Friday 13 April 2018

Soorah Yoonus 10- Q2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं
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सूरह यूनुस १०
(क़िस्त -2)


ख़ुद मुहम्मद ने आज़माइश के तौर पर दो चमत्कारी झूट गढ़े, 

पहला शक्कुल क़मर यानी चाँद के दो टुकड़े उंगली के इशारे से कर दिए जिसके नतीजे में चाँद का एक टुकड़ा आसमान के इस छोर गिरा और दूसरा उस छोर पर गिरा,
दूसरा मेराज यानी एक सेकंड में सैर ए आसमानी. 
यह दोनों करतब उन्होंने ईसा, मूसा की नक़ल में लोगों के ताने पर किए 
मगर इस का सिवाय मुहम्मदी अल्लाह के कोई गवाह न मिला, 
ख़लीफ़ाओं की सख़्त फटकार पर फिर कोई इस क़िस्म का चमत्कार नहीं हुवा.
इस्लामी धर्म गुरुओं ने मुहम्मद के बाद न इन पहले, मुअजज़ात को ही सच ठहराया,  उसके बाद तलवार के साए में रह कर मुहम्मद के चमचे ,सहबियों ने कुछ झूठे चमत्कार गढे, 
वह भी अपने आप में चमत्कार ही कहा जाएगा. 
पानी का क़हेत पड़ जाना, उसपर रसूल की उगलियों से पानी का झरना बह निकलना, 
सूरज के डूब जाने के एक घंटे बाद उसे फिर बाहर निकल देना, 
खाने और पानी में मुहम्मद के थूक देने से उस में कई गुना बरकत हो जाना वगैरा वगैरा - - -
इस तरह मुहम्मद के चमत्कारों एक लंबा अंबार भरा पड़ा है.

जलव ए तूर ख्वाब ए-मूसा है,

किसने देखा है, किसको देखा है.
या यूँ कहें - - -
बुद्धि हाथों पे सरसों उग़ाती रही,
बुद्धू कहते रहे कि चमत्कार है. 



अब आइए मुहम्मदी अल्लाह के एहसानों में दब कर जीने का तरीक़ा और सलीक़ा देखें - - - 

"जब इंसान को कोई तकलीफ़ पहुँचती है तो हम को पुकारने लगता है, 
लेटे भी, बैठे भी और खड़े भी, फिर जब हम इसकी तकलीफ़ हटा देते हैं 
तो फिर अपनी पहली हालत पर आ जाता है. जो शख़्स  अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तें में दाख़िल करेंगे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी। हमेशा हमेशा इनमें रहेगे, यह बड़ी कामयाबी है.''
सूरह यूनुस १० पारा 11 आयत (12)

ऐ मुहम्मदी अल्लाह! 
तू मुसलामानों को तकलीफ़ में मुब्तिला ही क्यूँ करता है? 
क्या इस लिए कि वह तुझ को पुकारें? 
तकलीफ़ दूर हो जाने के बाद भी क्या तू चाहता है कि वह अल्ला हू अल्ला हू करता रहे?
मुसलामानों! 
क़ुदरत ने अपने मख़्लूक़ात के लिए एक निज़ाम सादिक़ बना कर ख़ुद को इसके इंतेज़ाम से अलग थलग कर रखा है जिसकी वज़ाहत तुलसी दास ने बहुत ख़ूब की है - - -


धरा को प्रमाण यही तुलसी,

जो फरा, सो झरा, जो बरा, सो बुताना.
जिसे फ़ारसी में कुछ यूँ कहा गया है- - -
''हर कमाले रा ज़वाल.''
मुहम्मद इस निज़ाम ए क़ुदरत में अपनी क़ुरआनी खिचड़ी उबाल कर दुन्या को गुमराह किए हुए हैं. 
जागो मुसलमानों ! 
बहुत पीछे हो चुके हो!! 
और पीछे हो जागो तुम्हारे लिए अल कायदा, तालिबानियों और जैश ए मुहम्मद ने जहन्नम तैयार कर रक्खी है. 



"और हमने तुम से पहले बहुत से गिरोहों को हलाक कर दिया, जबकि उन्हों ने ज़ुल्म किया (यानी कुफ़्र और शिर्क) हालाँकि इनके पैग़म्बर दलायल लेकर आए. वह ऐसे लोग कब थे कि ईमान ले आते. हम मुजरिम लोगों को ऐसी ही सज़ा दिया करते हैं, फिर दुन्या में बजाए उनके तुम को आबाद किया कि ज़ाहिरी तौर पर हम देख लें कि तुम कैसा काम करते हो. जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाख़िल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इसमें रहेंगे, ये बड़ी कामयाबी है.''
सूरह यूनुस १० पारा 11 आयत (१३-१४)

