Wednesday 10 June 2020

ध्यान, चेतना और संवेदना

ध्यान,
चेतना 
और संवेदना  

ओशो या तो ध्यान में गुज़रे या फिर व्याख्यान में समय काटा, 
आख़ीर आधे जीवन उन्हों ने किसी पुस्तक को हाथ भी नहीं लगाईं. 
जहाँ ध्यान में वह घंटों डूबते, वहीँ व्याख्यान में वह कहते 
"कोई व्यक्ति आधा मिनिट से ज़्यादः निर विचार नहीं रह सकता." 
यह सच कि दिमाग़ 30 सेकेण्ड में कोई न कोई वैचारिक ख़ाक़ा बना ही लेता है. 
ओशो का यह दोहरा चरित्र उनका ख़ासा था, 
वह खुद एलान करते कि अपने ही कथन को मैं बार बार कंडम कर सकता हूँ. 

ध्यान उनके बाद हिन्दू समाज का नया फैशन बन गया है. 
पहले योगी ध्यान मग्न होते थे अब अयोगी भी हज़ारो की भीड़ में ध्यान मग्न देखे जा सकते हैं. 
ध्यान आज कल का Latet पाखंड है और धर्म गुरुओं के लिए बेहतरीन हाथियार, 
सभी ध्यानी बरसों ध्यान में लगे रहते हैं और वह समझते हैं कि अभी योग्य नहीं हुए है, एक दिन वह गुरु जी की तरह संपूर्ण योगी बन जाएंगे. 

मुसलमानों की नमाज़ भी एक तरह से ध्यान ही है. 
वह नमाज के लिए नियत इस तरह बांधते है,
"नियत करता हूँ मैं चार रिकअत फर्ज़ वास्ते अल्लाह के मुंह मेरा तरफ़ काबे शरीफ़ के" 
- - -और वह दोनों हाथों को कानों तक ले जा कर कहते है अल्लाह हुअक्बर- - - 
बस इसके बाद वह प्लानिंग करने लगते है दुन्या दारी की. 
जैसे एक साइकल सवार आदतन पैडल मारता रहता है और डूबा रहता है अपने मसाइल में.
पूरी नमाज़ में एक बार भी अल्लाह याद नहीं आता.

अब आइए चेतना पर - - - 
चेतना आती है तो इंसान को पल भर के लिए नहीं छोडती, 
वह तिर्भुज पर टिकी रहती है और पा लेती है सच्चाई को 
कि इसके तीनों कोणों का योग फल एक सीधी रेखा है. 
यह झूठे धर्म गुरु मानव समाज को भटकाए रहते हैं ध्यान में 
कि  इनको सीधी रेखा न मिले. 
मानव समाज की तमाम उपलब्धियां इसी चेतना की देन है जिसमे ध्यान और धर्म का कोई योग दान नहीं. 
यह चेतना की बरकत है कि आज इंसान बैल गाड़ी से हवाई जहाज़ तक पहुंचा.

अब आते हैं संवेदना पर - - -  
संवेदना=सह पीडा = एक जैसा दर्द=हमदर्द, यह मानव मूल्य है 
"दर्द ए दिल के वास्ते पैदा किया इंसान को" 
अपने दर्द की तरह हर इंसान का ही नहीं, हर प्राणी की पीडा को जानो.
उसके भागीदार बनो.
इंसान और हैवान में यही फर्क़ है. जिस इंसान में संवेदना नहीं वह हैवान है.
       

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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