Monday 9 April 2018

Soorah taubah9 – Q- 6

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह-ए-तौबः 9
(क़िस्त-6)

सूरह-ए-तौबः एक तरह से अल्लाह की तौबः है . 
अरबी रवायत में किसी नामाक़ूल, नामुनासिब, नाजायज़ या नाज़ेबा काम की शुरूआत अल्लाह या किसी मअबूद के नाम से नहीं की जाती थी, 
आमद ए इस्लाम से पहले यह क़ाबिल ए क़द्र अरबी क़ौम के मेयार का एक नमूना था. 
क़ुरआन में कुल 114 सूरह हैं, एक को छोड़ कर बाक़ी 113 सूरतें - - -
"आऊज़ो बिल्लाहे मिनस शैतानुर्र्र्जीम , बिमिल्लाह हिररहमान निर रहीम " से शुरू होती हैं . 
वजह ? 
क्यूंकि सूरह तौबः में ख़ुद अल्लाह दग़ा बाज़ी करता है इस लिए अपने नाम से सूरह को शुरू नहीं करता.  
बक़ौल मुहम्मद क़ुरआन अल्लाह का कलाम है तो इंसानी समाज का इसमें दख्ल़ क्यूँ ? 
क्या अल्लाह भी समाजी बंदा है ?

देखिए कि उनका अल्लाह क्या क्या कहता है - - -

''और उन देहातियों में बअज़ बअज़ ऐसा है जो कुछ वह ख़र्च करता है, उसको जुर्माना समझता है और तुम मुसलामानों के लिए गर्दिशों का मुंतज़िर रहता है, बुरा वक़्त उन्हीं पर है और वह अल्लाह सुनते और जानते हैं.'' 
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (98) 

तो ये रही मुहम्मद के देहाती अल्लाह की देहातियों पर पकड़. 

"जिन देहातियों और अन्सरियों ने ख़ुद को अल्लाह और उसके रसूल के  बमय लाल और माल हवाले करदिया है उसके लिए जन्नत में महल होंगे जिनके नीचे नहरें बह रही होंगी."
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (१००)

मुहम्मद मक्का से बद हाली के आलम में फ़रार होकर, 
अपने साथी अबू बक्र के हमराह मदीने आए और जिस घर में पनाह लिया उस घर को बाद में वहाँ के लोगों ने मस्जिद बनवा दिया, जब कि मुहम्मद ने उसी घर से लगी ज़मीन ख़रीद कर मस्जिद बनवाई जिसका नाम आज तक मस्जिदे-नबवी है. 
मुहम्मद मक्के से मदीने जब आए तो वहां के लोग बहुत खुश गवारी में थे कि मक्के का बाग़ी आ रहा है, 
दूसरे यह कि यहूदी और ईसाई के योरो शलम वाले मदीने में बुत परस्तों की मुख़ालफ़त करने वाला एक बुत परस्त क़ुरैश उनका हम नवा बन कर पैदा हुवा है. 
तीसरी बात ये कि मक्का हमेशा शर पसंद रहा है, मदीनियों ने ख़याल किया कि दुश्मन का दुश्मन हमारा दोस्त बनेगा. 
इन्हीं तमाम जज़्बात को मद्दे नज़र रखते हुए लोगों ने उस घर को भी मस्जिद बना दिया था जिस में मुहम्मद ने पहली बार क़दम रखा था, कामयाबी मिलने के बाद मुहम्मद का इस्लाम शैतानी शक्ल अख़्तियार करने लगा तो यहाँ के मुसलमानों ने मुहम्मद का साथ उनके अल्लाह के मनमानी फ़रमान में उसकी बात की मुख़ालिफ़त की. 
बस मुहम्मद ने इनको कुफ्र का लक़ब दे दिया और मस्जिद को नाम दिया '' मस्जिद-ए-ज़र्रार'' यानी ज़रर पहुँचाने वाली मस्जिद. 
मुहम्मद और नुक़सान उठाएं? 
ना मुमकिन. 
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (१०१-११०) 

