Friday 19 February 2021

क़ुरआन ए ला शरीफ़ (17)


क़ुरआन ए ला शरीफ़  (17)


सूरह आले इमरान- 3-سورتہ آل عمران 
(क़िस्त 3) 

मैं हिन्दू हूँ न मुसलमान, न क्रिश्चेन और न ही कोई धार्मिक आस्था रखने वाला व्यक्ति. 
मैं सिर्फ़ एक इंसान हूँ, मानव मात्र. 
हिदू और मुस्लिम संस्कारों में ढले आदमी को मानव मात्र बनना बहुत ही मुश्किल काम है. 
कोई बिरला ही सत्य और सदाक़त से आँखें मिला पाता है कि परिवेश का ग़लबा 
उसके सामने त्योरी चढ़ाए खड़ा रहता है और वह फिर आँखें मूँद कर असत्य की गोद में चला जाता है. 
ग़ालिब कहता है - - - 
बस कि दुश्वार है हर काम का आसाँ होना, 
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसाँ होना.
(हर आदमी, आदमी का बच्चा होता है चाहे उसे भेड़िए ने ही क्यूं न पाला हो 
और सभ्य होने के बाद ही आदमी इंसान कहलाता है)
मैं सिर्फ़ इंसान हो चुका हूँ इस लिए मैं इंसान दोस्त हूँ. 
दुन्या में सब से ज़्यादः दलित, दमित, शोषित और मूर्ख क़ौम  है मुसलमन, 
उस से ज़्यादः हमारे भारत में अछूत, हरिजन, दलित और पिछड़ा वर्ग के नामों से, 
पहचान रखने वाला हिन्दू है. 
पहले अंतर राष्ट्रीय क़ौम को क़ुरआनी आयातों ने पामाल कर रखा है,
दूसरे को भारत में लोभ और पाखण्ड ने. 
मुट्ठी भर लोग इन दोनों को उँगलियों पर नचा रहे हैं. 
मैं फ़िलहाल मुसलमानों को इस दलदल से निकलने का बेड़ा उठता हूँ, 
हिन्दू भाइयो के शुभ चिन्तक लाखों हैं. 
इस लिए मैं इस मुसलमन मानव जाति का असली शुभ चिन्तक हूँ, 
यही मेरा मानव धर्म है. 
नादान मुसलमान मुझे अपना दुश्मन समझते हैं 
जब कि मैं उनके अज़ली दुश्मन इस्लाम की का विरोध करता हूँ 
और वाहियात गाथा क़ुरआन का. 
हर मानवता प्रेमी पाठक से मेरा अनुरोध है कि वह मेरे अभियान के साथ आएं, 
मेरे ब्लॉग को मुस्लिम भाइयों के कानों तक पहुँचाएँ. 
हर साधन से उनको इसकी सूचना दें. 
मैं मानवता के लिए जान कि बाज़ी लगा कर मैदान में उतरा हूँ, 
आप भी कुछ कर सकते हैं .

देखें क़ुरआन की बकवासें - - -
 
"बिल यक़ीन जो लोग कुफ़्र करते हैं, हरगिज़ उनके काम नहीं आ सकते, उनके माल न उनके औलाद, अल्लाह तअला के मुक़ाबले में, ज़र्रा बराबर नहीं और ऐसे लोग जहन्नम का सोख़ता होंगे."
सूरह आले इमरान 3  आयत (१०)

ख़ुद ला वलद मुहम्मद अपने दामाद की औलादों हसन और हुसैन का हश्र हौज़ ऐ कौसर के कनारे खड़े खड़े देख रहे होंगे. दुश्मने-इंसानियत मुहम्मद तमाम उम्र अपने मुख़ालिफ़ो को मारते पीटते और काटते कोसते रहे, असर उल्टा रहा अहले कुफ़्र सुर्ख रू रहे और फलते फूलते रहे, मुसलमान पामाल रहे और ज़र्द रू हुए. आज भी उम्मते मुहम्मदी पूरी दुन्या के सामने एक मुजरिम की हैसियत से खड़ी हुई है. 
किस क़दर कमज़ोर हैं क़ुरआनी आयतें, मौजूदा मुसलमानों को कैसे समझाया जाय? 

"आप फ़रमा दीजिए क्या मैं तुम को ऐसी चीज़ बतला दूँ जो बेहतर हों उन चीजों से, ऐसे लोगों के लिए जो डरते हैं, उनके मालिक के पास ऐसे ऐसे बाग़ हैं जिन के नीचे नहरें बह रही हैं, हमेशा हमेशा के लिए रहेंगे, और ऐसी बीवियां हैं जो साफ़ सुथरी की हुई हैं और ख़ुश नूदी है अल्लाह की तरफ़ से बन्दों को."
सूरह आले इमरान 3  आयत (15)

देखिए कि इस क़ौम की अक़्ल को दीमक खा गई. अल्लाह रब्बे कायनात बंदे मुहम्मद को आप जनाब कर के बात कर रहा है, इस क़ौम के कानों पर जूँ तक नहीं रेंगती. 
अल्लाह की पहेली है बूझें? 
अगर नहीं बूझ पाएँ तो किसी मुल्ला की दिली आरज़ू पूछें कि वह नमाजें क्यूँ पढता है? 
ये साफ़ सुथरी की हुई बीवियां कैसी होंगी, ये पता नहीं, अल्लाह जाने, जिन्से लतीफ़ होगा भी या नहीं? औरतों के लिए कोई जन्नती इनाम नहीं फिर भी यह नक़िसुल अक़्ल  कुछ ज़्यादह ही सूम सलात वालियाँ होती हैं. अल्लाह की बातों में कहीं कोई दम दरूद है? 
कोई निदा, कोई इल्हाम जैसी बात है? दीन के कलम कारों ने अपनी कला कारी से इस रेत के महेल को सजा रक्खा है. 

