Saturday 6 February 2021

सूरह अलबक़र -2-سورتہ البقرہ (क़िस्त 3)


सूरह अलबक़र -2-سورتہ البقرہ   
(क़िस्त 3) 
अल्लाह की तरफ़ से भेजी गई कच्ची वातों पर जब लोग उंगली उठाते हैं और मुहम्मद को अपनी ग़लती का एहसास होता है तो उस आयत या पूरी की पूरी सूरह अल्लाह से मौक़ूफ़ (अमान्य) करा देते हैं. 
ये भी उनका एक हरबा होता. 
अल्लाह न हुवा एक आम आदमी हुवा जिस से ग़लतियाँ तो होती रहती है, 
उस पर ये कि उस को इस का हक़ है. 
बड़ी ज़ोरदारी के साथ अल्लाह अपनी क़ुदरत की दावेदारी पेश करते हुए अपनी ताक़त का मज़ाहिरा करता है कि वह क़ुरानी आयातों में हेरा-फेरी भी कर सकता है, इसकी वह क़ुदरत रखता है, कल वह ये भी कह सकता है कि वह झूट बोल सकता है, चोरी, चकारी, बे ईमानी जैसे काम भी करने की भी क़ुदरत रखता है. 
ज़बान बदलू अल्लाह कहता है - - - 
"हम किसी आयत का हुक्म मौक़ूफ़ कर देते हैं या उस आयत को फ़रामोश कर देते हैं तो उस आयत से बेहतर या उस आयत के ही मिस्ल ले आते हैं. क्या तुझ को मालूम नहीं कि अल्लाह तअला ऐसे हैं कि इन्हीं की सल्तनत आसमानों और ज़मीन की है और ये भी समझ लो कि तुम्हारे हक़ तअला के सिवा कोई यारो मदद गार नहीं."
सूरह अलबक़र -2-आयत (114)
मुहम्मद इस क़दर ताक़त वर अल्लाह के ज़मीनी कमांडर बन्ने की आरज़ू रखते थे, 
"अल्लाह तअला जब किसी काम को करना चाहता है तो इस काम के निस्बत इतना कह देता है कि कुन यानी हो जा और वह फ़या कून याने हो जाता है " 
सूरह अलबक़र -2-आयत (117) 
विद्योत्मा से शिकस्त खाकर मुल्क के चार चोटी के क़ाबिल ज्ञानी पंडित वापस आ रहे थे , 
रास्ते में देखा एक मूरख (कालिदास) पेड़ पर चढ़ा उसी डाल को काट रहा था जिस पर वह सवार था, 
उन लोगों ने उसे उतार कर उससे पूछा राज कुमारी से शादी करेगा?  
प्रस्ताव पाकर मूरख बहुत ख़ुश हुवा. 
पंडितों ने उसको समझया की तुझको राज कुमारी के सामने जाकर बैठना है, उसकी बात का जवाब इशारे में देना है, जो भी चाहे इशारा कर देना. 
मूरख विद्योत्मा के सामने सजा धजा के पेश किया गया , 
विद्योत्मा से कहा गया महाराज का मौन है, जो बात चाहे संकेत में करें. 
राज कुमारी ने एक उंगली उठाई, 
जवाब में मूरख ने दो उँगलियाँ उठाईं. 
बहस पंडितों ने किया और विद्योत्मा हार गई. दर अस्ल एक उंगली से विद्योत्मा का मतलब एक परमात्मा था जिसे मूरख ने समझा वह उसकी एक आँख फोड़ देने को कह रही है. 
जवाबन उसने दो उंगली उठाई कि जवाब में मूरख ने राज कुमारी कि दोनों आखें फोड़ देने कि बात कही थी. जिसको पंडितों ने आत्मा और परमात्मा साबित किया. 
कुन फाया कून के इस मूर्ख काली दास की पकड़ पैग़म्बरी फ़ार्मूला है जिस पर मुसलमान क़ौम ईमान रक्खे हुए है. ये दीनी ओलिमा कलीदास मूरख के पंडित हैं जो उसके आँख फोड़ने के इशारे को ही मिल्लत को पढ़ा रहे है, दुन्या और उसकी हर शै कैसे वजूद में आई अल्लाह ने कुन फ़या कून कहा और सब हो गया. तअलीम , तहक़ीक़ और इर्तेक़ाई मनाज़िल की कोई अहमियत और ज़रूरत नहीं. 
डार्बिन ने सब बकवास बकी है. 
सारे तजरबे गाह इनके आगे फ़ैल. 
उम्मी की उम्मत उम्मी ही रहेगी, इसके पंडे मुफ़्त खो़री करते रहेंगे उम्मत को दो+दो=पॉँच पढ़ाते रहेंगे . 
यही मुसलमानों की क़िसमत है.
अल्लाह कुन फ़या कून के जादू से हर काम तो कर सकता है 
मगर पिद्दी भर शहर मक्का के काफ़िर को इस्लाम की घुट्टी नहीं पिला सकता. 
ये काएनात जिसे आप देख रहे हैं करोरो अरबो सालों के इर्तेकाई रद्दे अमल का नतीजा है, 
किसी के कुन फ़या कून कहने से नहीं बनी.
 
