Friday 20 April 2018

Soorah hood 11 क़ 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह हूद-११ 
(क़िस्त -1)
शर्मीला अल्लाह बड़े अदब के साथ अपने शौहर ए मोहतरम से मुख़ातिब है - - -  ''आप का दिल इस बात से तंग होता है कि वह कहते हैं कि उन पर कोई ख़ज़ाना नाज़िल क्यूं नहीं हुआ या उनके हमराह कोई फ़रिश्ता क्यूं नहीं आया? आप तोसिर्फ़ डराने वाले हैं.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (१२)

मुहम्मद का मक्र मुसलमानों के दिमाग़ के दरीचे खोलने के लिए यह क़ुरआनी आयतें ही काफ़ी हैं. 
क्या जंगों में फ़रिश्तों को सिपाही बना कर भेजने वाला अल्लाह ऐसा नहीं कर सकता था कि दो चार फ़रिशेत मुहम्मद के साथ तबलीग़ में लगा देता, कि लोग ख़ुद बख़ुद नमाज़ों के लिए सजदे में गिरे होते. 
लोगों का मुतालबा भी सही है कि मुहम्मद को कोई ख़ज़ाना अल्लाह ने मुहय्या क्यूं न कर दिया कि जंगी लूट पाट के लिए लोगों को न फुसलाते?

''कहते हैं आपने क़ुरआन को ख़ुद बना लिया है, आप कह दीजिए कि तुम भी इस जैसी दस सूरतें बना कर लाओ और जिन जिन ग़ैर अल्लाह को बुला सको बुला लो, अगर तुम सच्चे हो.''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (१३)

वह लोग तो ऐसी बेहूदा सूरतों की अंबार लगा दिया करते थे मगर मुहम्मद बेशर्मी से अड़े रहते कि अल्लाह का मुक़ाबला हो ही नहीं सकता जैसे आज मुल्ला डटे रहते हैं कि बन्दा और अल्लाह का मुक़ाबला करे? 
लहौल्वलाकूवत. 
लग भग सारा क़ुरआन और इसकी तमाम सूरह ब मय जुमला आयतों के चन्द जुमले मिलना मुहाल है जिसमे बलूग़त होने के साथ साथ मानी और मतलब के जायज़ पहलू हों.

''और ऐसे शख़्स से बढ़ कर ज़ालिम कौन होगा जो अल्लाल तअला पर झूट बांधे - - - ''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत (१८)

मुहम्मद का तकिया कलाम है कि उन लोगों को ज़ालिम कहना जो उनकी झूटी बात पर यक़ीन न करे. वह अत्याचारी है जो अल्लाह बने हुए मुहम्मद पर और उनके कलाम पर यक़ीन न करे, इस बात को इतना दोहराया गया है कि आज मुसलामानों का ईमान यही क़ुरआनी ख़ुराफ़ात बन गई हैं. इन्तेहाई गंभीर और क़ौमी फ़िक्र का मुआमला है.

*आजकल मुहम्मद का नया तकिया कलाम, कलामे इलाही के लिए बना हुवा है 
''अल्लाह को आजिज़ करना '' 

गोया अल्लाह कोई बेबस, बेचारी औरत, या बच्चा नहीं, 
या है भी कि जो आजिज़ और बेज़ार भी हो सकता है.
 उम्मी का यह तकिया कलामी सिलसिला कुछ देर तक चलेगा फिर याद आएगा कि ''अल्लाह को कुन फयाकून '' की ताक़त रखने वाला जादूगर है, कहा ''हो जा'' और हो गया. 
दुन्या को कहा ''हो जा!'' दुन्या हो गई. 
इतनी बड़ी हस्ती इन काफिरों की बातें कान लगाए आजिज़ न होने के लिए सुनती हैं? 
मुसलमानों यह अल्लाह के आड़ में मुहम्मद के कान हैं. 
क्या इतना भी तुम्हारी समझ में नहीं आता? 
सोचो कि दरोग़ की तुम उम्मत हो?
मुहम्मद ने वज्दानी कैफ़ियत में अपने मिशन को लेकर जो भी मुँह में आया है, बका है. 
तर्जुमा निगारों ने ब्रेकेट लगा लगा कर भर पूर मुहम्मदी अल्लाह की मदद की है. 
उसके बाद भी मंतिक़ि ने तिकड़म लगा कर हाशिया पर तफ़सीर लिखी हैं. 
यह तमाम टीम जंगजू जेहादियों के लूट माले-ग़नीमत के हिस्से दार हुआ करते थे. 
इस कुरआन, इस के पुर मक्र तर्जुमा, इस बकवास तफ़सीरों और दलीलों को सिरे से ख़ारिज कर देने की ज़रुरत है. इसी में मुसलमानों की नजात है. 

