Wednesday 4 April 2018

Soorah taubah 9 – Q- 4

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह-ए-तौबः 9
(क़िस्त-4)

सूरह-ए-तौबः एक तरह से अल्लाह की तौबः है . 
अरबी रवायत में किसी नामाक़ूल, नामुनासिब, नाजायज़ या नाज़ेबा काम की शुरूआत अल्लाह या किसी मअबूद के नाम से नहीं की जाती थी, 
आमद ए इस्लाम से पहले यह क़ाबिल ए क़द्र अरबी क़ौम के मेयार का एक नमूना था. 
क़ुरआन में कुल 114 सूरह हैं, एक को छोड़ कर बाक़ी 113 सूरतें - - -
"आऊज़ो बिल्लाहे मिनस शैतानुर्र्र्जीम , बिमिल्लाह हिररहमान निर रहीम " से शुरू होती हैं . 
वजह ? 
क्यूंकि सूरह तौबः में ख़ुद अल्लाह दग़ा बाज़ी करता है इस लिए अपने नाम से सूरह को शुरू नहीं करता.  
बक़ौल मुहम्मद क़ुरआन अल्लाह का कलाम है तो इंसानी समाज का इसमें दख्ल़ क्यूँ ? 
क्या अल्लाह भी समाजी बंदा है ?

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आम तौर पर दुन्या में तीन तरह के लोग होते हैं जिनको स्तरयीय दृष्ट से परखा जा सकता है, दर्जात दिए जा सकते हैं.

अव्वल दर्जा लोग 

मैं दर्जा-ए-अव्वल में उस इंसान को शुमार करता हूँ जो सच बोलने में ज़रा भी देर न करता हो, 
उसका मुतालिआ (अध्यन)  अश्याए क़ुदरत के बारे में फ़ितरी (लौकिक) हो (जिसमें ख़ुद इंसान भी एक अश्या है.) 
वह ग़ैर जानिबदार  हो, अक़ीदा, आस्था और मज़हबी उसूलों से बाला तर हो, 
जो जल्द बाज़ी में किए गए "हाँ" को सोच समझ कर 'न' कहने पर एकदम न शर्माए और मुआमला साज़ हो. 
जो पूरी कायनात  का ख़ैर ख़्वाह हो, 
दूसरों को माली, जिस्मानी या ज़ेहनी नुक़सान, 
अपने नफ़ा के लिए न पहुंचाए, 
जिसके हर अमल में इस धरती और इस पर बसने वाली मख़लूक़ का ख़ैर वाबिस्ता हो, 
जो बेख़ौफ़ और बहादर हो और इतना बहादर कि उसे दोज़ख़ में जलाने वाला नाइंसाफ़ अल्लाह भी अगर उसके सामने आ जाए तो उस से भी दस्त व गरीबानी के लिए तैयार रहे. 
ऐसे लोगों को मैं दर्जाए अव्वल का इंसान और उच्च  स्तरयीय शुमार करता हूँ. 
ऐसे लोग ही हुवा करते हैं साहिब-ए- ईमान और  ''मर्द -ए-मोमिन''. 

दोयम दर्जा लोग

मैं दोयम दर्जा उन लोगों को देता हूँ जो उसूल ज़दा यानी नियमों के मारे होते हैं. 
यह सीधे सादे अपने पुरखों की लीक पर चलने वाले लोग होते हैं. 
पक्के धार्मिक होते हुए भी अच्छे इन्सान भी होते हैं. 
इनको इस बात से कोई मतलब नहीं कि इनकी धार्मिकता समाज के लिए अब ज़हर बन गई है, 
इनकी आस्था कहती है कि इनकी मुक्ति नमाज़ और पूजा पाठ से है. 
अरबी और संसकृति में इन से क्या पढ़ाया जाता है, 
इस से इनका कोई लेना देना नहीं.
 ये बहुधा ईमानदार और नेक लोग होते हैं. 
शिकारी इस भोली भाली अवाम के लोगों का ही शिकार करता है. 
धर्म गुरुओं, ओलिमाओं और पूँजी पतियों की. हमारे देश की जम्हूरियत की बुनियाद इसी दोयम दर्जे के कन्धों पर रखी हुई है.

