Wednesday 8 August 2018

Soorah Mominoon 23 Q 3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
***********

सूरह मोमिनून- २३
क़िस्त-3

मुसलमानों!
तुम बदरजहा बेहतर हो हिदुओं से जिसका तजज़िया मैं ईमान दारी के साथ कर रहा हूँ, 
जो जग-जाहिर है - - -
१-तुम्हारे अंदर छुवा छूत नहीं है जो हिदुओं में कोढ़ की तरह फैला हुवा है और उसके शिकार तुम भी हो कि स्वर्ण तुम से भी परहेज़ करते हैं, 
दलितों जैसा. 
यह बात अलग है हिदुओं के देखा देखी गाँव और क़स्बों में तुम भी दलितों की तौहीन करते हो.
२- तुम निस्बतन शराब कम पीते हो,औरों से.
३- तुम दहेज़ के कारण बहुओं को जला कर नहीं मारते. 
न ही तुम में सती प्रथा थी.
4-तुम बहन बेटियों को बेवा हो जाने के बाद पंडों के हवाले नहीं करते, बल्कि उनको किसी मर्द से दुबारा शादी करा देते हो.
५-तुम हिदुओं की तरह ढोंगी बाबाओं के शिकार नहीं, 
और हज़ारो भगवानो और तीर्थों तुम में निस्बतन कम है.
६-इसके आलावा बहुत से सलीके इस्लामी कल्चर ने तुम्हे बख़्शे हैं 
जो हिन्दुओं से बरतर और बेहतर हैं.
मगर इसी इस्लाम ने बहुत सी बुरी बातें तुम्हें घुट्टी में पिला रक्खा है. 
इसकी वजह से तुम दुन्या की पसमांदा क़ौम बन कर  रह गए हो जिसकी वजह से सारा ज़माना तुम्हारा दुश्मन बना हुवा है. 
मैं बड़े यक़ीन से कह सकता हूँ कि हर मुसलमान जुज़्वी तौर पर कुछ न कुछ तालिबानी होता है, क्यूंकि तालिबानियत ही सच्चा इस्लाम है. इस्लाम के बुनयादी शर्तें हैं - - -
१ तुम ग़ैर मुस्लिमों से जिहाद करो, मर गए तो सीधे जन्नत धरी हुई है. शबाब, शराब वहां इफ़रात है.
२-ज़िन्दा बचे तो लूट-पाट में मिले माल को तुम्हारा अल्लाह तुम्हारे लिए ग़नीमत किए हुए है.
इस्लाम के मुताबिक़ ग़ैर मुस्लिम या तो इस्लाम क़ुबूल करके हमारे इदारों को टैक्स दे या फिर जज़िया दे या तो फिर हम से जंग करे.
इस फ़ॉर्मूले से इस्लाम बहुत कामयाब रहा 
जब तक महेज़ तीर और तलवार का ज़माना था. 
इसके बाद गंगा उलटी बहने लगी. ज़माना बंदूकों और बमों का आ गया. साइंस और मंतिक की इस्लाम इजाज़त नहीं देता. 
ग़रज़ तअलीम जदीद के मैदान में मुसलमान बहुत पीछे है.
नतीजतन आज तक इस्लाम को ओढ़ने और बिछाने वाली क़ौम ने एक सूई तक ईजाद नहीं की. पसपाई इसकी क़िस्मत बन गई है.

