Friday 17 August 2018

Soorah furqaan 5- Q 1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह फ़ुरक़ान-25
क़िस्त-1

ईमान

सिने बलूग़त से पहले मैं ईमान का मतलब माली लेन देन की पुख़्तगी को समझता रहा मगर जब मुस्लिम समाज में प्रचलित शब्द "ईमान" को जाना तो मालूम हुवा कि "कलमाए शहादत", पर यक़ीन रखना ही इस्लामी इस्तेलाह (परिभाषा) में ईमान है, जिसका माली लेन देन से कोई वास्ता नहीं. कलमाए शहादत का निचोड़ है अल्लाह, रसूल, क़ुरआन  और इनके फ़रमूदात पर आस्था के साथ यक़ीन रखना, ईमान कहलाता है. 

सिने बालूग़त आने पर एहसास ने इस पर अटल रहने से बग़ावत करना शुरू कर दिया कि इन की बातें मफ़ौक़ुल फ़ितरत (अप्राकृतिक और अलौकिक) हैं. मुझे इस बात से मायूसी हुई कि लेन देन का पुख़्ता होना ईमान नहीं है जिसे आज तक मैं समझता था. 
बड़े बड़े बस्ती के मौलानाओं की बेईमानी पर मैं हैरान हो जाता कि ये कैसे मुसलमान हैं ? 
मुश्किल रोज़ बरोज़ बढ़ती गई कि इन बे-ईमानियों पर ईमान रखना होगा. धीरे धीरे अल्लाह, रसूल और क़ुरानी फ़रमानों का मैं मुंकिर होता गया और ईमाने-अस्ल मेरा ईमान बनता गया कि क़ुदरती सच ही सच है. ज़मीर की आवाज़ ही हक़ है.
हम ज़मीन को अपनी आँखों से गोल देखते है जो सूरज के गिर्द चक्कर लगाती है, इस तरह दिन और रात हुवा करते हैं. 
अल्लाह, रसूल, क़ुरआन  और इनके फ़रमूदात पर यक़ीन करके इसे रोटी की तरहचिपटी माने, और सूरज को रात के वक़्त अल्लाह को सजदा करने चले जाना, अल्लाह का उसको मशरिक की तरफ़ से वापस करना - - -  
ये मुझको क़ुबूल न हो सका. मेरी हैरत की इन्तहा बढ़ती गई कि मुसलमानों का ईमान कितना कमज़ोर है. कुछ लोग दोनों बातो को मानते हैं, 
इस्लाम के रू से वह लोग मुनाफ़िक़ हुए यानी दोग़ले. 
दोग़ला बनना भी मुझे मंज़ूर हुवा.
मुसलमानों! मेरी इस उम्रे-नादानी से सिने-बलूग़त के सफ़र में आप भी शामिल हो जाइए और मुझे अक़ली पैमाने पर टोकिए, 
जहाँ मैं ग़लत लगूँ. 
इस सफ़र में मैं मुस्लिम से मोमिन हो गया, जिसका ईमान सदाक़त पर अपने अक़्ल-सलीम के साथ सवार है. 
आपको दावते-ईमान है कि आप भी मोमिन बनिए और आने वाले बुरे वक़्त से नज़ात पाइए. 
आजके परिवेश में देखिए कि मुसलमान ख़ुद मुसलमानों का दुश्मन बना हुआ है वह भी पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान, ईराक़ और दीगर मुस्लिम मुमालिक में. 
बाक़ी जगह ग़ैर मुस्लिमो को वह अपना दुश्मन बनाए हुए है. 
क़ुरआन  के नाक़िस पैग़ाम अब दुन्या के सामने अपने असली रूप में हाज़िर और नाज़िल हैं. 
इंसानियत की  राह में हक़ परस्त लोग इसको क़ायम नहीं राहने देंगे, 
वह सब मिलकर इस गुम राह कुन इबारत को ग़ारत कर देंगे, 
उसके फ़ौरन बाद आप का नंबर होगा. जागिए मोमिन हो जाने का पहले क़स्द करिए, क्यूंकि मोमिन बनना आसान भी नहीं, 
सच बोलने और सच जीने में लोहे के चने चबाने पड़ते हैं. 
इसके बाद तरके-इस्लाम का एलान कीजिए.

आइए देखते है उन दुश्मन-ए-इंसानियत मुहम्मदी अल्लाह के नाक़िस और साज़िशी क़ुरआनी पैग़ाम की हक़ीक़त क्या है - - -


"बड़ी आली शान ज़ात है जिसने ये फ़ैसले की किताब अपने बंद-ए-ख़ास पर नाज़िल फ़रमाई ताकि तमाम दुन्या जहाँ को डराने वाला हो"
सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (1)

ग़ौर तलब है अल्लाह ख़ुद अपने मुँह से अपने आप को आली शान कह रहा है. जिसकी शान को बन्दे शबो-रोज़ अपनी आँखों से ख़ुद देखते हों, 

उसको ज़रुरत पड़ गई बतलाने और जतलाने की? कि मैं आलीशान हूँ. मुहम्मद को बतलाना है कि वह बन्दा-ए-ख़ास हैं. जिनको उनके अल्लाह ने काम पर लगा रक्खा है कि बन्दों को झूटी दोज़ख़ से डराया करो कि यही चाल है कि तुमको लोग पैग़म्बर मानें. 