सोयम दर्जा लोग

हर क़दम में इंसानियत का ख़ून करने वाले, 
तलवार की नोक पर ख़ुद को मोह्सिन-ए-इंसानियत कहलाने वाले, 
दूसरों की मेहनत पर तकिया धरने वाले, 
लफ़फ़ाज़ी और ज़ोर-ए-क़लम से ग़लाज़त से पेट भरने वाले, 
इंसानी सरों के सियासी सौदागर, 
धार्मिक चोले धारण किए हुए स्वामी, गुरू, बाबा लंबी दाढ़ी और बड़े बाल वाले, सब के सब तीसरे दर्जे के लोग हैं. इन्हीं की सरपरस्ती में देश के मुट्ठी भर सरमाया दार भी हैं,
 जो देश को लूट कर पैसे को विदेशों में छिपाते हैं. 
यही लोग जिनका कोई प्रति शत भी नहीं बनता, 
दोयम दर्जे को ब्लेक मेल किए हुए है 
और अव्वल दर्जा का मज़ाक़ हर मोड़ पर उड़ाने पर आमादा रहते है. 
सदियों से यह गलीज़ लोग इंसान और इंसानियत को पामाल किए हुए हैं.

***
आइए कुरआन के अन्दर पेवस्त होकर इंसानियत की आला क़दरों को पहचाने. इसके बारे में जो कुछ भी आप ने सुन रखा है वह लाखों बार बोला हुआ बद ज़मीर आलिमों का झूट है. आप ख़ुद क़ुरआनी फ़रमान को पढ़ें और उस पर सदाक़त से ग़ौर करें, हक़ की बात करें, मुस्लिम से ईमान दार मोमिन बनें और दूसरों को भी मोमिन बनाएँ. 
आप मोमिन बने तो ज़माना आपके पीछे होगा. 
यह जेहादी आयतें अपने हक़ीक़त के साथ पेश है, जिसे ओलिमा आज जिहाद का मतलब समझा रहे हैं कि  "जद्दो जेहद" यानी अंथक मशक्क़त.

''निकल पड़ो थोड़े से सामान से या ज़्यादः सामान से और अल्लाह की राह में अपने माल और जान से जेहाद करो, यह तुम्हारे लिए बेहतर है अगर तुम यक़ीन करते हो.''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (४१)

मुहम्मद इज्तेमाई डकैती के लिए नव मुस्लिमों को वरग़ला रहे हैं .
अडोस पड़ोस की बस्तियों पर डाका डालने के लिए, 
अपनी ताक़त बढ़ाने के लिए, 
पुर अम्न आबादियों में बद अमनी फैलाने के लिए. 
मुहम्मद के दिमाग़ में एक अल्लाह का भूत सवार हो चुका था, 
अल्लाह एक हो या अनेक, 
भूके, नंगे, ग़रीब अवाम को इस से क्या लेना देना? 

''जो लोग अल्लाह और क़यामत के दिन पर ईमान रखते हैं वह अपने माल व जान से जेहाद करने के बारे में आप से रुख़सत न मांगेंगे, अलबत्ता वह लोग आप से रुख़सत मांगते हैं जो अल्लाह और क़यामत के दिन पर ईमान नहीं रखते और इन के दिल शक में पड़े हैरान हैं.''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (४५)

ज़रा डूब कर सोचें, 
अपने भरे पुरे परिवार के साथ उस दौर में ख़ुद को ले जाएँ 
और उस बस्ती के बाशिंदे बन जाएँ 
फिर मुहम्मद के फ़रमूदाद सुनें जिसे वह अल्लाह का कलाम बतलाते हैं,. आप महसूस करें कि अपने बाल बच्चों को छोड़ कर और अपने जान व माल के साथ किसी अनजान आबादी पर बिला वजेह हमला करने पर आमादः हो जाएँ, वह भी इस बात पर कि इस का मुआवज़ा बाद मरने के क़यामत के रोज़ मिलेगा. 
याद रखें कि इसी धोखा धडी और खूँ रेज़ी की बुनियादों पर मुहम्मद ने इस्लाम की झूटी इमारत खड़ी की थी जो हमेशा ही खोखली रही है आज रुसवाए ज़माना है.

