Thursday 4 February 2021


क़ुरआन  ला शरीफ 

 अल्लाह कहता है - - -
सब अल्लाह के ही लायक़ हैं जो मुरब्बी हैं हर हर आलम के. (१) 
जो बड़े मेहरबान है, निहायत रहेम वाले हैं. (२) 
जो मालिक हैं रोज़ जज़ा के. (३) 
हम सब ही आप की इबादत करते हैं, और आप से ही दरख़्वास्त मदद की करते हैं. (४) 
बतला दीजिए हम को रास्ता सीधा. (५) 
रास्ता उन लोगों का जिन पर आप ने इनआम फ़रमाया न कि रास्ता उन लोगों का जिन पर आप का ग़ज़ब किया गया. (६) 
और न उन लोगों का जो रस्ते में गुम हो गए. (७) 
सूरह फ़ातिहा - 1 (पहला पारा) आयतें (1-7)   
कहते है क़ुरआन अल्लाह का कलाम है, मगर इन सातों आयतों पर नज़र डालने के बाद यह बात तो साबित हो ही नहीं सकती कि यह कलाम किसी अल्लाह जैसी बड़ी हस्ती ने अपने मुँह से अदा क्या हो. 
यह तो साफ़ साफ़ किसी बन्दा-ऐ-अदना के मुँह से निकली हुई अर्ज़दाश्त है. 
अल्लाह ख़ुद अपने आप से इस क़िस्म की दुआ मांगे, क्या यह मज़ाक नहीं है? 
या फिर अल्लाह किसी सुपर अल्लाह के सामने गुज़ारिश कर रहा है ? 
अगर अल्लाह इस बात को फ़रमाता तो वह बात इस तरह  होती ----- 
"सब तारीफ़ मेरे लायक़ ही हैं, मैं ही पालनहार हूँ हर हर आलम का. १ 
मैं बड़ा मेहरबान, निहायत रहेम करने वाला हूँ. २ 
मैं मालिक हूँ रोज़े-जज़ा का..३ 
तो मेरी ही इबादत करो और मुझ से ही दरख़्वास्त करो मदद की. ४ 
ऐ बन्दे मैं ही बतलाऊँगा तुझ को सीधा रास्ता . 5 
रास्ता उन लोगों का जिन पर हम नें इनआम फ़रमाया .६ 
न कि रास्ता उन लोगों का जिन पर हम ने ग़ज़ब किया और न उन लोगों का जो रस्ते से गुमहुए. 7" 
मगर,
 अगर अल्लाह इस तरह  से बोलता तो ख़ुद साख़्ता रसूल की गोट फँस गई होती 
और इन्हें पसे परदा अल्लाह बन्ने में मुश्किल पेश आती. 
बल्कि ये कहना दुरुस्त होगा कि मुहम्मद क़ुरआन को अल्लाह का कलाम ही न बना पाते, 
क्यूँकि ऐसे बड़ बोले अल्लाह को मानता कोई न जो ख़ुद अपने मुँह से अपनी तारीफ़ झाड़ रहा हो.
इस सिलसिले में इस्लामीं ओलिमा इस बात की यूँ रफ़ू गरी करते हैं कि - - -
क़ुरआन में अल्लाह कभी ख़ुद अपने मुँह से कलाम करता है, 
कभी बन्दे की ज़बान से. यह अल्लाह का अंदाज़-बयान है.
याद रखे कि ख़ुदाए बरतर के लिए ऐसी कोई मजबूरी नहीं होनी चाहिए .
कि वह अपने बन्दों को वहम में डालता और ख़ुद अपने सामने गिड़गिड़ाता. 
उसकी क़ुदरत तो ला होगी अगर वह है.
ग़ौर करें पहली आयत----
कहता है --- 
सब अल्लाह के ही लायक़ हैं जो मुरब्बी हैं हर हर आलम के. (१) 
अल्लाह मियाँ! अपने मुँह मियाँ मिट्ठू ? अच्छी बात नहीं, भले ही आप अल्लाह जल्ले शानाहू हों. 
प्राणी की परवरिश अगर आप अपनी तारीफ़ करवाने के लिए कर रहे हैं तो बंद करें पालन हारी. 
वैसे भी आप की दुन्या में लोग दुखी ज़्यादा और सुखी कम हैं. 
दूसरी आयत पर आइए-----
जो बड़े मेहरबान है, निहायत रहेम वाले हैं. (२) 
आप न मेहरबान हैं, न रहेम वाल, यह आगे चल कर क़ुरआनी  आयतें चीख़ चीख़ कर गवाही देंगी, 
आप बड़े मुन्तक़िम ज़रूर हैं और बे क़ुसुर अवाम का जीना हराम किए रहते हैं. 
तीसरी आयत ---
जो मालिक हैं रोज़ जज़ा के. (३) 
यौमे जज़ा (प्रलय दिवस) यहूदियों की कब्र गाह से बर आमद की गई रूहानियत की लाश, 
जिस को ईसाइयत ने बहुत गहराई में दफ़न कर दिया था,  
इस्लाम की हाथ लग गई, 
जिसे मुहम्मद ने अपनी धुरी बनाई. 
मुसलमानों की ज़िंदगी का मक़सद यह ज़मीन नहीं, 
वह आसमान की तसव्वुराती दुनिया है, 
जो यौमे-जज़ा के बाद मिलनी है. 
क़यामत नामा क़ुरआन पढ़ें. 
दर अस्ल मुसलमान यहूदियत को जी रहा है. 
चौथी आयत 
हम सब ही आप की इबादत करते हैं, और आप से ही दरख़्वास्त मदद की करते हैं. (४) 
नातवाँ के मुंह से जल्ले जलाल्लाहू क्या मज़ाक़ है ?
*पाँचवीं आयत 
बतला दीजिए हम को रास्ता सीधा. (५) 
अल्लाह अपने आप से या अपने सुपर अल्लाह से पूछता है कि 
बतला दीजिए हमको सीधा रास्ता. 
क्या अल्लाह टेढ़े रास्ते भी बतलाता है? 
यक़ीनन, आगे आप देखेंगे कि क़ुरानी अल्लाह किस क़द्र अपने बन्दों को टेढ़े रास्तों पर गामज़न कर देता है जिस पर लग कर मुसलमान गुमराह हैं.
क़ुरआन का क़ौल है 
"अल्लाह जिस को चाहे गुमराह करे," 
कूढ़ मगज़ मुसलमान कभी इस पर ग़ौर नहीं करता कि यह शैतानी हरकत इस का अल्लाह क्यों करता है? कहीं दाल में कुछ काला तो नहीं है ? 
छटी आयत 
रास्ता उन लोगों का जिन पर आप ने इनआम फ़रमाया न कि रास्ता उन लोगों का जिन पर आप का ग़ज़ब किया गया. (६) 
यहाँ इब्तेदा में ही मैं आप को उन हस्तियों का नाम बतला दें जिन पर अल्लाह ने करम फ़रमाया है, 
आगे काम आएगा क्यूं कि क़ुरआन  में सैकड़ों बार इन नामों को दोहराया गया है. 
यह नाम हैं---
इब्राहीम, इस्माईल, इस्हाक़, लूत, याक़ूब , यूसुफ़, मूसा, दाऊद, सुलेमान, ज़कर्या, मरयम, ईसा अलैहिस्सलामान वग़ैरह वग़ैरह.
 याद रहे यह हज़रात सब पाषण युग के हैं, जब इंसान कपड़े और जूते पहेनना सीख रहा था 
छटी आयत ग़ौर तलब है कि अल्लाह ग़ज़ब ढाने वाला भी है. 
अल्लाह और अपने मख़लूक़  पर ग़ज़ब भी ढाए? 
सब तो उसी के बनाए हुए हैं बग़ैर उसके हुक्म के पत्ता भी नहीं हिलता, इंसान की क्या मजाल? 
उसने इंसान को ऐसा क्यूं बनाया की ग़ज़ब ढाने की नौबत आ गई?
सातवीं आयत 
अल्लाह अपने आप से दुआ गो है कि 
न उन लोगों का रास्ता  बतलाना`जो रास्ता गुम हुए. 
रास्ता गुम शुदा के भी चंद नाम हैं---
आजर, समूद, आद, फ़िरौन, वग़ैरह. इन का भी नाम क़ुरआन  में बार बार आता है. 
क़ुरआन अपने यहूदी और ईसाई मुरीदों की मालूमाती मदद में रद्दो बदल करके, 