* अज ख़ुद नाख़्वान्दा और उम्मी मुहम्मद अपने से ज़्यादः ज़हीनो को जाहिल के लक़ब से नवाज़ते हैं जिसकी वकालत आलिमान इस्लाम आज तक आखें बंद करके अपनी रोटियाँ चलाने के लिए करते चले आ रहे हैं - - - 
"कुछ जाहिल तो यूँ कहते हैं कि हम से क्यों नहीं कलाम फ़रमाते अल्लाह तअला ? या हमारे पास कोई और दलील आ जाए. इसी तरह  वह भी कहते आए हैं जो इन से पहले गुज़रे हैं, इन सब के क़ुलूब यकसाँ हैं, हम ने तो बहुत सी दलीलें साफ़ साफ़ बयान कर दी हैं" 
सूरह अलबक़र -2-आयत (118) 
* नाम निहाद अल्लाह के ख़ुद साख़्ता रसूल ढाई तीन हज़ार साल क़ब्ल पैदा होने वाले बाबा इब्राहीम से अपने लिए दुआ मंगवाते हैं, उस वक़्त जब वह काबा की दीवार उठा रहे होते हैं- - - 
"और जब उठा रहे थे इब्राहीम दीवारें ख़ानाए काबा की और इस्माईल भी--- (दुआ गो थे) ऐ हमारे परवर दिगार हम से क़ुबूल फ़रमाइए, बिला शुबहा आप ख़ूब सुनने वाले हैं, जानने वाले हैं, ऐ हमारे परवर दिगार! हमें और मती बना लीजिए और हमारी औलादों में भी एक ऐसी जमात पैदा कीजिए जो आप की मती हो और हम को हमारे हज के अहकाम बता दीजिए और हमारे हाल पर तवज्जे रखिए. फिल हक़ीक़त आप ही हैं तवज्जे फ़रमाने वाले मेहरबानी करने वाले. ऐ हमारे परवर दिगार! और इस जमात से इन्हीं में के एक ऐसे पैग़म्बर भी मुक़र्रर कीजिए जो इन लोगों को आप की आयत पढ़ पढ़ कर सुनाया करें और आसमानी किताब की ख़ुश फ़हमी दिया करें और इन को पाक करें - - - और मिल्लते इब्राहिमी से तो वह्यि रू गर्दानी करेगा जो अपनी आप में अहमक होगा.और हम ने इन को दुन्या में मुन्तख़िब किया और वह आख़िरत में बड़े लायक़ लोगों में शुमार किए जाते हैं" 
सूरह अलबक़र -2-आयत  (127 - 130) 
इस तरह  मुहम्मद एक चाल चलते हुए अपने चलाए हुए दीन इस्लाम को यहूदियों, ईसाइयों, और मुसलमानों के मुश्तरका पूर्वज बाबा इब्राहीम का दीन बनाने की कोशिश कर रहे हैं. गोया साँप और सीढ़ी का खेल खेल कर ख़ुद मूरिसे आला के गद्दी नशीन बन जाते हैं.इब्राहिम बशरी तारीख़ में एक मील का पत्थर है. इनकी जीवनी ऐबो हुनर के साथ तारीख़ इंसानी में पहली दास्तान रखती है. इसी लिए इनको फ़ादर अब्राहम का मुकाम हासिल है. उसको लेकर मुहम्मद ने आलमी राय को गुराह करने की कोशिश की है.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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