Monday 8 February 2021

क़ुरआन ला शरीफ़ तर्जुमा और तबसरा

क़ुरआन ला शरीफ़
तर्जुमा और तबसरा
 सूरह अलबक़र -2-سورتہ البقرہ   
(क़िस्त 5 ) 

अल्लाह कहता है - - - 
"मगर जो लोग तौबा कर लें और इस्लाह कर लें तो ऐसे लोगों पर मैं मुतवज्जो हो जाता हूँ और मेरी तो बकसरत आदत है तौबा क़ुबूल कर लेना और मेहरबानी करना." 
सूरह अलबक़र -2-आयत (160) 
अल्लाह की बकसरत आदत पर ग़ौर करें. 
अल्लाह इंसानों की तरह  ही अलामतों का आदी है. 
क़ुरआन  और हदीसों का ग़ौर से मुतालिआ करें तो साफ़ साफ़ पाएँगे कि दोनों के मुसन्निफ़ एक हैं जो अल्लाह को क़ुदरत वाला नहीं बल्कि आदत वाला समझते हैं, 

अल्ला मियां तौबा न करने वालों के हक़ में फ़रमाते हैं - - -
"अलबत्ता जो लोग ईमान न लाए और इसी हालत में मर गए तो इन पर लानत है, अल्लाह की, फ़रिश्तों की, और आदमियों की. उन पर अज़ाब हल्का न होने पाएगा." 
सूरह अलबक़र -2-आयत (161)
भला आदमियों की लानत कैसे हुई ? वह्यि तो ईमान नहीं ला रहे. 
ख़ैर अल्लाह मियां और रसूल मियां बोलते पहले हैं और सोंचते बाद में हैं. 
और इन के दल्लाल तो कभी सोचते ही नहीं. 
* बहुत सी चाल घात की बातें इस के बाद की आयतों में अल्लाह ने बलाई हैं, अपनी नसीहतें और तम्बीहें भी मुसलमान बच्चों को दी हैं. कुछ चीजें हराम क़रार दी हैं, बसूरत मजबूरी हलाल भी कर दी हैं. यह सब परहेज़, हराम, हलाल और मकरूह क़ब्ले इसलाम भी था जिस को भोले भाले मुसलमान इसलाम की देन मानते हैं. 

