Tuesday 14 August 2018

Hindu Hindu Dharm Darshan 213



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (17)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
 इस लिए हे भरतवंशियों में श्रेष्ट अर्जुन ! 
प्रारंभ में ही इन्द्रियों को वश में करके, इस पाप के महा प्रतीक (काम) का दमन करो और ज्ञान तथा आत्म साक्षातार के इस विनाश करता का बद्ध करो. 
इस प्रकार हे महाबाहु अर्जुन ! 
अपने आपको भौतिक इन्द्रियों, मन तथा बुद्धि से परे जान कर और मन को सावधान आघ्यात्मिक बुद्धि (कृष्ण भावनामृत) से स्थिर करके आघ्यात्मिक शक्ति द्वारा इस काम रुपी दुर्जेय शत्रु को जीतो.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -3 - श्लोक -41-43 
*काम अर्थात संभोग, 
संभोग स्त्री और पुरुष (Male Female) का ऐसा खेल है जिस को भोगने का आनंद दोनों को बराबर बराबर मिलता है. 
सम+भोग=सम्भोग. बिलकुल उचित नाम है इस क्रिया क्रम का . 
उर्दू में संभोग को मुबाशरत कहते हैं. मुबाशरत शब्द बशर से बना है . 
मुबाशरत यानी बशर की उत्पत्ति. 
कहने का मतलब है कि केवल मुबाशरत से ही इंसान के वजूद का सिलसिला जारी रह सकता है, 
वरना मानव जीव अलविदा. 
मुबाशरत और संभोग के लिए इंसान ही नहीं हैवान भी जान की बाज़ी लगा देते हैं.
धरती का हर जीव मुबाशरत और संभोग के लिए उत्साहित रहता है. 
इस में इतनी लज्ज़त क़ुदरत ने क्यों भर दी ? 
इस लिए कि जीवन का सिलसिला इस धरती पर कायम रहे. 
क़ुदरत दुन्या को जीवित रखना चाहती है. 
भगवान कृष्ण काम यानी मुबाशरत और संभोग को 
"पाप के महा प्रतीक (काम) का दमन" क्यों आदेशित करते हैं ? 
क्या उद्देश, क्या मकसद है उनका ? 
अगर उनके आज्ञा का पालन सारी मानव जाति करने लगे तो 40-50 सालों बाद मानव जाति का The End .

और क़ुरआन कहता है - - - 
क़ुरआन मुबाशरत और संभोग को प्रोत्साहित करता है. क़ुरआनमें ब्रम्हचर्य गुनाह है. एक ही नहीं चार चार निकाह की छूट देता है. बेवा से शादी को अव्वलिल्यत देता है ताकि मुबाशरत और संभोग जारी रहे.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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