Friday 5 February 2021

क़ुरआन


"क्या ग़ज़ब है कहते हो और लोगों को नेक काम करने को 
(नेक काम करने से मुराद रसूल अल्लाह सल्लल्लाह अलैहिःवसल्लम पर ईमान लाना) 
और अपनी ख़बर नहीं रखते, हालां कि तुम तिलावत करते हो किताब की, तो क्या तुम इतना भी नहीं समझते." 
सूरह अलबक़र -2-आयत (44)
मुहम्मद की महफ़िल में हर क़िस्म के लोग हुवा करते थे. 
मजबूर इतने की उनके थूक को मुंह पर मल लिया करते थे, 
ख़ुद्दार और बा असर ऐसे की मुहम्मद के तमाम चाल को जानते हुए भी मसलहतन साथ निभाते थे. 
ऐसे ही कोई साहब हैं जो लोगों को नेक कामों की तलक़ीन करते हैं. 
मुहम्मद उनकी बातें सुन कर एतराज़ करते हैं और मज़कूरा आयत नाज़िल करते हैं. इस आयत की पैरवी आम मुसलमान से लेकर ख़ास तालिबान तक अच्छी तरह  लाशऊरी तौर पर कर रहे हैं. 
"आदम और हव्वा की मन गढ़ंत कहानी के बाद मुहम्मद का अल्लाह बनी इस्राईल के सुने सुनाए क़िस्से  पेश करता है. अधूरी जानकारी के बाइस अल्लाह इन का अस्ल बयान नहीं कर पाता. मगर बे सिर ओ पैर की तवील गुफ़तुगू कर के तूल कलामी ज़रूर करता रहता है. 
तौरेत और मूसा के तवस्सुत से इस्लाम की तबलीग़ भी करता है और इन के असर से नव मुस्लिमों को बचाने की कोशिश भी करता है. मुहम्मद की अधकचरी मालूमात की इस्लाह अगर कोई यहूदी अपने तारीख़ी पसे मंज़र में कर भी देता है तो मुहम्मदी अल्लाह उसको झूठा क़रार दे देता है कि तुम ने असलियत बदल डाली है. हम ब हैसियत अल्लाह इस बात के गवाह हैं कि हमारी बातें सच हैं. 
यानी झूठे के आगे सच्चा रोए.
 ऐसे मौक़े पर यहूदी आपस में बातें करते हैं, हम क्यों इन से उलझते हैं? और अपनी जानकारी इन्हें देते हैं. 
यह ग़ालिब लोग हैं, इनसे पार पाना मुश्किल है. अल्लाह कुछ इस अंदाज़ में बातें करता है - - - 
"एहसान मानो कि तुमको मूसा ने अल्लाह के हुक्म से मिस्रयों से आज़ाद कराया, याद करो की वीराने में तुम्हें खाने के लिए बटेरें इफ़रात कर दी थीं और याद करो कि तुम भटक कर गोशाले की तरफ़ चले गए थे" 
सूरह अलबक़र -2-आयत (47-93)
देखिए मुहम्मदी अल्लाह अपने प्यारे नबी से किस मुंसिफ़ाना फ़रमान का एलान करवाता है - - 
"आप कह दीजिए (यहूदियों से) कि आलम आख़िरत अगर तुम्हारे लिए ही फ़ायदे मंद है तो अल्लाह के पास बिला शिरकते ग़ैर, मौत की तमन्ना करो, 
अगर तुम सच्चे हो. और वह कभी भी इस की तमन्ना नहीं करेंगे." 
सूरह अलबक़र -2-आयत (97)
ख़ुदा साख़्ता रसूल की इस पेश कश को क्या कहा जाए ? 
कम से कम ये मर्दों की बात तो नहीं हो सकती. 
कोई क़ौम अपने मुख़ालिफ़ के बहकावे में आकर ख़ुद कुशी की तमन्ना कर सकती है क्या? 
यही बात यहूदी कह सकते हैं कि अगर सिर्फ़ मुसलमान बख़्शे जाएंगे तो वह मौत की तमन्ना क्यूं नहीं करते? 
ऐसी बातों पर ही अहले मक्का मुहम्मद को मजनू कहते थे. 
ऐसे लग्वियात का ख़ालिक़, किर्दगार ए ख़लक़ को बना कर मुसलमान अज़ ख़ुद ज़माने के सामने दिमाग़ी दीवालिया हो जाता है. 

और सुनें अल्लाह की गुफ़्तुगू अल्लाह वाले, अपने ईमान को ताज़ा करें- - - 
"सुलेमान के अहद में बज़ात ख़ुद सुलेमान ने कोई कुफ़्र नहीं किया लेकिन शयातीन कुफ़्र करते थे. और आदमियों को भी जादू की तअलीम  दिया करते और उस जादू की भी जो उस वक़्त फ़रिश्तों पर नाज़िल किया गया था. शहर बाबुल में जिस का नाम हारुत और मारूत, लोग इन से सेहर सीखते, मियां बीवी के बीच झगड़ा कराने के लिए. साहिर लोग किसी को ज़रर नहीं पहुँचा सकते जब तक कि अल्लाह का हुक्म न हो" 
सूरह अलबक़र -2-आयत (102)
ग़ौर  करें कि आप नमाज़ों में क्या पढ़ते हैं? 
यह किसी अल्लाह का क़ुरआन है? 
या फिर किसी उम्मी की ख़ुराफ़ात. 
ऐसी इबारतें क्या वास्ते इबादत हो सकती हैं?
यह अल्ला नहीं, मुल्ला आप से जादू टोना जैसा कुफ़्र करा रहे हैं. 
जागिए. इनका दामन छोडिए. 
क़ुरआन की क़रीब सौ ख़ास ख़ास आयतों का मुतलेआ हम आप को गोश गुजार करा चुके हैं, 
आप ने कहीं कोई काम की बात पाई ? 
आलावा जिहालत के. 
जिन आयात को हम ने नहीं छुवा, वह हाथ लगाने लायक़ थीं भी नहीं, 
यानी दीवाने की झक. 
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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