Wednesday 25 April 2018

सूरह हूद-११ (क़िस्त -4)

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह हूद-११

(क़िस्त -4)

मैं हलफ़ लेकर कह सकता हूँ कि क़ुरआन की आयतें ही भोले भाले मुसलमानों को जिहादी बनाती हैं. 
और मुस्लिम ओलिमा क़ुरआन उठा कर अदालत में बयान दे सकते हैं कि क़ुरआन सिर्फ़ अम्न का पैग़ाम देता है.

मैं इस बात को फिर दोहराता हूँ कि तौरेत (OLD TESTAMENT) दुन्या का प्राचीनतम इतिहास की मुसतनद किताब है, 
अगर इसमें से विश्व की रचना और आदम की काल्पनिक कहानी को निकाल दिया जाय तो इसकी लेखनी गवाह है कि गुणगान के साथ साथ हस्ती के अवगुण भी इस में साफ़ साफ़ गिनाए गए हैं. 
बाबा अब्राहाम के बाद तो इस पर शक करना गुनाह जैसा लगता है. 
इसके बर अक्स मुहम्मदी अल्लाह के क़ुरआन के किसी बात पर यक़ीन करना गुनाह ही नहीं बल्कि बेवकूफ़ी है और हराम जैसा लगता है. 
तौरेत के मुताबिक़ इब्राहीम के बाप तेराह (आज़र) ने अपने बेटे, बहू और भतीजे लूत को परदेस जाने का मशविरा दिया कि बद हाली से नजात मिले. वह मुसीबतें उठाते हुए मिस्र के बादशाह के पनाह में कुछ दिन रहे फिर भेड़ पालन का पेशा अख़्तियार किया जो इतना फला फूला कि वह मालदार हो गए, मॉल आया तो दोनों में बटवारे की नौबत आ गई. 
बटवारा मज़ेदार हुआ काले रंग और सफ़ेद रंग की भेड़ें अलग अलग करके एक एक रंग की भेड़ें दोनों ने ले लीं. 
यह भी तै हुवा कि दोनों विपरीत दिशा में इतनी दूर तक चले जाएँ कि एक दूसरे का सामना कभी न हो. 
बाक़ी क़ुरआनी ऊट पटाँग के बाद - - - 

''और उनको ख़ुश ख़बरी मिली और हम से लूत के क़ौम के बारे में जद्दाल करना शुरू किया 
(यहाँ पर आलिम ने जुमले में इल्मे नाक़िस की तफ़सीर गढ़ी है). 
ऐ इब्राहीम इस बात को जाने दो, तुम्हारे रब का हुक्म आ पहुंचा है और उन पर ज़रूर ऐसा अज़ाब आने वाला है जो किसी तरह हटने वाला नहीं. जब हमारे भेजे हुए लूत के पास आए तो वह उनकी वजेह से मगमूम हुए और इनके आने के सबब तन्ग दिल हुए और कहने लगे आजका दिन बहुत भारी है और उनकी क़ौम उनकी तरफ़ दौड़ी हुई आई. और वह पहले से ही नामाक़ूल हरकतें किया ही करते थे. वह फ़रमाने लगे ऐ मेरी क़ौम यह मेरी बेटियाँ जो मौजूद हैं वह तुम्हारे लिए ख़ासी हैं सो अल्लाह से डरो और मेरे मेहमानों में मेरी फ़जीहत मत करो. क्या तुम में कोई भी भला मानुस नहीं?''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (७४-७८)

मुहम्मद ने कहानी अधूरी और फूहड़ ढंग से गढ़ी है जिसे अल्लाह के इस्लाहियों ने इसकी इस्लाह करके कहानी को मुकम्मल किया है।

तौरेती कहानी यूँ है कि फ़रिश्ते लूत के घर मेहमान बन कर आए तो बस्ती वालों ने उनके साथ दुराचार करने की फ़रमाइश करदी. 
लूत ने कहा मेहमानों की लाज रखो भले ही मेरी बेटियों को भोग लो.
कहाँ लूत एक गडरिया बन कर खासी भेड़ों का मालिक बन गया था और मुहम्मद उसको बड़ी उम्मत का पयम्बर बतला रहे हैं.
 हाँ! लूत इस बस्ती में पनाह गुज़ीन था, अपनी बीवी और दो बेटियों के साथ. 

''वह लोग कहने लगे कि आप को तो मालूम है कि हमें आप की बेटियों की ज़रुरत नहीं है और आप को मालूम है जो हमारा मतलब है. वह फ़रमाने लगे क्या ख़ूब होता अगर मेरा तुम पर कुछ ज़ोर चलता या मैं किसी मज़बूत पाए की पनाह पकड़ता. वह कहने लगे ऐ लूत हम रब के भेजे हुए हैं, आप तक हरगिज़ इनकी रसाई न होगी. सो आप रात के किसी हिस्से में अपने घर वालों को लेकर चलिए और तुम में से कोई फिर के भी न देखे मगर आप की बीवी इस पर भी वही आने वाली है जो और लोगों पर आएगी. क्या सुब्ह क़रीब नहीं?''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (७९-८१)