इंसानी गिरोह के नादान और इस सदी के मासूम, सीधे सादे मुसलामानों! 
क्या तुम्हारा अल्लाह ऐसा ज़ालिम होना चाहिए जो कह रहा है कि उसने गिरोहों को हलाक कर दिया है? 
सोचिए कि उसने ऐसे इंसानी गिरोह पैदा ही क्यों किया? 
उनको ऐसी नाक़िस अक़्ल ही क्यूं दी? 
जो इतना बेवक़ूफ़ों कि इंसानों के ज़ाहिर को देखना चाहता है, उसका बातिन कैसा भी हो? 
जो धमकी दे रहा हो कि ईमान न लाए तो तुम्हारे मादरे-वतन हिंद पर तुम को मिटा कर चीनियों और जापानियों को आबाद कर देगा.जो मुहम्मद की पुर जेहल बातों को दलायल भरी बातें मानता हो? 
वह कोई अल्लाह हो सकता है? 
सोचो कि तुम अल्लाह के धोखे में किसी फ्रोड की इबादत तो नहीं कर रहे हो? 
क़ुरान में बार बार दोहराता है ''जो शख़्स अल्लाह और उसके रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाख़िल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इसमें रहेंगे, ये बड़ी कामयाबी है.'' 
अगर सर्द मुल्कों में ऐसे नहरों वाले घर मिल जाएं तो अज़ाब ही होंगे मगर कुवें के मेंढक मुहम्मद को अरब की वीरानी के सिवा इल्म ही क्या था? 


"और जब इनके सामने हमारी आयतें पढ़ी जाती हैं जो बिलकुल साफ़ साफ़ हैं, तो यह लोग जिनको हमारे पास आने का बिलकुल खटका नहीं है, कहते है इसके अलावः कोई दूसरा क़ुरआन लाइए या कम अज़ कम इसमें कुछ तरमीम कर दीजिए. आप कह दीजिए कि मुझसे यह नहीं हो सकता कि मैं इस में अपनी तरफ़ से कुछ तरमीम कर दूं. बस मैं तो इसी की पैरवी करूँगा जो मेरे पास वहिय के ज़रिए भेजा गया है, अगर मैं इसमें अपने रब की ना फ़रमानी करूँगा तो मैं एक बड़े भारी दिन के अज़ाब का अंदेशा रखता हूँ.''

सूरह यूनुस १० पारा 11 आयत (१५)

इस्लाम बुत परस्ती के ख़िलाफ़ मक़बूल हो रहा था. कुछ संजीदा और साहिबे-इल्म लोग भी इसमें शामिल हो रहे थे जिनको क़ुरआन फ़ितरी तौर पर हज़्म  नहीं हो रहा था (जैसे कि आज तक इन मक्कार और ख़ुद ग़रज़ ओलिमा के सिवा इसको समझने के बाद यह किसी को हज़्म नहीं होता) लोग क़ुरआन को इस्लामी तहरीक से जुदा कर देना चाहते थे या फिर इसकी इस्लाह चाहते थे. 
चालाक मुहम्मद यह बात अच्छी तरह जानते थे कि अल्लाह से वहिय (ईश वाणी) का सिलसिला ही उनकी पैग़म्बरी की बुन्याद है. वह इससे एक सूत भी पीछे हटने को तैयार न थे. 
बिल आख़ीर उनको कहना पड़ा कि कुरआन तिलावत की चीज़ है ना कि समझने समझाने की. 
क़ुरआन का झूट ही मुसलामानों के दिलो-दिमाग़ और वजूद पर ग़ालिब है. इससे जिस दिन मुसलामानों को नजात मिल जाएगी उस दिन से उसका उद्धार शुरू हो जायगा.


"और यह लोग अल्लाह की तौहीद (एक ईश्वर वाद) को छोड़ कर ऐसी चीज़ों की इबादत करते हैं जो इन लोगों को ज़रर पहुँचा सकें न नफ़ा पहुंचा सकें और कहते हैं कि यह अल्लाह के पास हमारे सिफारशी हैं. आप कह दीजिए कि क्या तुम अल्लाह तअला को ऐसी चीज़ की ख़बर देते हो जो कि उसे मालूम नहीं?''

सूरह यूनुस १० पारा 11 आयत (१८)

इस्लाम के मुताबिक़ कुफ़्र वह है जो अल्लाह वाहिद ए लाशारीक को छोड़ कर किसी और को अल्लाह माने जो उमूमन हिन्दू, बुद्ध और जैन वग़ैरह मानते हैं 
और शिर्क वह है जो अल्लाह वाहिद लाशारीक के साथ किसी को शरीक करे. इस सिलसिले में बावजूद इस्लाम के सब से ज़्यादः बर्रे सग़ीर का मुस्लमान शिर्क ज़दा है. क़ब्र पुज्जे सब से ज़्यादः उप महाद्वीप में ही मिलेंगे. यह इंसानी फ़ितरत है जहाँ हर अल्लाह फ़ेल है.
मुहम्मद को मालूम था कि इन मिनी अल्लाहों को अगर मिटा दिया जाए तो इस दुन्या में सिर्फ़ उनका नाम रह जायगा. जिसमे किसी हद तक वह कामयाब रहे मगर झूट के बद तरीन अंजाम के साथ. 

.जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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