Thursday 11 February 2021

क़ुरआन ए ला शारीफ (9)

क़ुरआन ए ला शारीफ  (9)

 सूरह अलबक़र -2-سورتہ البقرہ   
(क़िस्त 8 ) 

"अल्लाह तअला वारिद गीर न फ़रमाएगा तुम्हारी बेहूदा कसमों पर लेकिन वारिद गीर फ़रमाएगा इस पर जिस में तुम्हारी दिलों ने इरादा किया था और अल्लाह .तअला ग़फ़ूर रुर रहीम है" 
सूरह अलबक़र -2-आयत (225)
"जो लोग क़सम खा बैठे हैं अपनी बीवियों से, उन को चार महीने की मोहलत है, सो अगर ये लोग रुजू कर लें तब तो अल्लाह तअला मुआफ़ कर देंगे और अगर छोड़ ही देने का पक्का इरादा कर लिया है तो अल्लाह तअला जानने और सुनने वाले हैं."
सूरह अलबक़र -2-आयत  (227) 
मुस्लिम समाज में औरतें हमेशा पामाल रही हैं आज भी ज़ुल्म का शिकार हैं. मुश्तरका माहोल के तुफ़ैल में कहीं कहीं इनको राहत मिली हुई है जहाँ तअलीम  ने अपनी बरकत बख़्शी है. 
देखिए तलाक़ के कुछ इस तरह  ग़ैर वाज़ह फ़रमाने-मुहम्मदी - - -
"तलाक़ दी हुई औरतें रोक रखें अपने आप को तीन हैज़ तक और इन औरतों को यह बात हलाल नहीं कि अल्लाह ने इन के रहेम में जो पैदा किया हो उसे पोशीदा रखें और औरतों के शौहर उन्हें फिर लौटा लेने का हक़ रखते हैं, बशर्ते ये कि ये इस्लाह का क़स्द रखते हों. और औरतों के भी हुक़ूक़ हैं जव कि मिस्ल उन ही के हुक़ूक़ के हैं जो उन औरतों पर है, क़ाएदे के मुवाफ़िक़ और मर्दों का औरतों के मुक़ाबले कुछ दर्जा बढ़ा हुवा है."
सूरह अलबक़र -2-आयत (228) 
"औरतों के हुक़ूक़ आयत में अल्लाह ने क्या दिया है ? अगर कुछ समझ में आए तो हमें भी समझाना. 
"दो बार तलाक़ देने के बाद भी निकाह क़ायम रहता है मगर तीसरी बार तलाक़ देने के बाद तलाक़ मुकम्मल हो जाती है. और औरत से राबता क़ायम करना हराम हो जाता है, उस वक़्त तक कि औरत का किसी दूसरे मर्द से हलाला न हो जाए."
सूरह अलबक़र -2-आयत (229-30) 

