Wednesday 11 April 2018

Soorah Yoonus 10 Q1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह यूनुस 10
(क़िस्त -1)

आम मुसलमान मुहम्मद कालीन युग में इस्लाम पर ईमान लाने वाले मुसलामानों को, जिन्हें सहाबी ए कराम कहा जाता है, 
पवित्र कल्पनाओं के धागों में पिरो कर उनके नामों की तस्बीह पढ़ा करते हैं, जब कि वह लोग ज़्यादः तर ग़लत लोग थे, 
वह मजबूर, लाख़ैरे, बेकार और ख़ास कर जाहिल लोग हुवा करते थे. 
क़ुरआन और हदीसें ख़ुद इन बातों के गवाह हैं. 
अगर अक़ीदत का चश्मा उतार के तलाशें,
 हक़ की ऐनक लगा कर इसका मुतालिआ करें ,
तो सब कुछ क़ुरआन और हदीसों में ही न अयाँ और निहाँ है . 
आम मुसलमान मज़हबी नशा फरोशों की दूकानों से 
और इस्लामी मदारियों से जो पाते है वही जानते हैं, 
इसी को सच मानते हैं. 
क़ुरआन में मुहम्मद का ईजाद करदा भारी आसमान वाला अल्लाह अपनी जेहालत, अपनी हठ धर्मी, अपनी अय्यारियाँ, अपनी चालबाजियाँ, अपनी दगाबज़ियाँ, अपने दारोग़ (मिथ्य), अपने शर और साथ साथ अपनी बेवकूफ़ियाँ खोल खोल कर बयान करता है. 
मैं तो क़ुरआनी फ़िल्म का ट्रेलर भर आप के सामने अपनी तहरीरों में पेश कर रहा हूँ. 
मेरा दावा है कि मुसलामानों को अँधेरे से बाहर निकालने के लिए एक ही इलाज है कि इनको नमाज़ें इनकी मादरी ज़ुबान में तर्जुमें की शक्ल में पढ़ाई जाएँ. 
मुसलमान हैं तो इन पर लाज़िम कर दिया जाए क़ुरआनी तर्जुमा बग़ैर तफ़सीर निगारों की राय के इन्हें बिल्जब्र सुनाया जाए. 
जदीद क़दरों के मुक़ाबिले में क़ुरआनी दलीलें रुसवा की जाएँ जोकि इनका अंजाम बनता है 
तब जाकर मुसलमान एक अच्छा इंसान बन सकता है.

आइए चलें बे क़द्र और अदना तरीन क़ुरानी आयतों पर - - - 

''अलरा''
यह भी अल्लाह की एक आयत है, उसकी कही हुई कोई बात है जिसके मानी बन्दे नहीं जानते. 
मुहम्मद और मुल्ले कहते हैं इसका मतलब अल्लाह ही बेहतर जानता है. 
यह वैसे ही है जैसे किसी करतब से पहले मदारी कोई मोहमिल मन्त्र की ललकार भरता है। इसको क़ुरआनी इस्तेलाह में हुरूफे-मुक़त्तेआत कहते हैं. 
मुहम्मद ने मदारियों की नक़्ल में सूरह शुरू करने से पहले अक्सर ऐसा किया है. 

''यह पुर हिकमत किताब की आयतें हैं.''
सूरह यूनुस १० पारा 11 आयत (१)
पूरे क़ुरआन में इस जुमले को बार बार दोहराया गया है और इस बेढंगी किताब को क़ुराने-हकीम कहा गया है. मगर इसमें हिकमत के नाम पर एक सूई की ईजाद भी नहीं है, बखान है तो कुदरत के उन कारगुज़ारियों की जिसको दुन्या रोज़े-अव्वल से जानती है. बहुत सी ग़लत और फूहड़ जानकारियां अल्लाह ने क़ुरआन में गुमराह कुन ज़रूर पेश की हैं. 

