Sunday 7 February 2021

क़ुरआन तर्जुमा और तबसरा


क़ुरआन तर्जुमा और तबसरा 

 सूरह अलबक़र -2-سورتہ البقرہ   
(क़िस्त 4 ) 

सारा, बीवी के अलावा इब्राहीम की एक लौंडी हाजरा (हैगर) थी जिसका बेटा इस्माईल था जिसकी नस्लों से क़ुरैश और ख़ुद हज़रत हैं. आगे हदीस में देखिएगा कि मुहम्मद ने बाबा इब्राहीम को भी अपने सामने बौना कर दिया है. 
मुझे क़ुरानी इबारतों को सोंच सोंच कर हैरत होती है कि क्या आज भी दुन्या में इतने कूढ़ मग्ज़ बाक़ी हैं जो इसे समझ ही नहीं पा रहे हैं? या इस्लामी शातिर इतने मज़बूत हैं कि जो इन पर ग़ालिग़ हैं.                                       
क़ुरआन में पोशीदा धांधली तो मुट्ठी भर लोगों के लिए थी. रात के अंधेरे में सेंध लगाती थी, आज तो दिन दहाड़े डाका डाल रही है. तअलीम  की रौशनी में ऐसी मुहम्मदी जेहालत पर मासूम बच्चा भी एक बार सुन कर मानने से हिचकिचाए. 
"जिस वक़्त याक़ूब का आख़री वक़्त आया अपने बेटों से पूछा, तुम लोग मेरे मरने के बाद किस चीज़ की परस्तिश करोगे? बेटों ने जवाब दिया हम लोग उसी की परस्तिश करेंगे जिस की आप, आप के बुजुर्ग, इब्राहीम, इस्माईल, इसहाक़ परस्तिश करते आऐ हैं, यानी वह्यि माबूद जो वाद्हू ला शरीक है और हम उसी की एताअत पर रहेंगे " 
सूरह अलबक़र -2-आयत   (132-33) 
इस क़िस्म की आयतें क़ुरआन में वाक़ेआत पर आधारित बहुतेरी है जो सभी तौरेत की चोरी हैं मगर सब झूट का लबादा, हाँ जड़ ज़रूर तौरेत में छिपी है. इस वाक़ेए की जड़ है कि यूसफ़ के ख़्वाब के मुताबिक़ जो कि उसने देखा था कि 
एक दिन सूरज और चाँद उसके सामने सर झुकाए खड़े होंगे और ग्यारा सितारे उसके सामने सजदे में पड़े होंगे, 
जो कि पूरा हुवा, जब युसुफ़ मिस्र का बेताज बादशाह हुवा तो उसका बाप ग़रीब याक़ूब और याक़ूब की जोरू उसके सामने सर झुकाए खड़े थे और उसके तमाम सौतेले भाई शर्मिदा सजदे में पड़े थे. 
याक़ूब के सामने दीन का कोई मसला ही न था मसला तो ग्यारा औलादों की रोटी का था. 
मुहम्मद का यह ज़ेहनी शगूफ़ा कहीं नहीं मिलेगा, यूसुफ़ की दास्तान तारीख़ में साफ़ साफ़ है.

"आप फ़रमा दीजिए कि तुम लोग हम से हुज्जत किए जाते हो अल्लाह तअला के बारे में, हालां कि वह हमारा और तुम्हारा रब है. हम को हमारा क्या हुवा मिलेगा और तुम को तुम्हारा किया हुवा, और हम ने हक़ तअला के लिए अपने को ख़ालिस कर रक्खा है. क्या कहे जाते हो कि इब्राहीम और इस्माईल और इसहाक़ और याक़ूब और औलाद याक़ूब यहूद या नसारा थे, कह दीजिए तुम ज़्यादा वाक़िफ़ हो या हक़ तअला और इस शख़्स से ज़्यादः ज़ालिम कौन होगा जो ऐसे शख़्स का इक़्फ़ा करे जो इस के पास मिन जानिब अल्लाह पहंची हो और अल्लाह तुमहारे किए से बे ख़बर नहीं " 
सूरह अलबक़र -2-आयत (138-40) 
आयत १४० बहुत ख़ास है. पूरा क़ुरआन इसी की मदार पर घूमता है जिस से मुसलमान गुमराह होते हैं 
तुम ज़्यादा वाक़िफ़ हो या हक़ तअला ? 
क़ौमों की तवारीख़ कोई सच्चाई नहीं रखती, अल्लाह की गवाही के सामने. 
इसको न मानने वाले ज़ालिम होते हैं, और ज़ालिमों से अल्लाह निपटेगा.
मुसलमानों! 
पूरा यक़ीन कर सकते हो की तवारीख़ अक़वाम के आगे क़ुरानी अल्लाह की गवाही झूटी है. 
मुहम्मद से पहले इस्लाम था ही नहीं तो इब्राहीम और उनकी नस्लें मुसलमान कैसे हो सकती हैं? 
ये सब मजनू बने मुहम्मद की गहरी चालें हैं.
"जिस जगह से भी आप बाहर जाएं तो अपना चेहरा काबा की तरफ़ रक्खा करें और ये बिल्कुल हक़ है और अल्लाह तुम्हारे किए हुए कामो से असला बे ख़बर नहीं है और तुम लोग जहाँ कहीं मौजूद हो अपना चेहरा ख़ानाए काबा की तरफ़ रक्खो ताकि लोगों को तुम्हारे मुक़ाबले में गुफ़तुगू न रहे. मुझ से डरते रहो." 
सूरह अलबक़र -2-आयत (149-50)
इस रसूली फ़रमान पर मुस्कुरइए, तसव्वुर में अमल करिए, भरी महफ़िल में बेवक़ूफ़ी हो जाए तो क़हक़हा लगाइए. भेड़ बकरियों के लिए अल्लाह का यह फ़रमान मुनासिब ही है.
हुवा यूँ था की मुहम्मद ने मक्का से भाग कर जब मदीने में पनाह ली थी तो नमाज़ों में सजदे के लिए रुख़ क़रार पाया था बैतुल मुक़द्दस, जिस को क़िबलाए अव्वल भी कहा जाता है, यह फ़ैसला एक मसलेहत के तहत भी था, जिसे वक़्त आने पर सजदे का रुख़ बदल कर काबा कर दिया गया, जो कि मुहम्मद की आबाई इबादत गाह थी. इस तब्दीली से अहले मदीना में बडी चे-में गोइयाँ होने लगीं, जिसको मुहम्मद ने सख़्ती के साथ कुचल दिया, इतना ही नहीं, मंदर्जा बाला हुक्मे रब्बानी भी जारी कर दिया. 
सूरह अलबक़र -2-आयत (149-50)
मुसलमानों!
तुम्हारी बद नसीबी इन्हीं क़ुरआनी आयातों में छुपी हुई हैं. 
इन्हें ग़ौर से पढो, फिर सोंचो कि क्या तुम मुहम्मदी फ़रेब में मुब्तिला हो? 
इससे निकल कर नई दुन्या में आओ. 
***       
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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