हलाला=हरामा 
मुसलमानों में रायज रुस्वाए ज़माना नाज़ेबगी हलाला जिसको दर असल हरामा कहना मुनासिब होगा, 
वह तलाक़ दी हुई अपनी बीवी को दोबारा अपनाने का एक शर्म नाक तरीक़ा है 
जिस के तहेत मतलूक़ा को किसी दूसरे मर्द के साथ निकाह करना होगा और उसके साथ हम बिस्तरी की शर्त लागू होगी फिर वह तलाक़ देगा, बाद इद्दत (चार महीना दस दिन) ख़त्म औरत का तिबारा निकाह अपने पहले शौहर के साथ होगा, 
तब जाकर दोनों इस्लामी दाग़-बे ग़ैरती को ढोते हुए तमाम जिंदगी गुज़ारेंगे. 
अकसर  ऐसा भी होता है कि टेम्प्रेरी शौहर औरत को तलाक़ ही नहीं देता और वह नई मुसीबत में फंस जाती है, उधर शौहर ठगा सा रह जाता है. 
ज़रा तसव्वुर करें कि मामूली सी बात का इतना बड़ा बतंगड़, 
दो जिंदगियां और उनके मासूम बच्चे ताउम्र रुसवाई का बोझ ढोते रहें. 
"मुहम्मदी अल्लाह तलाक़ शुदा और बेवाओं के लिए अधूरे और बे तुके फ़रमान जारी करता है. बच्चों को दूध पिलाने कि मुद्दत और शरायत पर भी देर तक एलान करता है जो कि ग़ैर ज़रूरी लगते हैं. 
एक तवील ला हासिल गुफ़्तगू जो क़ुरआन में बार बार दोहराई गई है जिस को इल्म का ख़ज़ाना रखने वाले आलिम अपनी तक़रीर में हवाला देते हैं कि अल्लाह ने यह बात फलां फलां सूरतों की फलां फलां आयत में फ़रमाई है, दर असल वह उम्मी मुहम्मद कि बड़ बड़ है जो बार बार क़ुरआन का पेट भरने के लिए आती है, और आलिमों का पेट इन आयातों की जेहालत से भारती है. "
सूरह अलबक़र -2-आयत (२३१-२४२)
अल्लाह औरतों के जिंसी और अज़वाजी मसलों की डाल से फुधक कर अफ़साना निगारी की टहनी पर आ बैठता है बद ज़ायक़ा एक क़िस्सा पढ़ कर, आप भी अपने मुंह का ज़ायका बिगाड़ेंगे - - - 
"तुझको उन लोगों का क़िस्सा तहक़ीक़ नहीं हुवा जो अपने घरों से निकल गए थे और वह लोग हज़ारो ही थे, मौत से बचने के लिए. सो अल्लाह ने उन के लिए फ़रमाया कि मर जाओ, फिर उन को जला दिया. बे शक अल्लाह .तअला बड़े फ़ज़ल करने वाले हैं लोगों पर मगर अकसर लोग शुक्र नहीं करते."
सूरह अलबक़र -2-आयत  (243)
लीजिए अफ़साना तमाम. 
क्या फ़ज़ले इलाही? 
उस ज़ालिम अल्लाह का यही फ़ज़ल है  जिस ने अपने बन्दों को बे यारो मददगार करके जला दिया ? 
ये मुहम्मद कि ज़लिमाना फ़ितरत की लाशुऊरी अक्कासी ही है 
जिसको वह निहायत फूहड़ ढंड से बयान करते हैं. 
देखिए मुहम्मद के मुंह से अल्लाह को या अल्लाह के मुंह से मुहम्मद को, 
यह बैंकिंग प्रोग्राम पेश करते हैं, जेहाद करो - - - 
"अल्लाह के पास आपनी जान जमा करो, मर गए तो दूसरे रोज़ ही जन्नत में दाख़िला, 
मोती के महल, हूरे, शराब, क़बाब, एशे लाफ़ानी, 
अगर कामयाब हुए तो जीते जी माले ग़नीमत का अंबार 
और अगर क़त्ताल से जान चुराते हो का याद रखो लौट कर अल्लाह के पास ही जाना है, 
वहाँ ख़बर ली जाएगी. कितनी मंसूबा बंद तरकीब है बेवक़ूफों के लिए."

"और अल्लाह कि राह में क़त्ताल करो. कौन शख़्स  है ऐसा जो अल्लाह को क़र्ज़ दिया और फिर अल्लाह उसे बढ़ा कर बहुत से हिस्से कर दे और अल्लाह कमी करते हैं और फ़राख़ी करते हैं और तुम इसी तरफ़ ले जाए जाओगे"
सूरह अलबक़र -2-आयत (244-45)
"अगर अल्लाह को मंज़ूर होता वह लोग 
(मूसा के बाद किसी नबी की उम्मत)
उनके बाद किए हुआ बाहम क़त्ल ओ क़त्ताल नहीं करते, बाद इसके, इनके पास दलील पहुँच चुकी थी, लेकिन वह लोग बाहम मुख़्तलिफ़ हुए सो उन में से कोई तो ईमान लाया और कोई काफ़िर रहा. और अगर अल्लाह को मंज़ूर होता तो वह बाहम क़त्ल ओ क़त्ताल न करते लेकिन अल्लाह जो कहते है वह्यि करते हैं"
सूरह अलबक़र -2-आयत (253)
मुहम्मद ने कैसा अल्लाह मुरत्तब किया था? 
क्या चाहता था वह? क्या उसे मंज़ूर था? मन मानी? 
मुसलमान कब तक क़ुरआनी अज़ाब में मुब्तिला रहेगा ? 
कब तक यह मुट्ठी भर इस्लामी ओलिमा  अपमी इल्म के ज़हर की मार ग़रीब मुस्लिम अवाम पर थोपते रहेंगे, 
मूसा को मिली उसके इलोही की दस हिदायतें आज क्या बिसात रखती हैं, हाँ मगर वक़्त आ गया है कि आज हम उनको बौना साबित कर रहे हैं. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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