Wednesday 17 June 2020

तबलीग़ की शुरूआत

तबलीग़ की शुरूआत 

मुहम्मद जब पूरी तरह से अरब के शाशक बन चुके थे तो उनका एलान हुवा कि मुसलमान अरब बस्तियों में जाएँ और देखें कि कौन मुसलमान बस्ती कौन नहीं. अलल सुबह (तडके) वहां अज़ान की आवाज़ आई या नहीं ? अगर अज़ान की आवाज़ सुनाई न पड़े तो बस्ती पर हमला करदें और बस्ती को लूट फूंक कर तबाह कर दें. 
उस ज़माने में मदीना के लोगों का शुग़ल बन गया था, जिसका नाम था 'तबलीग", 
जैसे आज भी कई बस्तियों में सुबह सुबह बेकार लोग कंधे पर कटिया रख कर मछली के शिकार करने के लिए निकल जाते हैं, ठीक उसी तरह तबलीग़ उन नव मुस्लिमों का मशग़ला बन गया था.
आज के यह जाहिल मुसलिम उनकी नक़ल करते हैं, 
ग़ैर मुसलामानों को इस्लाम की दावत देने से तो इनकी फटटी है, 
मुसलमानों को मुसलमान बनाते हैं, नमाज़ पढवाना ही इनका काम है, इस्लाम को यह जानते भी नहीं.
कहीं वह नमाज़ से ग़ाफ़िल होकर मेहनत व मशक्क़त में मुब्तिला तो नहीं हो गए ? उनको अपनी तरह ही हराम खो़र बनाते हैं.
एक बार मुहम्मद के दामाद अली मौला भी तबलीग़ में गए, ज़ालिम ने एक ग़ैर मुस्लिम बस्ती को बमय आबादी आग के हवाले कर दिया था, उनके चचा अब्बास ने इस पर अफ़सोस ज़ाहिर किया कि अली को ऐसा नहीं करना चाहिए, आग से इंसानों को जलाने का काम सिर्फ़ अल्लाह का है.
इन तबलीग़ियों को इबरत नाक सज़ा मिलनी चाहिए ताकि दूसरे इस से तौबा करें.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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