Saturday 25 August 2018

Hindu Dharm Darshan 218



शपथ गीता की, जो कहूँगा सच कहूँगा. (22)

भगवान् कृष्ण कहते हैं - - -
जैसे प्रज्वलित अग्नि ईधन को भस्म कर देती है, 
उसी तरह से 
अर्जुन ! 
ज्ञान रुपी अग्नि भौतिक कर्मों के सभी फलों को जला डालती है. 
इस संसार में दिव्य ज्ञान के समान कुछ भी उदात्त तथा शुद्ध नहीं . 
ऐसा ज्ञान समस्त योग का परिपक्व फल है. 
जो व्यक्ति भक्ति में सिद्ध हो जाता है, 
वह यथा समय अपने अंतर में इस ज्ञान का आस्वादन करता है.
श्रीमद् भगवद् गीता अध्याय  -4 - श्लोक -37- 38 -

बहुत ज्ञान मनुष्य को भ्रमित और गुमराह किए रहता है, 
इन ज्ञानियों को बहुधा भौतिक सुख और सुविधा का आदी ही देखा जाता है, 
वह मान और सम्मान के भूके होते हैं. 
और अगर ज्ञान पाकर मनुष्य गुमनाम हो जाए, 
तब तो ज्ञान का लाभ ही ग़ायब हो जाता है. 
वैसे भी इस युग में ईश्वरीय ज्ञान का कोई महत्व नहीं. 
यह युग विज्ञान का है. 
विज्ञान के लिए गहन अध्यन की ज़रुरत है, 
तप और तपश्या की नहीं.
ठीक कहा है 
"ज्ञान रुपी अग्नि भौतिक कर्मों के सभी फलों को जला डालती है. "
अर्थात ज्ञान का फल राख का ढेर. 
भभूति लगा कर ज्ञान का चिंमटा बजाइए.

और क़ुरआन कहता है - - - 
"बिल यक़ीन जो लोग कुफ्र करते हैं, हरगिज़ उनके काम नहीं आ सकते, उनके माल न उनके औलाद, अल्लाह तअला के मुक़ाबले में, ज़र्रा बराबर नहीं और ऐसे लोग जहन्नम का सोख़ता होंगे."
सूरह आले इमरान ३ तीसरा पारा आयात (१०)


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. पहली वाली वह बात न रही ,,,आखिर कुछ तो है जिसकी परद: दारी है,,

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