Monday 20 August 2018

सूरह फ़ुरक़ान-25 क़िस्त-2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सू रहफ़ुरक़ान-25 
क़िस्त-2

"और जिस रोज़ अल्लाह तअला इन काफ़िरों को और उनको जिन्हें वह अल्लाह के सिवा पूजते हैं, जमा करेगा और फ़रमाएगा कि क्या तुमने हमारे बन्दों को गुम राह किया है? या ये ख़ुद गुम राह हो गए थे ? माबूदैन (पूज्य) कहेंगे कि मअज़ अल्लाह मेरी क्या मजाल कि हम आप के सिवा किसी को कारसाज़ तजवीज़ करते. लेकिन आपने इनको और इनके बड़ों को आसूदगी दी यहाँ तक कि वह आपको भुला बैठे और ख़ुद ही बर्बाद हो गए. अल्लाह तअला कहेगा कि लो तुम्हारे मअबूदों ने तुम को तुम्हारी बातों में ही झूठा ठहरा दिया तो अब अज़ाब को न तुम टाल सकते हो न मदद दिए जा सकते हो"
सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (17-19)

मुहम्मद की चाल-घात इन आयतों में उन पर खुली लअनत भेज रही हैं  कि जिन मिटटी की मूर्तियों को वह बे हुनर और बेजान साबित करते है वही अल्लाह के सामने जानदार होकर मुसलमान हो जाएँगी और अल्लाह से  गुफ़्तगू करने लगेंगी और अल्लाह की गवाही देने लायक़ बन एँगी.

"मअज़ अल्लाह मेरी  क्या मजाल कि हम आप के सिवा किसी को कारसाज़ तजवीज़ करते" 
माबूदैन की पहुँच अल्लाह तक है तो काफ़िर उनको अगर वसीला बनाते हैं तो हक़ बजानिब हुवे.


   "वह यूँ कहते हैं कि हमारे पास फ़रिश्ते क्यूँ नहीं आते या हम अपने रब को देख लें. ये लोग अपने आप को बहुत बड़ा समझ रहे है और ये लोग हद से बहुत दूर निकल गए हैं. जिस रोज़ ये फरिश्तों को देख लेंगे उस रोज़ मुजरिमों के लिए कोई ख़ुशी की बात न होगी. देख कर कहेंगे पनाह है पनाह."

सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (22)
ऐसी आयतें इंसान को निकम्मा और उम्मत को नामर्द बनाए हुए हैं. 
दुनिया की तरक़्क़ी में मुसलमानों का कोई योगदान नहीं. 
ये बड़े शर्म की बात है
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"और जिस रोज़ आसमान बदली पर से फट जाएगा, और फ़रिश्ते बकसरत उतारे जाएँगे उस रोज़ हक़ीक़ी हुकूमत राहमान की होगी. और वह काफ़िर पर सख्त़ दिन होगा, उस रोज़ ज़ालिम अपने हाथ काट काट  खाएँगे. और कहेंगे क्या ख़ूब होता रसूल के साथ हो लेते."
सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (26-27)

अल्लाह का इल्म मुलाहिजा हो, उसकी समझ से बादलों के ठीक बाद आसमान की छत छाई हुई है जो फट कर फरिश्तों को उतारने लगेगी.  

इस अल्लाह को हवाई सफ़र कराने की ज़रुरत है, 
कह रहे हैं कि "उस रोज़ हक़ीक़ी हुकूमत राहमान की होगी" 
जैसे कि आज कल दुन्या में उसका बस नहीं चल पा रहा है. 
अल्लाह ने काफ़िरों को ज़मीन पर छोड़ रक्खा है कि हैसियत वाले बने रहो कि जल्द ही आसमान में दरवाज़ा खुलेगा और फ़रिश्तों की फ़ौज आकर फटीचर मुसलमानों का साथ देगी. 
काफ़िर लोग हैरत ज़दः  होकर अपने ही हाथ काट लेंगे और पछताएँगे कि कि काश मुहम्मद को अपनी ख़ुश हाली को लुटा देते. 
चौदः  सौ सालों से मुसलमान फटीचर का फटीचर है और काफ़िरों की ग़ुलामी कर रहा है, यह सिलसिला तब तक क़ायम रहेगा जब तक मुसलमान इन क़ुरआनी आयतों से बग़ावत नहीं कर देते.

"नहीं नाज़िल किया गया इस तरह इस लिए है, ताकि हम इसके ज़रीए से आपके दिल को मज़बूत रखें और हमने इसको बहुत ठहरा ठहरा कर उतारा है. और ये लोग कैसा ही अजब सवाल आप के सामने पेश  करें, मगर हम उसका ठीक जवाब और वज़ाहत भी बढ़ा हुवा आपको इनायत कर देते हैं."

सूरह फ़ुरक़ान-25 आयत (32-33)
अल्लाह की कोई मजबूरी रही होगी कि उसने क़ुरआन को आयाती टुकड़ों में नाज़िल किया, वर्ना उस वक़्त लोग यही मुतालबा करते थे कि यह आसमानी किताब आसमान से उड़ कर सीधे हमारे पास आए या मुहम्मद आसमान पर सीढ़ी लगाकर चढ़ जाएँ और पूरी क़ुरआन लेकर उतरें. मुहम्मद का मुँह जिलाने वाली बातें इसके जवाब में ये होती कि तुम सीढ़ी लगा कर जाओ और अल्लाह को रोक दो कि मुहम्मद पर ये आयतें न उतारे. इस जवाब को वह ठीक ठीक कहते है बल्कि वज़ाहत भी बढ़ा हुवा.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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