Friday 5 June 2020

सत्य आ मेरे सर पे बैठ - - -

सत्य आ मेरे सर पे बैठ - - - 


मुसलमानों में 30 रोज़ों का सदक़ा,(ख़ैरात= ग़रीबों की ख़ैर करने वाला दान) 
ईद की नमाज़ से पहले निकाला जाता है. 
ग़रीब लोग दामन फैला कर, क़ासाए गदाई को बिछाकर लाइन से खड़े हो जाते हैं. 
हम भी जब बच्चे थे, मुट्ठी भर भर अनाज इनकी गमछों पर सदक़ा डालते हुए ईद की नमाज़ पढने जाते थे. 
अब यह रीति ख़त्म पर है मगर सदक़ा ज़िन्दा है. 
आज "लाक डाउन" में देखा गया है कि मुसलामानों में यह जज़्बा उभर कर बाहर निकल आया है. वह पूरी राह में जगह जगह पैदल सफ़र करने वाले भूके और प्यासों केलिए सदक़े की दूकानें खोले बैठे हैं और अपनी ईद की खुशियाँ इस लाक डाउन पर निसार करने को तैयार हैं. 
मैं एलान्या इस्लाम की इस रीति की तारीफ़ करता हूँ. 
ऐसे मौके पर मनुवादी जो मेरे Friends List में किसी तरह घुस गए हैं, 
मुझे गालियाँ देकर कहते हैं कि मुंकिर में कई बार इस्लामी कीटाणु जग जाते है. 
और नास्तिक भी तअना ज़न हो जाते हैं. 
मुझे इन लोगों की कोई परवाह नहीं, 
सच अगर कहीं मनुवाद से भी निकलता तो उसे सर पर बिठाऊंगा.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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