Monday 27 August 2018

Soorah e shoara 26 – Q -3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
************
सूरह -शोअरा 26
क़िस्त-3

पिछले बाब में आपने मूसा की गाथा मुहम्मद के ज़ुबानी सुनी जो कि मुसलमानों को बतलाया गया और जिस पर हर मुसलमान ईमान रख़ता है, यह बात और है कि ऐतिहासिक सच कुछ और ही है. 
इसके बाद मुहम्मद अब्राहम को पकड़ते हैं जो अपने बाप को एक ईश्वरीय नुक़ते को समझाता और धमकता है. 
बाप आज़र मशहूर संग तराश था जिसके वंशजों की मूर्ति रचनाएँ आज भी मिस्र की शान बनी हुई है, 
वह बाप एक चरवाहे की बात और डांट को सुनता है. 
जो कि अपने पोते यूसुफ़ की वजह से मशहूर हुवा. 
(क्यूँकि  यूसुफ़ मिस्र के शाशक फ़िरऔन का मंत्री बना). 
इब्राहीम बाप के लिए मुजस्सम मुहम्मद बन जाता है और उसके लिए मुक्ति की दुआ माँगता है जैसे मुहम्मद ने ख़ुद अपने चचा के लिए दुआ माँगी थी.
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (10-68) 

इसके बाद नूह का नंबर आता है और अल्लाह उनका क़िस्सा एक बार फिर दोहराता है, फिर आद और हूद पर आता है और उनके नामों का ज़िक्रे-ख़ास भर कर पाता है. 
मुहम्मदी अल्लाह ऊँची ऊँची इमारतों की तामीर को गुनाह ठहराते हुए मुसलमानों को ऐसा पाठ पढ़ाता है कि आज भी तरक़्क़ी याफ़्ता क़ौमों के सामने वह झुग्गियों में राहक़र गुज़र बसर कर रहे हैं. 
मवेशी, बाग़बानी, और औलादों की बरकतों की फ़ैज़याबी से मुसलमानों को नवाज़ते हुए मुहम्मद अपना दिमागी तवाजुन खो बैठते हैं और जो मुँह में आता है, बकते चले जाते हैं, जो ऐसे ही क़ुरआन  बनता चला जाता है. अपने इर्द गिर्द के माहौल को दीवाने की तरह बड़बड़ाते हुए कहते हैं
"वह लोग कहने लगे यूँ कि तुम पर तो किसी ने बड़ा जादू कर दिया है, तुम तो महेज़ हमारी तरह एक आदमी हो. और हम तो तुम पर झूठे लोगों का ख़याल करते हैं, सो अगर तुम सच्चे हो तो हम पर कोई आसमान का टुकड़ा गिरा दो."
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (69-178) 

"और ये क़ुरआन रब्बुल आलमीन का भेजा हुवा है. इसको अमानत दार फ़रिश्ता लेकर आया है, आपके क़ल्ब पर साफ़ अरबी ज़बान में, ताकि आप मिनजुम्ला डराने वालों में हों और इसका ज़िक्र पहली उम्मतों की किताबों में है . क्या इन लोगों के लिए ये बात दलील नहीं है कि इसको इन के ओलिमा बनी इस्राईल जानते हैं"
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (191-97) 

रब्बुल आलमीन गर्म हवाओं का क़हर भेजता है, 
ठंडी हवाओं की लहर भेजता है, 
सैलाब और तूफ़ान भेजता है, 
साथ साथ ख़ुश गवार सहर भेजता है. 
भूचाल और ज्वाला मुखी भेजता है, 
सूखा और बाढ़ भेजता है, 
सोने की खानें भेजता है, 
हासिल कर सकते हो तो करो. 
किताब कापी वह जानता भी नहीं, 
न कोई भाषा और न कोई लिपि को वह समझता है. 
उसने एक निज़ाम बना कर अपने मख़लूक़ के लिए सिद्क़ और सदभाव की चुनौती दी है. 
उसने हर चीज़ को फ़ना होने का ठोस नियम भेजा है,उसके ज़हरों और नेमतों को समझो, और उसका मुक़ाबिला करो. 
इसी उसूल को मान कर मग़रिबी दुन्या आज फल फूल रही है 
और मुसलमान क़ुरआनी जेहालातों में मुब्तिला है. 
मुहम्मद एक नाक़बत अंदेश का सन्देशा लेकर पैदा हुए 
और करोरों लोगों को गुम राह करने में कामयाब हुए.

