Friday 26 June 2020

ख़ुद को तलाशो

ख़ुद को तलाशो     

मौजूदा  साइंस की बरकतों से फैज़याब दौर के लोगो! 
ख़ास कर मुसलमानों!!
एक बार अपने ख़ुदा के वजूद का तसव्वुर अपनी ज़ेहनी सतह पर बड़ी ग़ैर जानिब दारी से क़ायम करो. 
बस कि सच का मुक़ाम ज़ेहन में हो. 
सच से किसी शरीफ़ और ज़हीन आदमी को इंकार नहीं हो सकता, 
इसी सच को सामने रख कर ख़ुदा का वजूद तलाशो, 
हमारे कुछ सवालों का जवाब ख़ुद को दो.
1-क्या ख़ुदा हिदुओं, मुसलमानों, ईसाइयों और दीगर मज़ाहिब के हिसाब से जुदा जुदा हो सकता है?
2- क्या ख़ुदा भारत, चीन, योरोप, अरब, अमरीका और जापान वग़ैरह के जुग़राफ़ियाई एतबार से अलग अलग हो सकता है?
3- क्या ख़ुदा नस्लों, तबकों, फिरकों, संतों, ग़ुरुओं, पैग़मबरों और क़बीलों के एतबार से जुदा जुदा हो सकते हैं?
4- समाज के इज्तेमाई (सामूहिक) फ़ैसले के नतीजे से बरआमद ख़ुदा क्या हो सकता है?
5- खौफ़, लालच, जंग ओ जेहाद से बरामद किया हुआ ख़ुदा क्या सच हो सकता है?
6- क्या ज़ालिम, जाबिर, ज़बर दस्त, मुन्तक़िम चालबाज़, ग़ुमराह करने वाली हस्ती ख़ुदा हो सकती है?
7- पहले हमल में ही इंसान की क़िस्मत लिख्खे, फिर पैदा होते ही कांधों पर आमाल नवीस फ़रिश्ते मुक़र्रर करे. इसके बाद यौमे हिसाब मुनअक़िद करे, 
क्या ऐसा कोई ख़ुदा हो सकता है?
8-क्या ख़ुदा ऐसा हो सकता है जो नमाज़, रोज़ा, पूजा पाठ, चढ़ावा और प्रसाद वग़ैरह का लालची हो सकता है?
9- क्या ऐसा ख़ुदा कोई हो सकता है कि जिसके हुक्म के बग़ैर पत्ता भी न हिले?
तो क्या तमाम समाजी बुराइयाँ इसी के हुक्म से हैं.
 तब तो दुन्या के तमाम दस्तूर इसके ख़िलाफ़ हैं.
10- कहते हैं ख़ुदा के लिए हर कम मुमकिन है, क्या ख़ुदा इतना बड़ा पत्थर का गोला बना सकता है, जिसे वह ख़ुद न उठा पाए?
मुसलमानों! 
इन सब सवालों का सही सही जवाब पाने के बाद तुम चाहो तो बेदार हो सकते हो.
जगे हुए इंसान को किसी .पैग़मबर अल्लाह की ज़रुरत नहीं होती है.
जगे हुए इंसान का रहनुमा ख़ुद इसके अन्दर विराजमान होता है.
याद रखो तुम्हारे जागने से सिर्फ़ तुम नहीं जागते, 
बल्कि इर्द गिर्द का माहौल जागेगा, 
चिराग़ जलने के बाद सिर्फ़ चिराग़ रौशनी में नहीं आता 
बल्कि तमाम सम्तें रौशन हो जाती हैं.

महक़ उट्ठो अपने अन्दर की ख़ुशबू से. लाशऊरी तौर पर तुम 
अपनी इस ख़ुशबू को ख़ारजी रुकावटों के बायस पहचान नहीं पाते. 
ये ख़ुशबू है इंसानियत की. 
मज़हब तो ख़ारजी लिबास पर इतर का छिडकाव भर है.
छोडो इन पंज रुकनी लग्वियात को. 
और इस पंज वकता खुराफ़ात को,
मैं देता हूँ तुम्हें बहुत ही आसान पाँच अरकान ए हयात.

1-सच को जानो. सच के बाद भी सच, 
सच को ओढो और बिछाओ, 
2- मशक़्क़त, का एक नवाला भी अपने या अपने बच्चों के मुँह में हलाल है, 
मुफ़्त या हराम से मिली नेमत मुँह में मत जाने दो.
3- हिम्मत, सदाक़त को जिसारत की बहुत सख़्त ज़रुरत होती है, 
वैसे सदाक़त अपने आप में जिसारत है.
4. प्यार, इस धरती से, धरती की हर शै से और ख़ुद से भी.
5- अमल, 
तुम्हारे किसी अमल से किसी को ज़ेहनी, जिस्मानी या फिर माली नुकसान न हो.
 बस.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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