तर्जुमानों ने मुहम्मदी अल्लाह की मदद करते हुए साफ़ किया कि बस्ती के इग़लाम बाज़ लोग फ़रिश्तों के साथ दुराचार नहीं कर पाए और वह सुब्ह होते होते बच कर लूत और उसकी बेटियों को लेकर बस्ती से निकल चुके थे. उनके निकलते ही बस्ती उलट गई थी.
तौरेती इतिहास कहता है सोदेम नाम की बस्ती में लूत बस गया था जहाँ के लोग बड़े पापी और दुराचार थे वक़ेआ क़ुरआन से मिलता जुलता है कि बस्ती पर तेजाबी बारिश हुई, 
लूत की बीवी ने पलट कर बस्ती को देखा तो नमक का ख़म्बा बन गई.
लूत अपनी दोनों बेटियों को लेकर पहाड़ियों पर रहने लगा.
तौरेत सच्चाई का दामन थामे हुए कहती है कि पहाड़ियों पर दूर दूर तक आदम न आदम ज़ाद, 
बस यही तीन बन्दे अकेले रहते थे.
लूत की दोनों बेटियां फ़िक्र मंद होने लगीं कि दस्तूर ए ज़माना के हिसाब से कौन यहाँ आयगा जो हम से शादी करेगा ? दोनों ने आपस में तय किया कि बूढ़े बाप लूत को शराब पिला कर, इसे नशे के आलम में लें कि इस को कुछ होश न रहे, फिर बारी बारी हम दोनों रात को इस के पास सोएँ ताकि औलाद हासिल कर सकें और दोनों ने ऐसा ही किया. इस तरह दोनों को एक एक बेटे हुए. 
बड़ी बेटी के बेटे का नाम मुआब पड़ा, और छोटी बेटी के बेटे का नाम बैनअम्मी. 
यही दोनों आगे चलकर मुआबियों और अम्मोनियों के मूरिसे आला बने.
मुहम्मदी क़ुरआन होता तो इस मुआमले को कितना उलट फेर करता जब कि ख़ुद मुहम्मद अपनी बहू ज़ैनब के साथ खुली बदकारी में रंगे हाथों पकडे गए और क़ुरआनी आयतें मौक़ूफ़ करके उसे अपनी बिन ब्याही बीवी बना कर रक्खा. 
तौरेत की सिफ़त यही है कि वह सच बोलती है। अक़ीदे की बातें अलग हैं.

''अल्लाह का दिया हुवा जो कुछ बच जावे वह तुम्हारे लिए बदरजहा बेहतर है, अगर तुम को यक़ीन आवे. और मैं तुम्हारा पहरा देने वाला तो हूँ नहीं.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (८६)

'' इन में इस शख़्श के लिए के लिए बड़ी इबरत है जो आख़रत के अज़ाब से डरता हो, वह ऐसा दिन होगा कि इस में तमाम आदमी जमा किए जाएँगे और वह हाज़री का दिन है'' 
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (१०३)

''और हम इसको थोड़ी मुद्दत के लिए मुल्तवी किए हुए हैं ''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (१०४)

''जिस वक़्त वह दिन आएगा कोई शख्स बगैर उसके इजाज़त के बात भी न कर सकेगा, फिर इन में बअज़े तो शक्की होंगे बअज़े सईद होंगे.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (१०५) 

जो लोग शक्की होंगे वह दोज़ख़ में होंगे कि इस में इन की चीख़ पुकार पड़ी रहेगी.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (१०६)

''और रह गए वह लोग जो सईद हैं सो वह जन्नत में होगे और हमेशा हमेशा उस में रहेंगे, जब तक आसमान और ज़मीन क़ायम है - - - 
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत ('१०८)

इसी क़िस्म की बातें कुरआन में दोहराई तिहराई नहीं बल्कि सौहाई गई हैं. 
तालीम की कमी के बाईस बेचारा आम मुसलमान दुन्या में आकर अपनी जिंदगी गँवा कर, लुटवा कर और मुल्लों से ठगवा कर चला जाता है. 
क्या रक्खा है अल्लाह की इन खोखली आयातों में जो चौदह सौ सालों से एक बड़ी आबादी को गुमराह किए हुए हैं? 

''और अगर आप के रब को मंज़ूर होता तो सब आदमियों को एक ही तरीक़ा का बना देते और वह हमेशा इख़्तिलाफ़ करते रहेंगे.मगर जिस पर आप के रब की रहमत हो.और इसने लोगों को इसी वास्ते पैदा किया है और आप के रब की बात पूरी होगी कि मैं जहन्नम को जिन्नात और इन्सान दोनों से भर दूंगा."
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (११६-११९)

यहाँ पर मुहम्मद की अंजान जेहालत ने खुद अपने ख़िलाफ़ मज़मून साफ़ कर दिया है कि उनका अल्लाह कोई ''हिररहमान निररहीम'' नहीं बल्कि एक पिशाच, खूंखार आदम ख़ोर दोज़ख का महा जीव है, 
जिस ने इंसान ही नहीं बल्कि जिन्नात को भी अपना निवाला बनाने की क़सम खा रखी है. 
उसने इंसान को पैदा ही इसी लिए किया है कि उनको अपनी ख़ुराक़ बनाएगा, जैसे हम मछली पालन और पोल्ट्री फार्म वास्ते ख़ुराक़ मुहय्या करते हैं. 
तर्जुमान और मुफ़स्सिरान ए कुरआन ने एड़ी चोटी का ज़ोर लगा दिया है, नफ़ी को मुसबत पहलू करने में.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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