मुहम्मद क़ीमती इंसानी ज़िन्दगी को अपने मुफ़ाद के लिए जेहाद के नज़र यूँ करते हैं - - - 
''बिला शुबहा अल्लाह तअला ने मुसलमानों से उनके जानों और उनके मालों को इस बात के एवज़ ख़रीद लिया है कि उनको जन्नत मिलेगी, वह लोग अल्लाह की राह में लड़ते हैं , क़त्ल करते हैं, क़त्ल किए जाते हैं, इस पर सच्चा वादा है तौरेत में, इन्जील में, और क़ुरआन में और अल्लाह से ज़्यादः अपना वादा कौन पूरा करने वाला है? तो तुम लोग अपने बयनामे पर जिसका तुम ने अल्लाह के साथ मुआमला ठहराया है ,ख़ुशी मनाओ.'' 
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (१११)

यही क़ुरानी आयतें तालिबानी ज़ेहनों को आत्म घाती हमलों पर आमादः करती हैं और मुसलामानों को इस तरक़्क़ी याफ़्ता दुन्या के सामने ज़लील करती हैं. इनपर तमाम दुन्या के शरीफ़ और समझदार क़यादत को एक राय होकर पाबंदी आयद करना चाहिए.

''पैग़म्बर और दूसरे मुसलामानों को जायज़ नहीं कि मुशरिकीन की मग़फ़िरत की दुआ मांगे, चाहे वह रिश्तेदार ही क्यूं न हो, इस अम्र के ज़ाहिर हो जाने के बाद कि वह दोज़ख़ी है.'' 
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (११२-१३) 

मुहम्मद की क़ल्ब सियाही इन बातों से देखी जा सकती है मगर उनका दोहरा मेयार भी याद रहे कि जब अपने मोहसिन चचा अबू तालिब की अयादत में गए तो उनसे पहले अपने हक़ में कलिमा मुहम्मदुर रसूलल्लाह पढ़ लेने की बात की, वह नहीं माने तो उठते उठते कहा 
ख़ैर, मैं आपकी मग़फ़िरत की दुआ करूंगा. 
मगर ठहरिए, लोगों की याद दहानी पर मुहम्मद इसे अपनी भूल मानने लगे हैं और ऐसी भूल सय्यदना इब्राहीम अलैहिस सलाम से भी हुई, 
गढ़ी हुई आयत मुलाहिज़ा हो - - - 
''और इब्राहीम ने दुआए मग़फ़िरत अपने बाप के लिए माँगा और वह सिर्फ़ वादा के सबब था जो इन्हों ने इस से वादा लिया था, फिर जब उन पर यह बात ज़ाहिर हो गई की वह ख़ुदा का दुश्मन है तो वह उस से महज़ बे ताल्लुक हो गए." 
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (११४) 

पिछले बाब में मैं लिख चुका हूँ, फिर दोहरा रहा हूँ कि बाबा इब्राहीम इंसानी तवारीख़  के पहले नामवर इंसान हैं जिनका ज़िक्र आलमी इतिहास में सब को मान्य है.
पाषाण युग था वह पत्थर तराश के बेटे थे, बाप के साथ संग तराशी में बमुश्किल गुज़ारा होता था. बाबा इब्राहीम की वजेह से उनके बाप नाम भी जिंदा-ए-जावेद हो गया. 
यहूदी तौरेत उनको तेराह बतलाती है अरबी उन्हें आज़र कहते हैं. उन्हों ने अपने बेटे अब्राहाम और भतीजे लूत को ग़ुरबत से नजात पाने के लिए ठेल ढकेल के परदेस भेजा यह सपना दिखला कर कि तुम को दूध और शहद की नदियों वाला देश मिलेगा. 
इब्राहीम और लूत न पैगम्बर थे और न आज़र काफ़िर. 
वह लोग पाषाण युग के अविकसित सभ्यता के पथिक मात्र थे. 
क़ुरान में जो आप पढ़ रहे है वह झूटी पैग़म्बरी के गढ़े हुए मक्र हैं. 
बे ज़मीर पैग़म्बरी तमाम हदें पार करती हुई अल्लाह यानी ख़ुदाए बरतर को यूं रुसवा करती है - - - 