''क्या मक्का के लोगों को इस बात से तअज्जुब है कि हम ने उन लोगों में से एक के पास वहीय भेज दी कि सब लोगों को डराए और जो ईमान लाएँ उन को ख़ुश ख़बरी सुनाएँ कि उन के रब के पास उन को पूरा मर्तबा मिलेगा. काफ़िर कहते हैं कि वह शख़्स  बिला शुबहा सरीह जादूगर है''
"बिला शुबहा तुम्हारा रब अल्लाह ही है जिसने आसमानों और ज़मीन को चार को दिनों में पैदा कर दिया और फिर अर्श पर कायम हुवा.''
सूरह यूनुस १० पारा 11 आयत (२-३)

फिर इसके बाद अल्लाह को आसमान से उतरने की फ़ुर्सत न रही न ताक़त न ज़रुरत. 
वह मुहम्मद और मूसा जैसे लोगों को अपना पयम्बर बना बना कर भेजता रहा कि जाओ और हमारी ज़मीन पर मनमानी करो. मेरे नाम पर अपने गढ़े हुए झूटों की बुन्यादें रक्खो और ज़मीन पर फ़साद के बीज बोते रहो. 
मक्का के लोगों को इस बात पर न कभी तअज्जुब हुवा न यक़ीन कि उनमे से ही जाना बूझा एक अनपढ़ अल्लाह का नबी बन गया है, 
हाँ! इन के लिए मुहम्मद कुछ दिनों के लिए मशग़ला ज़रूर बन गए थे बाद में एक बड़ी बद अमनी बन कर अज़ाब बने.
मक्का के लोगों ने मुहम्मद को कभी भी जादूगर नहीं कहा न ही इनके कलाम में जादूइ असर की बात की, यह तो ख़ुद मुहम्मद अपनी तारीफ़ में बार बार यह बात कहते हैं कि क़ुरआनी बातें जादूई असर रखती हैं जो कि उल्टा उनके ख़िलाफ़ जाती हैं. 
तर्जुमानों के लिए बड़ी मुश्किल पैदा होती है, वह इस  बात को इस तरह रफ़ु करते हैं ---
''नौज़ बिल्लाह जादू चूंकि झूट होता है यहाँ अल्लाह के कहने का मतलब हैकि - - -''
इस के बाद वह अपना झूट लिखते हैं.

मक्का के लोग मुहम्मद को दीवाना समझते थे और इनके कुरआन को दीवानगी. दीवानगी के आलम में अगलों से चली आ रही सुनी सुनाई बातें. 
यही सच है कुरआन में इस के अलावःअगर कुछ है तो जेहादी लूट मार.

''जिन लोगों को हमारे पास आने का खटका बिलकुल नहीं और वह दुनयावी ज़िन्दगी पर राज़ी हो गए हैं और जो लोग हमारी आयतों से बिलकुल ग़ाफ़िल हैं, ऐसे लोगों का ठिकाना उनके आमाल की वजेह से दोज़ख़ है. जो शख़्स अल्लाह और रसूल की पूरी इताअत करेगा, अल्लाह तअला उसको ऐसी बहिश्तों में दाख़िल कर देंगे जिसके नीचे नहरें जारी होंगी, हमेशा हमेशा इन में रहेंगे. यह बड़ी कामयाबी है.''
सूरह यूनुस १० पारा 11 आयत  (७-९)

दुन्या की बुलंद और बाला तर हस्तियों के आगे अवाम उनकी रूहानियत के क़ायल हो कर हाथ जोड़े दर्शन के लिए खड़े रहते हैं और मुहम्मद अवाम के आगे बेरूह क़ुरानी आयतें लिए पैग़म्बरी की फेरी लगाते फिरते हैं कि मैं बक़लम ख़ुद पैग़म्बर हूँ और वह हर जगह से मारे भगाए जाते हैं. देखिए कि उनके दावत में कोई दम है? कुंद ज़ेहन अक़ीदत मंद और अय्यार आलिमान ए दीन कहेंगे कि  
'' फिर इस्लाम इतना क्यूँ और कैसे फ़ैल गया ?''
जवाब है 
बज़ोर तलवार और बज़रीए माले-ग़नीमत.



जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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