ज़रा देखिए क्या क्या बकवास है मुहम्मद की - - - '

'और लोग कहने लगे ऐ नूह तुम हम से बहस कर चुके, फिर बहस भी बहुत कर चुके, सो जिस चीज़ से तुम हमको धमकाया करते हो (क़यामत) वह हमारे सामने ले आओ, अगर सच्चे हो. उन्हों ने फ़रमाया अल्लाह तअला बशर्त अगर उसे मंज़ूर है, तुम्हारे सामने लावेगा और तुम उसको आजिज़ न कर सकोगे और मेरी ख़ैर ख़्वाही तुम्हारे काम नहीं आ सकती, गो मैं तुम्हारी ख़ैर ख़्वाही करना चाहूं, जब की अल्लाह को ही तुम्हारी गुमराही मंज़ूर हो - - - ''
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (19-34)

हज़रते-नूह का ज़िक्र एक बार फिर आता है. नूह के बारे में मुहम्मद की जानकारी जो भी हो, जहाँ जहाँ नूह का ज़िक्र करते हैं वहाँ वहाँ वह ग़ायबाना नूह बन जाते हैं. अपने मौजूदा हालात को नूह के हालात बना देते हैं. नूह की उम्मत को अपनी नाम निहाद और नाफ़रमान उम्मत जैसी उम्मत पेश करते हैं. नूह की उम्मत में काफिरों का बुरा अंजाम दिखला कर अपनी उम्मत को धमकाने लगते हैं. 
मुहम्मद झूटी कहानियां गढ़ गढ़ कर इसको अल्लाह की गवाही में सच ठहराते हैं. 
इसे पढ़ कर एक अदना दिमाग रखने वाला भी हँस देगा मगर बेज़मीर इस्लामी आलिमों ने इसमें मानी और मतलब भर भर के इसको मुक़द्दस बना दिया है. बड़ी चाल के साथ कुरआन को तिलावत के लिए वक्फ़ करदिया है. मुसलमानों की बद क़िसस्मती है कि जब तक वह कुरआन को नहीं समझेगा, ख़ुदद को नहीं समझ पाएगा. मुसलामानों के सामने ख़ुद तक पहुँचने के लिए कुरआन का बड़ा झूट हायल है.

नूह की तरह ही मुहम्मद सुने सुनाए नबियों आद, हूद, समूद, सालेह, यूनुस, लूत, और शोएब वग़ैरह की कहानियाँ गढ़ गढ़ कर अपने हालात के फ्रेम में चस्पाँ करते हैं, जिसे सुन कर लोग इनका मज़ाक़ उड़ाने के सिवा करते भी क्या? उस वक़्त भी लोग समझदार थे बल्कि ख़ुद साख़्ता  पैगम्बर ही बेवक़ूफ़ थे. इतने जाहिल भी न थे जितने बने हुए रसूल. 
सूरह हूद -११ पारा १२ आयत  (३५-५६)

अफ़सोस कि इन लग्वयात और  कहानियों से अटा और इन बे बुन्याद दलीलों से पटा पुलिंदा मुसलामानों के अल्लाह का फ़रमान बन गया है. 
इसे दिन में पाँच बार अक़ीदत के साथ वह अपनी नमाज़ों में दोहराता है. नतीजतन मुसलमानों की ज़िन्दगी हक़ीक़त से कोसों दूर जा चुकी है और झूट के करीब तर.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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