"फिर वह उनके सामने पढ़ भी देता, ये लोग फिर भी इसको न मानते. हम ने इसी तरह इस ईमान न लाने वालों को, इन नाफ़र्मानों के दिलों में डाल रख्खा है, ये लोग इस पर ईमान न लाएँगे, जब तक कि सख्त़ अज़ाब को न देख लेंगे, जो अचानक इन के सामने आ खड़ा होगा और इनको ख़बर न होगी."
सूरह - शोअरा २६ - आयत  (199-201) 

मुहम्मद अनजाने में अपने अल्लाह को शैतान साबित कर रहे हैं जो इंसानों के दिलों में वुस्वसे पैदा करता है. किस क़द्र बेवक़ूफ़ी की बातें करते है? क्या ये कोई पैग़म्बर हो सकते है. 
अगर ये अल्लाह का कलाम है तो कोई दीवाना ही मुसलमानों का अल्लाह हो सकता है. 
जागो मुसलमानों! 
तुम क़ुरआनी इबारतों को समझो और अपने गुमराहों को राह दिखलाओ. 

"और जितनी बस्तियां हमने ग़ारत की हैं, सब में नसीहत के वास्ते डराने वाले आए और हम ज़ालिम नहीं हैं और इसको शयातीन लेकर नहीं आए, और ये इनके मुनासिब भी नहीं, और वह इस पर क़ादिर भी नहीं, क्यूँकि वह शयातीन सुनने से रोक दिए गए हैं, सो तुम अल्लाह के साथ किसी और माबूद की इबादत न करना, कभी तुम को सज़ा होने लगे और आप अपने नज़दीक के क़ुनबे को डराइए "
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (209-214) 

पूरे क़ुरआन में सिर्फ़ क़ुरआन की अज़मतें बघारी गई हैं, 
कौन सी अज़मतें है? 
इसको मुहम्मद बतला भी नहीं पा रहे. 
शैतान मियाँ को क़ुरआन ने अल्लाह मियाँ का सौतेला भाई बना रख्खा है. 
ताक़त में उन्नीस बीस का फ़र्क़ है. 

उम्मी के ज़ेह्नी भंडार में इतने शब्द भी नहीं की डराने के बजाए कोई इनके मक़सद को छूता हुवा लफ़्ज़ होता जिससे  इनकी बातें और भाषा में कमी न होती , 
बल्कि मुनासिबत होती.  

"और अगर ये लोग आपकी बात को न मानें तो कह दीजिए मैं आपके अफ़आल  से बेज़ार हूँ, और आप अल्लाह क़ादिर और रहीम पर तवक्कुल कीजिए "
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (216-17)  

उस वक़्त के ज़हीन लोगों से ख़ुद मुहम्मद बेज़ार थे या उनका लाचार अल्लाह? 
जोकि रब्बुल आलमीन है. 
नाफ़रमान काफ़िरों से अल्लाह कैसे खिसया रहा है. 
सब मुहम्मद की कलाकारी है.

"और शायरों की  राह तो बे राह लोग चला करते हैं और क्या तुमको मालूम नहीं शायर ख़याली मज़ामीन के हर मैदान में हैरान फिरा करते हैं और ज़ुबान से वह बातें कहते हैं, जो करते नहीं. हाँ ! जो लोग ईमान लाए और अच्छे काम किए और अपने अशआर में कसरत से अल्लाह का ज़िक्र किया."
सूरह -शोअरा २६ - आयत  (224-27) 

मुहम्मद ख़ुद उम्मी शायर थे. 
क़ुरआन उनकी ऐसी रचना है जो तुकान्तों में है, 
तुकबंदी करने में ही वह नाकाम रहे. 
अपनी शायरी में मअनी ओ मतलब पैदा करने में नाकाम रहे. 
लोग उनको शायरे-मजनू कहते थे. 
अपनी इस फूहड़ गाथा को अल्लाह का कलाम बतला कर अपनी एडी की गलाज़त को, 
अल्लाह की एडी में लगा दिया. 
मुहम्मद उल्टा शायरों पर बेहूदा आयतें गढ़ते हैं ताकि इन पर मुतशायरी का इलज़ाम न आए .
काश कि मुहम्मद पूरे शायर होते और साहिबे फ़िक्र भी. 
उनके कलाम में इतना दम होता कि ग़ालिब कह पड़ता - - -

देखना तक़रीर लज़्ज़त की, कि जो उसने कहा,
मैं ने ये जाना कि गोया, ये भी मेरे दिल में था.

***



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

No comments:

Post a Comment