Tuesday 17 April 2018

Hindu Dharm 168




सीता कथा 

भारत में ग़ुलाम वंशज के दूसरे बादशाह अल्तुतमिश  के वक्त में बाल्मीकि कानपुर की वन्धाना तहसील में  बिठूर स्थित गाँव में रहते थे. उन्होंने सीता नाम की तलाक़ शुदा औरत को पनाह दी थी. बिठूर जाकर इस विषय में बहुत सी जानकारियाँ और निशानियाँ आज भी जन जन की ज़ुबान पर है. बाल्मीकि रामायण संस्कृत में, सीता पर लिखी एक रोचक कथा मात्र है. तुलसी दास ने हिंदी में अनुवाद कर के इस में बड़ा हेर फेर किया है. रचना को दिलचस्प कर दिया है. 
इसी राम कहानी को मनुवाद ने भारत का धर्म घोषित कर दिया है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान


लूतिया 

कठुआ जम्मू की मख़लूक़ (जीव) को हाथ में कौमी झंडा लिए , बलात कारियों के समर्थन में नारे लगते और चिल्लाते देख कर तौरात का एक चैप्टर आँखों के सामने आकर  रुक गया. 
वाक़िया यूँ है कि हज़रात इब्राहीम का भतीजा हज़रात लूत, 
अपनी दो बेटियों और बीवी को लेकर अपने एक बचपन के दोस्त के घर मेहमान बन कर ठहरा था कि बस्ती के लोग आ गए. हज़रात लूत और उनके दोस्त ने सुना कि बाहर लोग शोर मचा रहे हैं - - -  
"दरवाज़ा खोलो वरना तोड़ देंगे- - - " 
दोस्त ने दरवाज़ा खोला और पूछा कि क्या बात है ? क्या चाहते हो ?? 
भीड़ में से एक बोला हम चाहते हैं कि अपने मेहमान को बाहर निकालो, 
हम लोग उसके साथ बलात्कार करेंगे. 
(दर अस्ल उस बस्ती के लोग समलैंगिक हुवा करते थे और समलैंगिकता बुरा भी नहीं मानते) 
दोस्त ने कहा भाई वह मेरे मेहमान हैं, उनको तो छोड़ दो. 
भीड़ कुछ सुनने को तैयार न थी , 
तब हज़रात लूत बाहर आए और उनको समझाया कि
यह ग़ैर फ़ितरी अमल है, ऐसा मत करो, 
चाहो तो मेरी बेटियों को ले लो, 
मगर भीड़ इस पर भी तैयार न हुई. 
हज़रात लूत ने उस बस्ती के लोगों को बद दुआ दे दिया, 
ऐसी बरसात हुई कि लोग खड़े खड़े नमक बन कर पिघलने लगे. 
कहते हैं कि उस बस्ती के आसार वीरानी की शक्ल में आज भी देखे जा सकते हैं. 
बस्ती का नाम लूतके नाम पर लूतिया पड़ गया. 
कठुवा के सभ्य नागरिक अपने असभ्य नागरिक को समझाएँ  
कि आगे उनका चरित्र ऐसा ही रहा तो भारत की यह बस्ती एक दिन लूतिया हो जाएगी.
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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