"अल्लाह बड़ी नरमी के साथ बन्दों को अपनी बंदगी की अहमियत को समझाता है. काफ़िरों की सोहबतों के नशेब ओ फ़राज़ समझाता है. अपनी तमाम ख़ूबियों के साथ बन्दों पर अपनी मालिकाना दावेदारी बतलाता है. दोज़ख़ पर हुज्जत करने वालों को आगाह करता है. क़ुरआन  से इन्हिराफ़ करने वालों का बुरा अंजाम है, ग़रज़ ये कि दस आयातों तक अल्लाह की क़ुरआनी तान छिड़ी रहती है जिसका कोई नतीजा अख्ज़ करना मुहाल है."  
सूरह आले इमरान 3  आयत (16-26)

अल्लाह की जुग़राफ़ियाई मालूमात और क़ुदरत की राज़दारी के बारे में देखें. 
उम्मी मुहम्मद का तकमील करदा अल्लाह कहता है - - -
"कि वह  रात को दिन में दाख़िल कर देते हैं और दिन को रात में. वह  जानदार चीज़ों को बेजान से निकाल लेता है (जैसे अंडे से चूज़ा) और बे जान चीज़ों को जानदार से निकाल लेता है (जैसे परिंदों से अंडा) "
सूरह आले इमरान 3  आयत (27)

इस बात को मुहम्मद क़ुरआन में बार बार दोहराते हैं मगर आज के दौर में ओलिमा इस बात को जाहिल अवाम के आगे भी नहीं बयान करते, न ही अपनी तहरीर में कहीं इस आयत को छूते हैं. 
मगर मिस्कीन हिंदी हर रोज़ अपनी नमाज़ों में ज़रूर इस जेहालत को पढ़ते हैं. 
सोचिए कि जो शख़्स  यूनानी साइंस दानो, सुकरात और अरस्तु से सदियों बाद पैदा हुवा हो उसकी समाजी जानकारी इतनी भी न हो कि रात और दिन कैसे होते है और अंडा जो परिन्दे के पेट से पैदा होता है वह जानदार होता है, जाहिलों के सरदार मोहम्मद अल्लाह के रसूल बने बैठे हैं.
 मुसलमानों के ये बद तरीन दुश्मन ओलिमा जो मुसलमानों को जिंदा नोच नोच कर खा रहे हैं, 
ऐसे गाऊदी को सरवर-कायनात जैसे सैकडों लक़ब से नवाज़े हुवे हैं. 
*यहूदियों का ख़ुदा यहुवा हमेशा यहूदियों पर मेहरबान रहता है, 
गाड एक बाप की तरह  हमेशा अपने ईसाई बेटों को मुआफ़ किए रहता है, 
ज़्यादह तर धार्मिक भगवान दयालु होते हैं, 
बस की एक मुसलमानों का अल्लाह है जो उन पर पैनी नज़र रखता है. 
वह  बार बार इन्हें धमकियाँ दिए रहता है. हर वक़्त याद दिलाता है रहता कि वह बड़ा अज़ाब देने वाला है. सख़्त बदला लेने वाला है. चाल चलने वाला वाला है. गर्दन दबोचने वाला है. क़हर ढाने वाला है. 
वह मुसलमानों को हर वक़्त डराए रहता है. 
उसे डरपोक बन्दे पसंद हैं, बसूरत दीगर उसकी राह में जेहादी. 
वह  मुसलमानों को महदूद होकर जीने की सलाह देता है, 
जिस की वजह से हिदुस्तानी मुसलमान कशमकश की ज़िन्दगी जीने पर मजबूर हैं. 
इन्हें मुल्क में मशकूक नज़रों से देखा जाए तो क्यूँ न देखा जाए ? 
देखिए अल्लाह कहता है - - -
''मुसलमानों को चाहिए कुफ्फारों को दोस्त न बनाएं, मुसलमानों से तजाउज़ करके जो शख़्स ऐसा करेगा, वह शख़्स  अल्लाह के साथ किसी शुमार में नहीं मगर अल्लाह तुम्हें अपनी ज़ात से डराता है." 
सूरह आले इमरान 3  आयत (28)

इस क़ुरआनी  आयात को सुनने के बाद भारत की काफ़िर हिन्दू अक्सरीयत आबादी मुस्लिम अवाम को दोस्त कैसे बना सकती है? ऐसी क़ुरआनी आयतों के पैरोकारों को हिन्दू अपना दुश्मन मानें तो क्यूँ न मानें? दुन्या के तमाम ग़ैर मुस्लिम मुमालिक में बसे हुए मुसलमानों के साथ किस दर्जा ना आकबत अन्देशाना और ज़हरीला ये पैग़ाम है इसलाम का. 
मुस्लिम ख़वास और मज़हबी रहनुमा कहते हैं कि उनके बुज़ुर्गों ने पाकिस्तान न जाकर हिंदुस्तान जैसे सैकुलर मुल्क में रहना पसंद किया, इस लिए उन्हें सैकुलर हुक़ूक़ मिलने चाहिएं. सैकुलरटी की बरकतों के दावे दार ये लोग सैकुलर भी हैं और ऐसी आयात वाली क़ुरआन के पुजारी भी. 
इन्हीं की जुबान में - - -
" ये सब के सब हिदुस्तान के जदीद मुनाफ़िक़ हैं" इन से सावधान रहे हिंदुस्तान."

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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