लौकिक और फ़ितरी सत्य ही, बिना किसी संकोच के सत्य है. 
अलौकिक या ग़ैर फ़ितरी सत्य पूरा का पूरा असत्य है. 
धर्म और मज़हब की आस्था और अक़ीदा कल्पित मन गढ़ंत का रूप मात्र हैं. इस रूप पर अगर कोई व्यक्तिगत रूप में विश्वास करे तो करे, 
इसमें उसका नफ़ा और नुक़सान है, मगर इसे प्रसार और प्रचार बना कर आर्थिक साधन बनाए तो ये जुर्म के दायरे में आता है. 
व्यक्ति की व्यक्तिगत आस्था व्यक्ति तक सीमित रहे तो उसे इसकी आज़ादी है, मगर दूसरों में प्रवाहित किया जाय तो आस्थावान दुष्ट और साज़िशी है. 
ऐसे धूर्तों को जेल की सलाखों के अंदर होना चाहिए. 
देश का ऐसा संविधान बने कि सिने-बलूग़त और प्रौढ़ता तक बच्चों को कोई धार्मिक या दृष्टि कौणिक यहाँ तक कि विषय विशेष की तअलीम देने पर प्रतिबंध हो ताकि व्यस्क होने पर वह अपना हक़ सुरक्षित पाए. 
हमारा समाज ठीक इसके उल्टा है. बच्चों के बालिग़ होने तक उसको हिन्दू और मुसलमान बना देता है. यह तरबियत और संस्कार उसके हक़ में ज़ह्र है. मुसलमानों को इसकी ताक़ीद है कि बच्चा अगर कलिमा गो ना हुवा तो माँ  बाप को जहन्नम में दाख़िल कर दिया जायगा. इस क़ौम की पामाली इस नाक़िस अक़ीदे के तहत भी है.

आइए देखें कि क़ुरआनी अल्लाह क्या कहता है - - -

''और तुम सब उसी के पास ले जाए जाओगे जो जलाता है और मारता है और उसी के अख़्तियार में है दिन का घटना बढ़ना. सो क्या तुम नहीं समझते?''
सूरह मोमिनून- २३- (80)
यक़ीनी तौर पर कहा जा सकता है कि इस आयत का ख़ालिक़ नशेडी रहा होगा. अपने रब को ऐसे रुसवा करना मुहम्मद को ही शोभा देता है. क्यूं कि वह मुतलक़ जाहिल थे और तलवार की नोक से उनकी बातें क़ुरआन बन गई हैं. देखिए कि ये नशीली आयतें कब तक क़ौम को अपने बस में किए राहती. ख़ालिक़ कभी अपने मख़लूक़ को जलाता है न मारता है.

''आप कह दीजिए ये ज़मीन और जो इसपे राहते है, ये किसके हैं, अगर तुम को कुछ ख़बर है, वह ज़रूर कहेंगे कि अल्लाह के, उनसे कह दीजए कि फिर क्यूँ नहीं ग़ौर करते. और आप ये भी कहिए कि वह सात आसमानों का मालिक और आला अर्श का मालिक कौन है, वह ज़रूर जवाब देंगे कि अल्लाह का सब है आप कहिए कि फिर डरते क्यूं नहीं."
सूरह मोमिनून- २३- (85-87)

मुहम्मद की बातों पर ग़ौर करो जो कि अल्लाह की ज़ात से वाबिस्ता हैं और जो आज तक राज़ बना हुवा है. जहाँ तक इल्म इंसानी पहुंची है, ये ख़बर देती है कि आसमान तो एक ही है, सात आसमान अक़ली गद्दा है. ज़मीन जिसको बार बार क़ुरआन एक बतलाता है वह लाखों है, हमारी इस ज़मीन से हज़ारों गुना बड़ी. जितने तारे आसमान पर दिखाई देते हैं सब ज़मीन ही हैं. मुहम्मद कह रहे हैं कि अगर अल्लाह को मान रहे हो तो उसके रसूल को क्यूँ नहीं? ख़ुद को ज़बरदस्ती अल्लाह का रसूल मनवाने वाले ये थोड़ी सी अक़्ल की बात भी तो करते. उनको मानने का मतलब हुवा कि उनकी उम्मियत को माना जाय जोकि नस्ल ए इंसानी के साथ जब्र करने के बराबर होगा.
वह काफ़िर ख़ुद इन आयतों में गवाह हैं कि वह सभी हाँ भर रहे हैं कि सब का मालिक अल्लाह है, हुज्जत है उनके मशविरे से उससे डरो, वह तो ऐसा नहीं कहता, आप कहते हैं कि अगर उससे डरते हो तो मुझ से डरो.