"और काफ़िर लोग कहते हैं ये तो कुछ भी नहीं, निरा झूट है जिसको एक शख़्स  ने गढ़ लिया है और दूसरे लोगों ने इसमें इसकी इमदाद की है. सो ये लोग बड़े ज़ुल्म और झूट के मुर्तक़ब हुए, और यह लोग कहते हैं ये क़ुरआन  बे सनद बातें हैं जो अगलों से मनक़ूल चली आ आई हैं, जिसको इसने लिखवा लिया है, फिर इसको सुब्ह व् शाम तुमको पढ़ कर सुनाता है. और ये लोग कहते है इस रसूल को क्या हुवा, वह हमारी तरह खाना खाता है, और बाज़ार में चलता फिरता है. इसके पास कोई फ़रिश्ता क्यूं नहीं भेजा गया कि वह इसके साथ रह कर डराता या इसके पास कोई खज़ाना आ पड़ता या इसके पास कोई बाग़ होता जिससे ये खाया करता. ये ज़ालिम यूँ कहते हैं कि मसलूबुल अक़्ल  की  राह चल पड़े हो." 
सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (4-8)

उस वक़्त के मफ़रूज़ा काफ़िर आज के आलिमों से ज़्यादः समझ दार और ईमान वाले रहे होंगे, वह ज़रा सी जिसारत करते तो इस्लामी बीज को अंकुरित ही न होने देते, जो मुस्तक़बिल में पूरी दुन्या पर अज़ाब बन कर नाज़िल हुवा. 

उम्मी के क़ुरआन  की हक़ीक़त यही है, "निरा झूट है जिसको एक शख़्स  ने गढ़ लिया है और दूसरे लोगों ने इसमें इसकी इमदाद की है" 
वाक़ई क़ुरआन  ग़ैर मुस्तनद एक दीवाने की गाथा है, 
इस्लाम मुहम्मद के जीते जी एक साम्राज बन चुका था, मुहम्मद मंसूबे के मुताबिक़ लूट मार और जोरो-ज़ुल्म से क़ुरैशी तमाम अरब के हुक्मरान बन गए थे, ख़ुद मुहम्मद सम्राट बन सकते थे, मगर  मुहम्मद दोनों हाथों में लड्डू चाहते थे कि जेहादी सियासत के साथ साथ अल्लाह के दूत भी बने रहें ताकि मूसा और ईसा की तरहअमर हो जाएँ. 
क़ुरआनी आयतें और हदीसें इस बात की गवाह हैं कि मुहम्मद में बादशाह बन्ने की सलाहियत थी नहीं . 
क़ुरआन की आयतों को सुन कर मक्का में लोगों ने इन्हें 'मसलूबुल अक़्ल ' यानी अक़्ल से पैदल, कह कर नज़र अंदाज़ किया मगर वह लोग जिहादी फ़ार्मूले को समझ नहीं पाए.

"देखिए तो ये लोग आपके लिए कैसी अजीब अजीब बातें बयान कर रहे हैं. वह गुमराह हो गए हैं. फिर वह राह नहीं पा सकते. वह ज़ात बड़ी आली शान है  कि चाहे तो आप को इससे अच्छी चीज़ दे दे, यानी बहुत से बाग़ात कि जिसके नीचे से नहरें बहती हों और आप को बहुत से महेल दे दे, बल्कि ये लोग क़यामत को झूट समझ रहे हैं और हम ने ऐसे लोगों के लिए जो क़यामत को झूट समझे, दोज़ख़ तैयार कर रखी है."
सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (9-11)

अजी कुछ सुना आपने! 

ये लोग आपके लिए कैसी अजीब अजीब बातें बयान कर रहे हैं, 
जैसे कोई घर वाली अपने मियाँ से कहती हो फिर शौहर का जवाब होता है "बकने दो वह राह नहीं पा सकते. वह ज़ात मेरे लिए बड़ी आली शान है कि चाहे तो माबदौलत को इससे अच्छी चीज़ दे दे यानी बहुत से बाग़ात कि जिसके नीचे से नहरें बहती हों जैसे जन्नत, 
अल्लाह जन्नतियों को देने का वादा हर सूरह में दोहराता है. और माबदौलत को बहुत से महल देदे "
कितनी परले दर्जे की अय्यारी है कि नबी शर्म-व-हया को घोट कर पी गए हों. 
      
"और वह इसको दूर से देखेंगे तो इसका जोश ख़रोश नहीं सुनेंगे और जब वह इसकी किसी तंग जगह में हाथ पाँव जकड़ कर डाल दिए जाएँगे तो वहाँ मौत ही मौत पुकारेंगे, कहा जाएगा कि अब मौत को मत पुकारो बल्कि बहुत सी मौतों को पुकारो.आप कहिए क्या ये अच्छी है या वह हमेशा रहने वाली जन्नत जिसका कि अल्लाह से डरने वालों से वादा किया गया है,"
सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (12-16)

अगर कोई अल्लाह की इन बातों का यक़ीन करता है तो वह अक़्ल  से पैदल है कि अल्लाह अपने अरबों ख़रबों बन्दों को बांधे छान्देगा वह भी तंग जगह में? और फिर ताने देगा कि मुहम्मद को मेरा डाकिया क्यूं नहीं माना. सब मुर्दे मिलकर गिड़गिड़ाएंगे, मौत मांगें गे तो वह भी नहीं मिलेगी. मुहम्मदी अल्लाह किस क़द्र ज़ालिम और बेरहम है.    

जन्नत और दोज़ख़ इंसान के दिल में होता है, ये कहीं बाहर नहीं है. 
वह नादानों का दिल दहला कर इंसानियत का ख़ून कर रहे हैं.   
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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