''इन में से बअज़ा शख़्श वह है जो कहता है मुझको इजाज़त दे दीजिए और मुझको ख़राबी में मत डालिए. ख़ूब समझ लो कि यह लोग तो ख़राबी में पड़ ही चुके हैं और यक़ीनन दोज़ख इन काफ़िरों को घेर लेगी.''
सूरात्तुत तौबा ९ - १०वाँ परा आयत (४७-४९)

मुहम्मद इन बेवक़ूफ़ों की बेवक़ूफ़ी का खुला मज़ाक़ उड़ा रहे हैं जो इस्लाम क़ुबूल करने की हिमाक़त कर चुके हैं वाकई इस्लाम का यक़ीन हयातुददुन्या के लिए एक ख़राबी ही है जब कि दीन की दुन्या मुहम्मद का गढ़ा हुवा फ़रेब है.

''आप फ़रमा दीजिए कि हम पर कोई हादसा पड़ नहीं सकता मगर वही जो अल्लाह ने हमारे लिए मुक़द्दर फ़रमाया है, वह हमारा मालिक है. और अल्लाह के तो सब मुसलमानों के अपने सब काम सुपुर्द रखने चाहिए."
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (५१)

मुहम्मद तकब्बुर की बातें करते हैं कि ''हम पर कोई हादसा पड़ नहीं सकता'' 
अगर कोई टोके तो जवाब होगा यह तो अल्लाह का कलाम है 
जब कि अगले जुमले में ही वह अल्लाह को अलग कर के कहते हैं- - 
''मगर वही जो अल्लाह ने हमारे लिए मुक़द्दर फ़रमाया है, वह हमारा मालिक है.'' 
मुसलमान कल भी अहमक़ था और चौदा सौ साल गुज़र जाने के बाद आज भी अहमक़ ही है जो बार बार साबित होने के बाद भी नहीं मानता कि क़ुरआन एक इंसानी दिमाग की उपज है, 
इसमें कुछ नहीं रक्खा, अलावा गुमराही के..

''आप फ़रमा दीजिए तुम तो हमारे हक़ में दो बेहतरीयों में से एक बेहतरी के हक़ में ही के मुंतज़िर रहते हो और हम तुम्हारे हक़ में इसके मुन्तज़िर रहा करते हैं कि अल्लाह तअला तुम पर कोई अज़ाब नाज़िल करेगा, अपनी तरफ़ से या हमारे हाथों से.सो तुम इंतज़ार करो, हम तुम्हारे साथ इंतज़ार में हैं.''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (५२)

यह आयत मुहम्मद की फ़ितरत ए बद का खुला आइना है, 
कोई आलिम आए और इसकी रफ़ूगरी करके दिखलाए. 
ऐसी आयतों को ओलिमा अवाम से ऐसा छिपाते हैं जैसे कोई औरत अपने नाजायज़ हमल को छिपाने के लिए अपना पेट ढकती फिर रही हो. 
आयत गवाह है कि मुहम्मद इंसानों पर अपने मिशन के लिए अज़ाब बन जाने पर आमादा थे. इस आयत में साफ़ साफ़ मुहम्मद ख़ुद को अल्लाह से अलग करके निजी चैलेन्ज कर रहे हैं, 
क़ुरआन अल्लाह का कलाम को दर गुज़र करते हुए अपने हाथों का मुज़ाहिरा कर रहे हैं. 
अवाम की शराफ़त को ५०% तस्लीम करते हुए अपनी हठ धर्मी पर १००% भरोसा करते हैं. 
तो ऐसे शर्री थे वह. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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