कहता है - - -
"अल्लाह तअला ने तुम पर हराम किया है सिर्फ़ मुरदार और ख़ून को और ख़िजीर के गोश्त को और ऐसे जानवर को जो ग़ैर अल्लाह के नाम से ज़द किए गए हों. फिर भी जो शख़्स बेताब हो जावे, बशर्ते ये कि न तालिबे लज़्ज़त हो न तजाउज़ करने वाला हो, कुछ गुनाह नहीं होता. 
वाक़ई अल्लाह तअला हैं बड़े ग़फ़ूरुर रहीम" 
सूरह अलबक़र -2-आयत (173) 
क़ुरआन  में क़ायदा क़ानून ज़्यादः तर अधूरे और मुज़बज़ब हैं, इसी लिए मुस्लिम अवाम हमेशा आलिमों से फ़तवे माँगा करती है. 
मरहूम की वसीयत के मुताबिक़ कुल मॉल को हिस्से के पैमाइश या आने के हिसाब से बांटा गया है मगर रूपया कितने आने का है, साफ़ नहीं हो पाता, 
हिस्सों का कुल क्या है? 
वसीयत चार आदमी मिल कर बदल भी सकते हैं, 
फिर क्या रह जाती है मरने वाले की मर्ज़ी? 
क़ुरआन  यतीमों के हक़ का ढोल खूब पीटता है मगर यतीमों पर दोहरा ज़ुल्म देखिए कि अगर दादा की मौजूदगी में बाप की मौत हो जाय तो पोता अपनी विरासत से महरूम हो जाता है. 
क़स्सास और ख़ून  बहा के अजीबो ग़रीब क़ानून हैं. जान के बदले जान, मॉल के बदले मॉल, आँख के बदले आँख, हाथ के बदले हाथ, पैर के बदले पैर, ही नहीं, 
क़ुरआनी  क़ानून देखिए - - - 
"ऐ ईमान वालो! तुम पर क़स्सास फ़र्ज़ किया जाता है, ममक़तूलीन के बारे में, आज़ाद आदमी आज़ाद के एवज़ और ग़ुलाम  , ग़ुलाम   के एवज़ में और औरत औरत के एवज़ में. हाँ, इस में जिसको फ़रीक़ैन की तरफ़ से कुछ मुआफ़ी हो जाए तो माक़ूल तौर पर मतालबा करना और ख़ूबी के तौर पर इसको पहुंचा देना यह तुम्हारे परवर दिगार की तरफ़ से तख़फ़ीफ़ तरह्हुम है जो इस बाद तअददी का मुरक़्क़ब  होगा तो बड़ा दर्द नाक अज़ाब होगा" 
सूरह अलबक़र -2-आयत (179)
एक फिल्म आई थी पुकार जिसमे नूर जहां ने अनजाने में एक धोबी का तीर से ख़ून कर दिया था. 
इस्लामी क़ानून के मुताबिक़ धोबन को बदले में नूर जहाँ के शौहर यानी जहाँगीर के ख़ून करने का हक़ मिल गया था और बादशाह जहाँगीर धोबन के तीर के सामने आँखें बंद करके खड़ा हो गया था. 
ग़ौर करें यह कोई इंसाफ का मेराज नहीं था बल्कि एन ना इंसाफी थी. ख़ता करे कोई और सज़ा पाए कोई. 
हम आप के ग़ुलाम   को क़त्ल कर दें और आप मेरे ग़ुलाम   को, 
दोनों मुजरिम बचे रहे. वाह! अच्छा है मुजरिमों के लिए मुहम्मदी क़ानून. 
सूरह की मंदर्जा ज़ेल आयतों में रोज़ों को फ़र्ज़ करते हुए बतलाया गया है कि कैसे कैसे किन किन हालत में इन की तलाफ़ी की जाए. 
यही बातें क़ुरआनी  हिकमत हैं जिसका राग ओलिमा बजाया करते हैं. 
मुसलमानों की यह दुन्या भाड़ में जा रही है जिसको मुसलमान समझ नहीं पा रहा है. 
यह दीन के ठेकेदार ख़ैराती मदरसों से ख़ैराती रिज़्क़ खा पी कर फ़ारिग़ हुए हैं अब इनको मुफ़्त इज्ज़त और शोहरत मिली है जिसको ये कभी न जाने देंगे भले ही एक एक मुसलमान ख़त्म हो जाए. 
सूरह अलबक़र -2-आयत (184-87) 

"तुम लोगों के वास्ते रोज़े की शब अपनी बीवियों से मशगू़ल रहना हलाल कर दिया गया, क्यूँ कि वह तुम्हारे ओढ़ने बिछोने हैं और तुम उनके ओढ़ने बिछौने हो. अल्लाह को इस बात की ख़बर थी कि तुम ख़यानत के गुनाह में अपने आप को मुब्तिला कर रहे थे. ख़ैर अल्लाह ने तुम पर इनायत फ़रमाई और तुम से गुनाह धोया - - -जिस ज़माने में तुम लोग एतक़ाफ़ वाले रहो मस्जिदों में ये ख़ुदा वंदी ज़ाबते हैं कि उन के नज़दीक़ भी मत जाओ. इसी तरह  अल्लाह .तअला अपने एह्काम लोगों के वास्ते बयान फ़रमाया करते हैं इस उम्मीद पर की लोग परहेज़ रक्खें " 
सूरह अलबक़र -2-आयत (187) 
आज के साइंसी दौर में, यह हैं अल्लाह के एहकाम जिसकी पाबंदी मुल्ला क़ौम से करा रहे हैं. 
उसके बाद सरकार पर इलज़ाम तराशी कि मुसलमानों के साथ भेद भाव. 
मुसलमान का असली दुश्मन इस्लाम है जो आलिम इस पर लादे हुए हैं. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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