Friday 3 August 2018

सूरह मोमिनून- 23 Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह मोमिनून- २३
क़िस्त-1


अल्लाह कहता है - - - 

"बिल यक़ीन उन मुसलामानों ने फ़लाह पाई जो अपनी नमाज़ों में गिड़गिड़ाने वाले हैं.''
सूरह मोमिनून- २३- (1-2)


रोना और हँसना, दोनों ही ज़ेहन को हल्का कर देते हैं, मगर इसकी कोई वजेह और हदें हुवा करती हैं. बिना वजेह ये तजाऊज़ कर जाएँ तो ये बीमारी की अलामत होती है. हँसना तो ख़ैर  इस्लाम में हराम की तरह है मगर एक नार्मल इंसान को यह रोने और गिड़गिड़ाने की हरकत अपने आप में बेवक़ूफ़ी लगेगी. अफ़सोस कि क़ुरआन  का कोई भी मशविरा इंसानों के लिए कारामद नहीं है, कुछ निकलता है तो नुक़सान दह. 



"और जो लग्व बातों से दूर रहते हैं, जो अपने को पाक रखते हैं और जो अपनी शरमगाहों की हिफ़ाज़त करने वाले हैं, लेकिन अपनी बीवियों और लौंडियों पर कोई इलज़ाम नहीं. हाँ! जो इसके अलावा तलब गार हो, ऐसे लोग हद से निकलने वाले हैं"

मोमिनून- २३- (3-7)



ख़ुद साख़्ता रसूल एक हदीस में फ़रमाते हैं कि जो शख़्स  मेरी ज़बान और तानासुल (लिंग) पर मुझे क़ाबू दिला दे उसके लिए मैं जन्नत की ज़मानत लेता हूँ , 

और उनका अल्लाह कहता है कि शर्म गाहों की हिफ़ाज़त करो. मुहम्मद ख़ुद अल्लाह की पनाह में नहीं जाते. अल्लाह ने सिर्फ़ मर्दों को इंसानी दर्जा दिया है इस बात का एहसास बार बार क़ुरआन  कराता है. क़ुरानी जुमले पर ग़ौर करिए "लेकिन अपनी बीवियों और लौंडियों पर कोई इलज़ाम नहीं" एक मुसलमान चार बीवियाँ बयक वक़्त रख सकता है उसके बाद लौड्यों की छूट. इस तरह एक मर्द= चार औरतें +लौडियाँ बे शुमार. इस्लामी ओलिमा, इन्हें इनका अल्लाह ग़ारत करे, ढिंढोरा पीटते फिरते है कि इस्लाम ने औरतों को बराबर का मुक़ाम दिया है. इन फ़ासिक़ो के चार टुकड़े कर देने चाहिए कि इस्लाम औरतों को इन्सान ही नहीं मानता. अफ़सोस का मक़ाम ये है कि ख़ुद औरतें ज़्यादः इस्लामी ख़ुराफ़ात में पेश पेश रहती हैं . 


"हमने इंसान को मिटटी के ख़ुलासे से बनाया, फिर हमने इसको नुतफ़े से बनाया, जो कि एक महफूज़ मुक़ाम में रहा, फिर हमने इस नुतफ़े को  ख़ून का लोथड़ा बनाया, फिर हमने इस  ख़ून के लोथड़े को बोटी बनाई, फिर हमने इस बोटी को हड्डी बनाई, फिर हमने इन हड्डियों पर गोशत चढ़ाया, फिर हमने इसको एक दूसरी ही मख़लूक़ बना दिया, सो कैसी शान है मेरी, जो तमाम हुनरमंदों से बढ़ कर है. फिर तुम बाद इसके ज़रूर मरने वाले हो और फिर क़यामत के रोज़ ज़िन्दा किए जाओगे."

मोमिनून- २३- (12-16)

ये मिटटी का ख़ुलासा क्या होता है? मुफ़स्सिर और तर्जुमान एक दूसरे की काट करते हुए अल्लाह की मदद अपने अपने मंतिक से करते हैं. 
अल्लाह की हिकमत देखिए कि आप की तकमील में उसने क्या क्या जतन किए है? ख़ालिक़ ए कायनात किस छिछोरे पन से अपनी तारीफ़ कर रहा है. ये मुहम्मद के ज़र्फ़ की नक़्क़ाशी है. 
सब कुछ अल्लाह कर सकता है कि उसका दावा ही है ये, 
बस कर नहीं पाता तो अपने इस शाहकार इन्सान को मुसलमान नहीं बना सकता. ऐसी जेहालत की आयत मुहम्मदी अल्लाह वास्ते इबादत पेश का रहा है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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