Sunday 14 June 2020

कोरोना वरदान

कोरोना वरदान

आज दुन्या का हर पहलू असंतुलित हो चुका है. 
तरक़्क़ी के नाम पर धरती तनुज़्ज़ली के पाताल की तरफ़ भागी जा रही है. 
कमज़ोर संविधान की छूट के आधार पर लोग पहले दुन्या को दूषित करते है 
फिर क़ानून साज़ी होती है जिसके तहत लोगों को अरचनात्मक रोज़ी और नौकरयाँ सृजित होती हैं. 
गंगा मे पहले इंसानी और हैवानी लाशें और शौच गंदगी बहाई जाती है 
उसके बाद गंगा सफ़ाई की योजना पर अरबों रुपया बर्बाद होते है. 
इस रक़म से कई रचनात्मक इस्कीम बन सखी हैं. 
डेढ़ महीने के लाक डाउन से गंगा ख़ुद बख़ुद साफ़ हो गई है. 
और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के शहर हिमालियन चोटियों को खुली आँख से देखने लगे हैं.

आज करोडो इंसानी शरीर सड़कों पर चलते हुए लहू लुहान हो रहे हैं.
मानव पीडा को समेटे हुए बड़ी अमानवीय बात कहने जा रहा हूँ,  
क्यूँ पैदा कर दिए इंसानी मज़दूर और मजबूर ? 
दूसरों की ज़रुरत के लिए संताने जनते हो ? 
मज़दूर और मजबूर संताने पैदा करना बंद करो, 
पहले अपना स्थान इस धरती पर बनाव ताकि आने वाले नस्ल की विरासत बने,
फिर नस्ल बढाव.
यह सबक़ कोरोना की निष्ठुरता देती है. 
रहम और करम की भाषा अब मूल्यहीन हो रही हैं 
हक़ीक़त यही है कि तुमने ग़ैर ज़रूरी औलादें दूसरे के भरोसे पैदा की हैं, 
दूसरा सिर्फ़ अपने औलादों भर के लिए है. 

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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