''और अल्लाह तआला ऐसा नहीं करता कि किसी क़ौम को हिदायत किए पीछे गुमराह करदे जब तक कि उन चीज़ों को साफ़ साफ़ न बतला दे जिन से व बचते रहें.'' 
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (११५) 

देहातियों की तादाद बहुत बढ़ गई है, मुहम्मद को एक राह सूझी है कि इनके बड़े बड़े इलाक़ाई गिरोह बना दिए जाएँ उनमें से चुने हुए नव जवानों की टुकडियाँ बना दी जाएँ जो अतराफ़ की काफ़िरों की बस्तियों पर हमला करके अपने क़बीले को माले-ग़नीमत से ख़ुद कफ़ील बनाएँ.

''ए ईमान वालो! इन कुफ़्फ़ारों से लड़ो जो तुम्हारे आस पास रहते हैं और इनको तुम्हारे अन्दर सख़्ती पाना चाहिए.'' 
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (१२२-२३) 

मुहम्मद की इस नुज़ूली क़लाबाज़ी में लोग उनकी नबूवत की दावत पर दाख़िल होते हैं और उसे परख कर ख़ारिज हो जाते हैं. साथ साथ अल्लाह भी क़ला बाज़ियां खाता रहता है - - - 
''और क्या उनको नहीं दिखाई देता कि यह लोग हर साल में एक बार या दो बार किसी न किसी आफ़त में फंसे रहते हैं, फिर भी बअज़ नहीं आते और न कुछ समझते हैं और जब कोई सूरह नाज़िल की जाती है तो एक दूसरे का मुंह देखने लगते हैं कि तुम को कोई देखता तो नहीं, फिर चल देते हैं, अल्लाह तअला ने इनका दिल फेर दिया है इस वजेह से कि वह महेज़ बे समझ लोग हैं. तुम्हारे पास एक ऐसे पैग़म्बर तशरीफ़ लाए हैं जो तुम्हारे जिन्स से हैं जिनको तुम्हारी मुज़िररत की बातें निहायत गराँ गुज़रती हैं जो तुम्हारे मुनफ़ेअत के बड़े ख़ाहिश मंद रहते हैं. ईमान दारों के साथ निहायत शफ़ीक़ और मेहरबान है. फिर अगर यह रू गरदनी करें तो आप कह दीजिए मेरे लिए अल्लाह तअला काफ़ी है और वह बड़े भारी अर्श का मालिक है.'' 
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (१२६-१२९) 

क़ुदरती आफ़तों को भी मुहम्मद भुनाना नहीं भूलते, 
लोग इनकी फ़ित्तीनी आयतों से नालां होकर दूर भागने लगे हैं, 
अब इन को वह काफ़िर भी नहीं कहते, महेज़ बे समझ लोग कहते हैं. उनके लिए ज़बरदस्ती शफ़ीक़ और मेहरबान बने रहते हैं. 
रू गर्दानी करने वालों को आगाह करते हैं कि उनका कुछ नहीं बिगड़ता है क्यूँ कि उनके साथ उनका तलाश किया हुवा अल्लाह जो है जिसके सिवा कोई मअबूद नहीं 
और वह बहुत भारी आसमान का मालिक जो है, 
एक टुकड़ा मुहम्मद के नाम करदेगा. 
खुद को जिन्स ए इंसानी या लोगों का हम जिन्स बतला कर मुहम्मद जिन्स के बारे में महज़ जेहालत की बातें करते हैं, जिसे हर बार मुतराज्जिम मुश्किल में पड कर ब्रेकेट लगा कर मुहम्मद की रफ़ुगरी करता है. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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