Thursday 30 August 2018

सूरह नम्ल 27 क़िस्त-1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नम्ल 27
क़िस्त-1

आइए देखें मुहम्मदी क़ुरआन के जालों में बुने हुए फन्दों को - - -

मुहम्मद ने इस सूरह में देव और परी की कहानी गढ़ी है. 
इस्लामी बच्चे इस कहानी को अल्लाह के बयान किए हुए हक़ायक़ मानते हैं और इस पर इतना ईमान और यक़ीन रखते हैं कि वह बालिग़ ही नहीं होना  चाहते. 
ये कहानी मशहूर-ज़माना यहूदी बादशाह सोलेमन (सुलेमान) की है. 
इस कहानी की हक़ीक़त के साथ साथ तारीख़ी सच्चाई तौरेत में तफ़सील के साथ बयान किया गया है, जिसे मुहम्मद ने पूरी तरह  से बदल कर क़ुरआन  बनाया है. 
मुहम्मद का तरीक़ा ये रहा है कि उन्होंने हर यहूदी हस्ती को लिया और उसके नाम की कहानी ऐसी गढ़ी कि जिसका तौरेती हक़ीक़त से कोई लेना देना नहीं. 
अपनी गढंत को अल्लाह से गवाही दिला दिया है और असली तौरेत और इंजील को नक़ली बतला दिया. इनके इस बदलाव में मज़मून में कोई सलीक़ा होता तो भी मसलहतन माना जा सकता था, 
मगर देखिए  कि उनका ज़ेह्नी मेयार कितना पस्त है - - -

"ता-सीन"
यह कोई इशारा है जिसे आज तक कोई नहीं समझ सका, 
बस अल्लाह ही बेहतर जाने, कह कर आलिमान आगे बढ़ लेते हैं, 
गोया मंतर है सूरह शुरू करने से पहले दोहराने का.

"ये आयतें हैं क़ुरआन  की और एक वाज़ह किताब की. ये ईमान वालों के लिए हिदायत और ख़ुश ख़बरी सुनाने वाली है."
सूरह नम्ल २७- आयत (1).

ये आयतें हैं क़ुरआन की जो कि एक ग़ैर वाज़ह किताब है और इस में सब कुछ मुज़ब्ज़ब है जिसमे अल्लाह के रसूल को बात कहने का सलीक़ा तक नहीं है, 
आयातों में कोई दम नहीं है, जो कुछ है सब मुहम्मद का बका हुआ झूट है.
ये किताब आज इक्कीसवीं सदी में भी लोगों को गुमराह किए हुए है. मुहम्मद की दी हुई तरबियत में कुछ लोग अवाम के सीने पर तालिबान बने खड़े हुए हैं.
यही ख़ुश ख़बरी है ऐ मज़लूम मुसलमानों.  

अल्लह मुसलमानों को इस्लाम पर चलने की ताक़ीद करता है और बदले में आख़िरत की तस्वीर दिखलाता है. अल्लाह मुहम्मद  को मूसा की याद दिलाता है, 
जब वह अपने परिवार के साथ सफ़र में होते हैं - - - 
"मैंने एक आग देखी है मैं अभी वहाँ से कोई ख़बर लाता हूँ. तुम्हारे पास आग का शोला किसी लकड़ी वग़ैरा में लगा हुवा लाता हूँ ताकि तुम सेंको. सो जब इसके पास पहुंचे तो उनको आवाज़ दी गई कि जो इस आग के अंदर हैं, उन पर भी बरकत हो और जो इसके पास है, उसपर भी बरकत हो, और रब्बुल आलमीन पाक है. ऐ मूसा बात ये है कि  मैं जो कलाम करता हूँ , अल्लाह हूँ ज़बरदस्त हिकमत वाला, और तुम अपना असा डाल दो सो जब उन्हों ने इसको इस तरह  हरकत करते हुए देखा जैसे सांप हो तो पीठ फेर कर भागे और पीछे मुड़ कर भी न देखा. ऐ मूसा डरो नहीं हमारे हुज़ूर में पैग़म्बर नहीं डरा करते.हाँ! मगर जिससे क़ुसूर हो जावे फिर नेक काम करे तो मैं मग़फ़िरत करने वाला हूँ . - - -
सूरह नम्ल २७- आयत  (3-16). ) 

क़ुरआन के अल्लाह बने मुहम्मद, 
इस वक़्त आयतों में वज्द की हालत में हैं, 
कुछ बोलना चाहते हैं और मुँह से निकल रहा है कुछ, 
तर्जुमे के कारीगर मौलानाओं ने इस में पच्चड़ लगा लगा कर 
इन मुह्मिलात में मअनी भरा दिया . 
अभी पिछले बाब में मूसा के बारे में जो बयान किया गया है, उसी को यहाँ पर दोहराया गया है, और आगे भी कई बार दोहराया जाएगा. 
मुसलमानों की नज़ात का एक ही इलाज है कि क़ुरआन इनको मार-बाँध कर सुनाया जाय, 
जब तक कि ये मुन्किरे-क़ुरआन न हो जाएँ.

"हज़रत सुलेमान के पास बहुत बड़ी फ़ौज थी जिसमे आदमियों के अलावा जिन्न और परिंदों के दस्ते भी थे और कसरत से थे कि जिनको चलाने के लिए निज़ामत की जाती थी. लश्करे सुलेमानी जब चीटियों के मैदान में आया तो वह आपस में बातें करने लगीं कि अपने अपने बिलों में गुस जाओ कि लश्करे-सुलेमानी तुमको कहीं कुचल न डाले. सुलेमान ये सुनकर मुस्कुरा पड़े."
सूरह नम्ल २७- आयत (17-18).

कहते हैं मैजिक आई घुप अँधेरे में बड़ी ख़ूबसूरत दिखाई पड़ती है, 
जैसे कि नादान और निरक्षर क़ौमों में जादूई करिश्में. 
मुहम्मद इन्हें सुलेमानी लश्कर में जिन्न और परिंदों के दस्ते शामिल बतला रहे हैं, मुसलमान इस पर यक़ीन करने पर मजबूर है. 
चीटियों की ख़ामोश झुण्ड में मुहम्मद उनकी  गुफ़्तगू सुनते हैं और सुलेमान को मुस्कुराते हुए लम्हे की गवाही देते हैं. 
यह तमाम ग़ैर फ़ितरी बातें ही मुसलमानों की फ़ितरत में शामिल हैं, 
इन्हें कैसे समझाया जाए? 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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