यह किसी अल्लाह का कलाम नहीं, उम्मी और नीम शाएर मुहम्मद का कलाम है. 
इस की हक़ीक़त हर ख़ास ओ आम क़ुरआनी विद्वान को मालूम है, 
मगर वह सब के सब बे ईमान लोग हैं. 
क़ुरआन का दारोग़ ही उनकी रोज़ी रोटी है.
यह सूरह फ़ातेहा की सातों आयतें कलाम-इलाही बन्दे के मुंह से अदा हुई हैं. 
यह सिलसिला बराबर चलता रहेगा, अल्लाह कभी बन्दे के मुंह, से बोलता है, 
कभी मुहम्मद के मुंह से, तो कभी ख़ुद अपने मुंह से. 
माहरीन दलाल ए  क़ुरआन, ओलिमा इस को अल्लाह के गुफ़्तुगू का अंदाजे बयान बतलाते हैं, 
मगर माहरीन-ज़बान इंसानी इस को एक उम्मी जाहिल का पुथन्ना क़रार देते हैं. 
जिस को मुहम्मद ने वज्दानी कैफ़ियत में गढ़ा है. 
मुहम्मद को जब तक याद रहता है कि वह अल्लाह की ज़बान से बोल रहे हें तब तक ग्रामर सही रहती है,
जब भूल जाते है तो उनकी अपनी बात हो जाती है. 
यह बहुत मुश्किल भी था की पूरी क़ुरआन अल्लाह के मुंह से बुलवाते. 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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