Saturday 13 February 2021

क़ुरआन ला शरीफ़ 9(१२)

क़ुरआन ला शरीफ़ (११)

 सूरह अलबक़र -2-سورتہ البقرہ   
(क़िस्त 10 ) 

उनके ईमान पर मातम कीजिए जो ऐसी अहमक़ाना बातों पर ईमान रखते हैं. फिर दिल पर पत्थर रख कर सब्र कर डालिए कि वह मय अपने बल बच्चों के, तालिबानों का नवाला बन्ने जा रहे हैं. 

"तुम को इस तरह  का क़िस्सा भी मालूम है, जैसे की एक शख़्स  था कि ऐसी बस्ती में ऐसी हालत में उसका गुज़र हुवा कि उसके मकानात अपनी छतों पर गिर गए थे, कहने लगे कि अल्लाह .तअला इस बस्ती को इस के मरे पीछे किस कैफ़ियत से जिंदा करेंगे, सो अल्लाह तअला ने उस शख़्स  को सौ साल जिंदा रक्खा, फिर उठाया, पूछा, कि तू कितनी मुद्दत इस हालत में रहा? उस शख़्स  ने जवाब दिया एक दिन रहा हूँगा या एक दिन से भी कम. अल्लाह ने फ़रमाया नहीं, बल्कि सौ बरस रहा. तू अपने खाने पीने को देख ले कि सड़ी गली नहीं और दूसरे तू अपने गधे की तरफ़ देख और ताकि हम तुझ को एक नज़र लोगों के लिए बना दें.और हड्डियों की तरफ़ देख, हम उनको किस तरह  तरकीब दे देते हें, फिर उस पर गोश्त चढा देते हैं - - - बे शक अल्लाह हर चीज़ पर पूरी क़ुदरत रखते हैं.". 
सूरह अलबक़र -2-आयत (259)
मुहम्मद ऐसी ही बे सिर पैर की मिसालें क़ुरआन  में गढ़ते हैं जिसकी तफ़सीर निगार रफ़ू किया करते हैं..
एक मुफ़स्सिर इसे यूं लिखता है - - -
यानी पहले छतें गिरीं फिर उसके ऊपर दीवारें गिरीं, मुराद यह कि हादसे से बस्ती वीरान हो गई." 
इस सूरह में अल्लाह ने इसी क़िस्म की तीन मिसालें और दी हैं जिन से न कोई नसीहत मिलती है, 
न उसमें कोई दानाई छिपी है, पढ़ कर खिस्याहट अलग होती है. 
अंदाजे बयान बचकाना है, बेज़ार करता है, 
***
अंदाजे बयान बचकाना है, बेज़ार करता है, 
अज़ीयत पसंद हज़रात चाहें तो क़ुरआन उठा कर आयत २६१ देखें. 
सवाल उठता है हम ऐसी बातें वास्ते सवाब पढ़ते हैं? 
दिन ओ रात इन्हें दोहराते हैं, 
क्या अनजाने में हम पागल पन की हरकत नहीं करते ? 
 हाँ ! 
अगर हम इसको अपनी जबान में बा आवाज़ बुलंद दोहराते रहें. 
सुनने वाले यक़ीनन हमें पागल कहने लगेंगे और इन्हें छोडें, 
कुछ दिनों बाद हम ख़ुद अपने आप को पागल महसूस करने लगेंगे. 
आम तौर पर मुसलमान इसी मरज़ का शिकार है जिस की गवाह इस की मौजूदा तस्वीर है. 
वह अपने मुहम्मदी अल्लाह का हुक्म मान कर ही पागल तालिबान बन चुका है. ."
सूरह अलबक़र -2-आयत (261) 
ख़र्च पर मुसलसल मुहम्मदी अल्लाह की ऊट पटांग तक़रीर चलती रहती है. 
मालदार लोगों पर उसकी नज़रे बद लगी रहती है, 
सूद खो़री हराम है मगर बज़रीआ सूद कमाई गई दौलते बिक़ा हलाल हो सकती है 
अगर अल्लाह की साझे दारी हो जाए. 
रहन, बय, सूद और इन सब के साथ साथ गवाहों की हाज़िरी जैसी आमियाना बातें अल्लाह हिकमत वाला खोल खोल कर समझाता है. 
सूरह अलबक़र -2-आयत (263-73)
अल्लाह ने इन आयतों में ख़र्च करने के तरीक़े और उस पर पाबंदियां भी लगाई हैं. 
कहीं पर भी मशक्क़त और ईमानदारी के साथ रिज़्क़ कमाने का मशविरा नहीं दिया है. 
इस के बर अक्स जेहाद लूट मार की तलक़ीन हर सूरह में है. 
"ऐ ईमान वालो! तुम एहसान जतला कर या ईज़ा पहुंचा कर अपनी ख़ैरात को बर्बाद मत करो, उस शख़्स  की तरह  जो अपना मॉल ख़र्च करता है, लोगों को दिखने की ग़रज़ से और ईमान नहीं रखता - - - ऐसे लोगो को अपनी कमाई ज़रा भी हाथ न लगेगी और अल्लाह काफ़िरों को रास्ता न बतला देंगे." 
ज़रा मुहम्मद की हिकमते अमली पर ग़ौर  करें कि वह लोगों से कैसे अल्लाह का टेक्स वसूलते हैं. 
जुमले की ब्लेक मेलिंग तवज्जेह तलब है - - -
और अल्लाह काफ़िर को रास्ता न बतला देंगे - - - 

एक मिसाल अल्लाह की और झेलिए- - - 
"भला तुम में से किसी को यह बात पसंद है कि एक बाग़ हो खजूर का और एक अंगूर का. इस के नीचे नहरें चलती हों, उस शख़्स  के इस बाग़ में और भी मेवे हों और उस शख़्स  का बुढ़ापा आ गया हो और उसके अहलो अयाल भी हों, जान में क़ूवत नहीं, सो उस बाग़ पर एक बगू़ला आवे जिस में आग हो ,फिर वह बाग़ जल जावे. अल्लाह इसी तरह  के नज़ार फ़रमाते हैं, तुम्हारे लिए ताकि तुम सोचो," 
सूरह अलबक़र -2-आयत (266)
"और जो सूद का बक़ाया है उसको छोड़ दो, अगर तुम ईमान वाले हो और अगर इस पर अमल न करोगे तो इश्तहार सुन लो अल्लाह की तरफ़ से कि जंग का - - - 
और इस के रसूल कि तरफ़ से. और अगर तौबा कर लो गे तो तुम्हारे अस्ल अमवाल मिल जाएँगे. न तुम किसी पर ज़ुल्म कर पाओगे, न कोई तुम पर ज़ुल्म कर पाएगा." 
सूरह अलबक़र -2-आयत (279)
. न तुम किसी पर ज़ुल्म कर पाओगे, न कोई तुम पर ज़ुल्म कर पाएगा." 
एक अच्छी बात निकली मुहम्मद के मुँह से पहली बार. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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