Tuesday 3 April 2018

indu Dharm 162




पृथ्वीराज चौहान

दिल्ली के शाशक अनंग पाल की दो बेटियां थीं, कोई बेटा न था.
बड़ी बेटी का शौहर पृथ्वीराज चौहान था और छोटी का जय चंद गहरवार.
ऐसी सूरत में मान्यताओं के आधार पर राजा अनंग पाल के मरने के बाद बड़ी बेटी का बेटा दिल्ली राज्य का वारिस हुवा.
राजा अनंग पाल  के मरने के बाद उसका बड़ा दामाद पृथ्वीराज चौहान अपने और अपनी बीवी के राज का मालिक बन गया. जिससे राजा जय चंद को मलाल ज़रूर हुवा मगर नियति को पी गए.
पृथ्वीराज चौहान ओछे व्यक्तित्व का मालिक था, हर मौक़े पर अपने साढू  राजा जय चंद को अपमानित करता.
पृथ्वीराज चौहान अपने साढू के किसी भी अच्छे या बुरे अवसर पर न शरीक होता  और उनके कन्नौज राज्य का तिरस्कार करता.
उसकी अय्याशी का यह आलम था कि अपनी साली की बेटी संयोगिता का अपहरण कर लिया.
(संयोगिता राजा जयचंद की बेटी नहीं थी, वह निःसंतान मरे, संयोगिता उनके भाई राजा मानिक चंद की बेटी थी)
शरीफ और सज्जन पुरुष राजा  जय चंद ने इन हालात में अपनी शाख और अपनी प्रतिष्ठा बचाने के लिए पडोसी को आवाज़ लगाईं .
मुहम्मद गौरी ने उनकी मदद किया  और पृथ्वीराज चौहान पर आक्रमण किया, अपने गुलाम क़ुतुब उद्दीन ऐबक को पृथ्वीराज चौहान के सिंघासन पर बिठा कर वापस गौर चला गया.
हिन्दू इतिहास ने राजा  जय चंद को ग़द्दार का लक़ब दिया, अगर राजा  जय चंद अपनी मर्यादा और अपने राज्य को दुश्मन को समर्पित करता तो कायर राजा लिखा जाता. उन्हों ने सहायता को कायरता से बेहतर समझा.
बहन बेटी की आबरू खंडित होने पर हर मजबूर आदमी पड़ोस से मदद की गुहार लगाता है. यह बात प्राकृतिक है और मौलिक भी.
अपने साढू की बेटी, बेटी तुल्य संयोगिता को पटरानी बनाने के जुर्म में मुहम्मद गौरी राजा  जय चंद बंधक बना कर अपने साथ लेकर चला था कि कंधार में पृथ्वीराज चौहान की मौत हो गई,
वहीँ  कंधार में पृथ्वीराज चौहान को दफ्न कर दिया गया. उस पर उसके बद चलनी के जुर्म पर मुक़दमा न चल सका.
मुहम्मद गौरी ने हुक्म दिया कि इस बदकार की क़ब्र पर पांच पांच जूते सज़ा के तौर पर मारे जाएँ. यह सज़ा दायमी बन गई. आज भी उधर से गुज़रने वाले रुक कर ज़ेरे लब एक भोंडी सी गाली "बेटी - - - " पढ़ कर  पांच जूते लग़ाते हैं. 
कंधार इयर पोर्ट से आने और जाने वाले अफ़गान पृथ्वीराज चौहान की कब्र पर पांच जूते मार कर ही आगे बढ़ते हैं.
राजा  जय चंद के वंसज में पूर्व प्रधान मंत्री राजा विश्व नाथ आते हैं जिन्होंने अपने पूर्वजो से मिले हुए रजवाड़े को दान कर दिया था और पूर्वजों की मान्यता मनुवाद  को धिक्कारते और ठुकराते हुए मंडल आयोग की सिफारशों को लागू कर दिया था जिससे उन्हें गद्दी गवानी पड़ी और अपने पूर्वज राजा जयचंद का ख़िताब "ग़द्दार" झेलना पड़ा.
यह चापलूस और झूठे इतिहासकार अपने शाशक के ग़ुलाम हुए जा रहे हैं.
यह आर्यन को भारत का मूल निवासी लिख रहे हैं.
भंगियों को अकबर का देन लिखते है,
जबकि अकबर ने भंगियों को असली हलाल खोर का दर्जा दिया था .
हमारे किस्से और कहानियां तो एलान के साथ झूटी होती हैं जिसे आम जनता सच मानने लगती है.
रुस्वाए ज़माना पृथ्वीराज चौहान को कुछ इतिहास कार मर्यादित करते हैं
कि सच को शायद छिपा सकें,
मगर नहीं समझते कि धरती का इतिहास कई कोनों में छिपा है.
आज भी राजस्थान का मनुवाद प्रभावित वर्ग झूठे इतिहास लिखवा रहा है
कि महाराणा प्रताप विजई और अकबर पराजित हुवा.
मगर सच्चाई कभी नहीं मरती,
एक दिन प्रगट होती है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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