''सो जिस शख़्स का पल्ला भारी, सो ऐसे लोग कामयाब होंगे और जिसका पल्ला हल्का होगा सो ये वह लोग होंगे जिन्हों ने अपना नुक़सान कर लिया और हमेशा जहन्नम में रहेंगे. इनके चेहरों को आग झुलसाती होगी और इसमें इनके मुंह बिगड़े हुए होंगे. 
क्यूँ? 
क्या तुम को हमारी आयतें पढ़ कर सुनाई नहीं जाया करती थीं? और तुम इनको झुटलाया करते थे. वह कहेंगे ऐ हमारे रब ! हमारी बद बख़ती ने हमें घेर लिया था और हम गुम राह लोग थे. ऐ हमारे रब हमको इसमें से निकाल लीजिए. फिर अगर दोबारा करें तो बे शक हम पूरे गुनाह गार होंगे . इरशाद होगा कि इस में रांदे हुए पड़े रहो और मुझ से बात न करो.''
सूरह मोमिनून- २३- (102-108)

साज़िशी अल्लाह ही पल्लों को हल्का और भारी किए हुए है. 
अल्लाह की आयतों में कहीं कौड़ी भर भी दम है? 
कि जिसको झुटलाया न जाए. 
जिस मख़लूक़ के मुंह इस दुन्या में ही तेरी जिहालत ने बिगाड़ दिए हों, उनका क़यामत पर कौन देखने वाला होगा? 
वहां को तो तू ख़ुद, नफ़्सी नफ़्सी के फ्रेम में जड़ता है. 
इस मुहम्मदी अल्लाह की जालसाज़ी से तो कोई हक़ ही मुसलामानों को बचा सकता है.

''इरशाद होगा कि तुम बरसों के शुमार से किस क़दर मुद्दत ज़मीन पर रहे होगे? दोज़ख़ी जवाब दें गे कि एक दिन या इससे भी कम रहे होंगे गिनने वालों से पूछ लीजिए इरशाद होगा तुम थोड़े ही मुद्दत रहे, क्या ख़ूब होता कि तुम समझते होते. हाँ तो क्या तुमने ये ख़याल किया कि हमने तुम को यूं ही मोह्मिल पैदा कर दिया और ये कि तुम हमारे पास नहीं ले जाओगे? सो अल्लाह बहुत आली शान है और अर्श ए अज़ीम का मालिक है.
सूरह मोमिनून- २३- (111-16)

मुसलामानों !
पका अल्लाह एक ज़ालिम बाप की तरह है जिसने औलादें पैदा कीं कि उन पर हुक्मरानी करेगा, मनमानी करेगा, सितम ढाएगा, मारेगा पीटेगा, जलाएगा और तरह तरह के मज़ालिम करेगा. हर वक़्त उसके खौ़फ़ में मुब्तिला रहो, 
इसके अलावा काम धाम, मेहनत मशकक़त के इरशादात हैं कहीं? 
दुन्या के ऐशो-आराम तो काफ़िरों को उधार दिए राहता है और तुमको ऊपर के वादों में फँसाए राहता है. 
ऐसा तो नहीं कि तुम्हारा अल्लाह और उसका रसूल दीगर क़ौमों के एजेंट हों? इसी तरह मनुवाद बर्रे सग़ीर के आदिवासियों, अछूतों और दलितों के लिए पूर्व जन्म का लेखा जोखा बतला कर सदियों से सवर्णों को दास बनाए हुवे है. 
आप का अल्लाह आपका पुनर जन्म की हालत में रख़ता है 
और उनका ईश्वर उनको पूर्व जन्म कि डोरी में बंधे हुए है. 
दोनों के धर्म गुरू अपने वर्तमान को उज्जवल किए हुए हैं.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment