Friday 31 August 2018

सूरह नम्ल २७ क़िस्त-2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह नम्ल २७
क़िस्त-2

क़ुरआन में अल्लाह ने देव परी के क़िस्से कितने फूहड़ तरीक़े से सुनाए हैं, आप भी पढ़ें - - - 

"एक बार यूँ हुआ कि सुलेमान ने परिंदों की हाज़िरी ली, पाया कि हुद हुद ग़ायब है. वह इसकी ग़ैर हाज़िरी पर बहुत बरहम हुए और कहा कि इसकी सज़ा इसको सख्त़ मिलेगी. या तो उसको मैं ज़िबह कर डालूँगा या तो वह आकर कोई हुज्जत पेश करे. सो थोड़ी देर में वह आ गया और कहने लगा मैं ऐसी ख़बर लेकर आया हूँ जिसकी ख़बर आप को भी नहीं है, मैं क़बीला-ए-सबा से एक तहक़ीक़ ख़बर लाया हूँ. मैं ने एक औरत को देखा कि वह लोगों पर हुकूमत कर रही है और इसके यहाँ अश्या-ए-ऐश मुहय्या है और उसके यहाँ एक बड़ा तख़्त है. मैंने देखा उसको और उसके क़ौम को कि अल्लाह की इबादत को छोड़ कर सूरज को सजदा कर रहे हैं. वह राहे-हक़ पर नहीं चलते, शैतान ने उन्हें रोक रक्खा है."
सूरह नम्ल २७- आयत (20-24).

इसके बाद कुछ देर के लिए मुहम्मद की ज़बान हुद हुद की चोंच में आ जाती है और वह करने लगती है तबलीग़-इस्लाम - - -
"सुलेमान ने दास्तान सुन कर कहा, देख लेते है कि तू सच बोलता है या झूट तू मेरा एक ख़त दरबार में छोड़ कर, सुन कि वहां क्या सवाल जवाब होते हैं."
सूरह नम्ल २७- आयत (28).

(हुद हुद हुक्म बजाते हुए सुलेमान के ख़त को मलका ए बिलक़ीस के महल में डाल कर रद्दे अमल का इंतज़ार करता है. बिलक़ीस ख़त उठाती है और इसे पढ़ कर दरबार तलब करती है.)
"ए लोगो! सुलेमान का यह ख़त आया है जिसमें सब से पहले लिखा है 'बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम' तुम लोग मेरे बारे में ज़्यादः तकब्बुर न करो और मती हो कर चले आओ. मलका ने अपने दरबारियों से पूछा कि तुम लोगों की क्या राय है? तुम लोगों के मशविरे के बग़ैर तो मैं कोई काम करती नहीं, बोलो कि हमें क्या करना चाहिए? दरबारी कहने लगे वैसे हम लोग बहादर हैं और बेहतर फ़ौजी हैं मगर तुम्हारी मसलेहत क्या कहती है? फ़ैसला करके हम को हुक्म दो. बिलक़ीस बोली वालियान मुल्क जब किसी बस्ती में दाख़िल होते हैं तो इसे तहो-बाला कर देते है और इसमें रहने वाले इज्ज़त दार लोगों को ज़लील करते हैं और वह लोग भी ऐसा करेंगे. मैं उन लोगों के पास कुछ हदिया भेजती हूँ, फिर देखती हूँ कि वह फ़रिस्तादे क्या लाते है, सो वह फ़रिस्तादा जब सुलेमान के पास पहुंचा तो सुलेमान ने फ़रमाया क्या तुम लोग मॉल से मेरी इमदाद करना चाहते हो?  सो अल्लाह ने मुझे जो कुछ दे रक्खा है, वह इससे बहुत बेहतर है, हाँ तुम ही अपनी इस हदिया पर इतराते हो."
सूरह नम्ल २७- आयत (29-36).

'बिस्मिल्लाह हिर्रहमान निर्रहीम'
अल्लाह के ये नाम मुहम्मद का रक्खे हुए है जिसको यहूदी बादशाह के मुंह से कहलाते हैं. 
किस क़द्र झूट और मक्र के पुतले थे ? 
वह जिनको मुसलमान सल्लाल्हो-अलैहे-असल्लम कहते हैं.
(अगली क़िस्त में तौरेती सुलेमान की हक़ीक़त होगी जिससे ऐसे मन गढ़ंत का कोई तअल्लुक़ नहीं.)


बिलक़ीस के दूतों का अपमान करते हुए सुलेमान उन्हें वापस कर देता है - - - 
उसके बाद कहानी का सिलसिला मुलाहिजा हो  -  - -
बादशाह सुलेमान से मुहम्मद अपनी क़ाबिलयत उगलवाते हैं - - -

"सो हम उन पर ऐसी फौजें भेजते हैं कि उन लोगों से उन का ज़रा मुक़ाबिला न हो सकेगा और हम वहाँ से उनको ज़लील करके निकाल देगे और वह मातहत हो जाएँगे. सुलेमान ने फ़रमाया ऐ अहले दरबार तुम में से कोई ऐसा है कि उस बिलक़ीस का तख़्त, क़ब्ल  इसके कि वह लोग मेरे पास आएँ, मती (आधीन) होकर आएँ, हाज़िर कर दे ?
 एक क़वी हैकल जिन ने जवाब में अर्ज़ किया, मैं इसको आप की ख़िदमत में हाज़िर कर दूंगा, क़ब्ल इसके कि आप इस इजलास से उठ्ठें. और मैं इसको लाने की ताक़त रख़ता  हूँ. और अमानत दार भी हूँ. 
जिसके पास किताब का इल्म था उसने कहा मैं इसको तेरे सामने तेरी आँख झपकने से पहले लाकर खड़ा कर सकता हूँ.
पस जब सुलेमान अलैहिस्सलाम ने इसको अपने रूबरू देखा तो कहा ये भी मेरे परवर दिगार का एक फ़ज़ल है. ताकि वह मेरी आज़माइश करे, मैं शुक्र करता हूँ. और जो शुक्र करता है अपने ही नफ़ा के लिए करता है. और जो नाशुक्री करता है,(?) मेरा रब ग़नी है, करीम है. 
सुलेमान ने हुक्म दिया कि इसके लिए इस तख़्त की सूरत बदल दो हम देखें कि इसको इसका पता चलता है या इसका इन्हीं में शुमार है जिन को पता नहीं लगता .
 सो जब बिलक़ीस आई तो इस से कहा की क्या तुम्हारा तख़्त ऐसा ही है? 
बिलक़ीस ने कहा हाँ ऐसा ही है और हम को तो इस वाक़ेऐ की पहले ही तहक़ीक़ हो गई थी. और हम मती हो चुके हैं 
और इसको ग़ैर अल्लाह की वबा ने रोक रख्खा था और वह काफ़िर क़ौम में की थी. 
बिलक़ीस से कहा गया कि तू इस महल में दाख़िल हो, तो जब इसका सेहन देखा तो उसको पानी समझा और अपनी दोनों पिंडलियाँ खोल दीं. सुलेमान ने फ़रमाया यह तो एक महेल है जो शीशों से बनाया गया है. बिलक़ीस कहने लगी ऐ मेरे परवर दिगार ! मैं ने अपने नफ़्स पर ज़ुल्म किया था और अब मैं सुलेमान के साथ होकर रब्बुल आलमीन पर ईमान लाई."
सूरह नम्ल २७- आयत (37-44).

इस सुलेमानी कहानी के बाद बिला दम लिए अल्लाह समूद और सालेह के बयान पर आ जाता है और इनकी दो एक बातें बतला कर लूत को पकड़ता है और लूत की इग़लाम बाज़ उम्मत को. फिर शुरू कर देता है कुफ़्फ़ार के साथ सवाल जवाब अजीब सूरत रखते हैं. कुफ़्फ़ार अल्लाह से बुनयादी सवाल करते हैं और अल्लाह उनको बे बुन्याद जवाब देता है.
सूरह नम्ल २७- आयत (45-64).

सुलेमान की दास्तान मुहम्मद की अफ़साना निगारी का एक नमूना है. 
हैरत होती है कि मुसलमान इस अल्लाह की बद तरीन तसनीफ़ (रचना) पर किताब पर ईमान रखते हैं जिसको बात करने का सलीक़ा भी नहीं है और जिसकी मदद बन्दों ने तर्जुमानी और लग्व तफ़सीर से की. 
क्या अल्लाह जलीलुल क़द्र अपनी छीछा लेदर ऐसी दास्तान गोई से कराएगा जिसमें झूट और मक्र की भरमार है?
 जिन और परिंदों का लश्कर होना ? सुलेमान का हज़ारों परिंदों की हाज़री लेना? इनमें से किसी एक को ग़ैर हाज़िर पाना ? सुलेमान के मुँह से ऐसे कलिमें अदा कराना " वह इसकी ग़ैर हाज़िरी पर बहुत बरहम हुए और कहा कि इसकी सज़ा इसको सख्त़ मिलेगी. या तो उसको मैं ज़िबह कर डालूँगा या तो वह आकर कोई हुज्जत पेश करे"
दर असल  मुहम्मद अपनी फ़ितरत के मुताबिक़ क़ुरआन की शक्ल पेश करते है. वह मिज़ाजन ऐसे थे, 
शुक्र है बुलबुल ने हुज्जत न करके बद ख़बरी दी कि कमबख़्त बिलक़ीस एक औरत हो कर मर्दों पर हुक्मरानी  करती है? भला मुहम्मदी दीन में इसकी गुजाइश कहाँ? 
सुलेमान क़दीम बादशाहों में पहली हस्ती हैं जो आला दर्जे की शख़्सियत था और अपने वक़्त कि जदीद तरीन तालीमों से लबरेज़ था. 
वह मुफ़क्किर था, अच्छा शायर था, माहिरे नबातात (बनस्पति-ज्ञान) 
और माहिरे हयात्यात था. 
तामीरात में पहला पहला अज़ीम आर्चिटेक्ट हुआ है. 
उसकी तामीर को वालियान मुमल्कत देखने आया करते थे. 
घामड़  मुहम्मद ने सुलेमान के बारे में बेहूदा कहानी गढ़ी है  
देखिए कि  देवों के देव, महादेव ने किस तरह  मलकाए शीबा का तख़्त पलक झपकते ही सुलेमान के क़दमों पर रख दिया? 
अगर इसी क़ुरआनी हालात में एक हिन्दू कहता है कि परबत को लेकर हनुमान जी उड़े तो मुसलमान हसेंगे और लाहौल पढेंगे. 
नक़ली रसूल के अल्लाह की कहानी आप नियत बाँध कर नमाज़ों में पढ़ते हैं.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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