात, चाहे उनके आल औलादों के ख़ैर के लिए हो, चाहे सय्यादों के लिए बरकत की हो, कलाम इलाही बन कर निकलती है. 
आले इब्राहीमा व आला आले इब्राहिम इन्नका हमीदुं मजीद. 
यानी आले इब्राहीम ग़रज़ यहूदियों की ख़ैर ओ बरकत की दुआ दुन्या का हर मुसलमान मांगता है और वह्यि यहूदी मुसलमानों के जानी दुश्मन बने हुए हैं. 
हम हिदुस्तानी मुसलमान यानी अरबियों कि भाष में हिंदी मिस्कीन अरबों के ज़ेहनी ग़ुलाम   बने हुए हैं. 
अल्लाह को ज़ारों क़तार रो रो कर दुआ मांगने वाले पसंद हैं. 
यह एक तरीक़े का नफ़्सियाती ब्लेक मेल है. 
रंज ओ ग़म से भरा हुआ इंसान कहीं बैठ कर जी भर के रो ले तो उसे जो राहत मिलती है, 
अल्लाह उसे कैश करता है, 
(बक़ौल मुहम्मद क़ुरआन अल्लाह का कलाम है ? 
देखिए आयत में अल्लाह अपने सुपर अल्लाह के आगे कैसे ज़ारो क़तार गिडगिडा रहा है. 
सदियों से अपने फ़ल्सफ़े को दोहरते दोहराते मुल्ला अल्ला को बहरूपिया बना चुका है, 
वह दुआ मांगते वक़्त बन्दा बन जाता है. 
मुहम्मद दुआ मांगते हैं तो एलानिया अल्लाह बन जाते हैं. 
उनके मुंह से निकली बात, चाहे उनके आल औलादों के ख़ैर के लिए हो, चाहे सय्यादों के लिए बरकत की हो, कलाम इलाही बन कर निकलती है. 
आले इब्राहीमा व आला आले इब्राहिम इन्नका हमीदुं मजीद. 
यानी आले इब्राहीम ग़रज़ यहूदियों की ख़ैर ओ बरकत की दुआ दुन्या का हर मुसलमान मांगता है और वह्यि यहूदी मुसलमानों के जानी दुश्मन बने हुए हैं. 
हम हिदुस्तानी मुसलमान यानी अरबियों कि भाष में हिंदी मिस्कीन अरबों के ज़ेहनी ग़ुलाम   बने हुए हैं. 
अल्लाह को ज़ारों कतार रो रो कर दुआ मांगने वाले पसंद हैं. 
यह एक तरीक़े का नफ़्सियाती ब्लेक मेल है. 
रंज ओ ग़म से भरा हुआ इंसान कहीं बैठ कर जी भर के रो ले तो उसे जो राहत मिलती है, 
अल्लाह उसे कैश करता है, 
सूरह अलबक़र -2-आयत (284-86)
क़ुरआन  की एक बड़ी सूरह अलबकर अपनी २८६ आयातों के साथ तमाम हुई- जिसका लब्बो लुबाबा दर्ज जेल है - - -


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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