Saturday 6 June 2020

क़ुरआन के हमल (गर्भ) में

क़ुरआन के हमल (गर्भ) में

इन्तेहाई सब्र और ज़ब्त के साथ ही आप क़ुरआन को पढ़ सकते हैं,
वरना दस मिनट में ही आप इसे बंद करके, चूम कर जुज़दान के हवाले करेंगे.
बहुत बेज़ारी होती है जब आप इसके मानी व मतलब को समझने का जतनकरते हैं, उस वक़्त और भी जब आप कोई मुसबत पहलू तलाश करने की कोशिश करते हैं, ज़ेहन पर ख़दशा ग़ालिब रहता हैं,
कहीं आप गुनहगार तो नहीं होते चले जा रहे हैं.
क़ारी के लिए हिदायत है कि क़िरअत ए क़ुरआन पर ध्यान रहे,
न कि मानी व मतलब पर.
आप क़ारी नहीं, मतलाशी है तो तलाश आप का हासिल होगा,
तजस्सुस को बढ़ने दीजिए.
अगर आप सच्चे मतलाशी (खोजी) हैं तो ख़दशा ए गुनह्गारी सर से सरक जाएगा और तलाश जारी रहेगी.
आपका ईमान ए हक़ीक़ी और पुख्ता होता चला जाएगा.
"कुन-फ़ियाकून" का ख़ुदाई दावा सवाल खड़ा कर देगा कि
ख़ुदा तमाम दुन्या को मुसलमान क्यूँ नहीं कर देता, एक बार कुन कहके ?
ख़ुदा बन्दे को आज़माने और परखने की सनक में क्यूँ पडा रहता है ?
वह कहता है ज़मीन चिपटी है रोटी की तरह, बिछाई गई है.
आप ख़ुद हर रोज़ देखते हैं कि ज़मीन गोल है.
आँखों देखी मानें या कानों सुनी ?
आपक ईमान डगमगा गया तो समझिए कि आपके हाथ में सदाक़त की दुम आ गई, हैवान की दुम आ गई तो इतना ही काफ़ी नहीं,
समूचा हैवान आपके पकड़ में आना है.
क़ुरआन को पढते रहिए, बहुत से रंग बिरंगे हैवान आपके हत्ते चढ़ते जाएँगे.
पूरा क़ुरआन आपको नंगा नज़र आएगा,
और अल्लाह का शैतानी हयूला आपके क़ब्जे में होगा.
आलिमान दीन इस मशक्क़त के बाद ही बड़े आलिम बनते हैं.
जो इन नफ़ियों की काट जितनी बड़ी अय्यारी से करते हैं,
वह उतने ही बड़े आलिम बनते हैं.
वह जाग कर सच्चाई बयान करने की हिमाक़त नहीं करते
कि बरसों की तालीमी मेहनत रायगाँ जाएगी,
मुंकिर ए इस्लाम अलग से होंगे,
जिसके नतीजे में सज़ा ए मौत अलग रखी हुई है.
मध्य कालीन में दो मशहूर आलिम अरब दुन्या में हुए हैं - - -
जुनैद बग़दादी और मंसूर हुए,
एक ने सच का एलान किया और सूली पर चढ़ा.
दूसरा मसलहतन सच का एलान न कर सका और बादशाह का वजीर बना.
दोनों दोस्त थे, खूब छनती थी.
एक दिन मंसूर ने पूछा यार जुनैद यह शाही लिबास कैसे झेलता है ?
जुनैद ने कहा पास आ. मेरे गरेबान में हाथ डाल.
मंसूर ने पाया कि लिबास के नीचे टाट की बनयान है.
मंसूर को जब लोग संगसार कर रहे थे तो जुनैद भी उस फूल फेंक रहे थे,
मंसूर ने कहा तेरे फूलों की मार पत्थरों से भारी है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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