Monday 30 April 2018

* आज 1 मई है*




* आज  1 मई है* 

आज का दिन है मई दिवस का , आज का दिन है बड़ा महान,
आज के दिन आज़ाद हुए हैं, दुन्या के मज़दूर किसान. 

सदी होने को है जब कार्ल मार्क्स, लेनिन और उनके जांबाज़ साथियों ने मेहनत कशों­­ को ज़ारों और सरमायादारों के चंगुल से आज़ाद कराया था, जब मेहनत कश अवाम एक एक मुठ्ठी दाने के लिए तरसती थी और इब मुट्ठी भर नागों की ग़ुलाम हुवा करती थी. हमारी आज की नस्लें भूल गई हैं कि उनके पूर्वज कितने मज़लूम हुवा करते थे, कम ही नव जवान जानते है 1 मई की छुट्टी क्यों होती है, इसका इतिहास क्या है ? 
1 मई की आज़ादी को आज पूरी दुन्या मनाती है, भले अमरीका ही क्यूँ न हो.
इन्क़लाब ने दुन्या का नक़्शा ही बदल दिया था. 
लाखों वह मुजरिम मौत के घाट उतारे गए जो मुज्रिमे-इंसानियत थे, 
वह भी जो धार्मिक अफ़ीम के ताजिर थे, जो मुफ़्त खो़र थे, 
जो इंसानी  ख़ून को अपनी ख़ुराक़ बनाए हुए थे, ऐसे साँपों को साइबेरिया के  रेगिस्तान में छोड़ दिया गया था, कि जहाँ वह आज़ादी के साथ गाड, अल्लाह और भगवानों का कारोबार करें. पादरी और मुल्लों की शामत आ गई थी. 
तुर्की के इन्क़लाबी कमाल पाशा ने उन क़ाबिज़ मुल्लाओं को जहाज़ में भर कर समंदर में डुबो दिया था.
भारत ने बहुत दूर से मई दिवस को देखा था और सुना था, निकट आने से पहले ही मई दिवस की छुट्टी का एलान कर दिया. गोया इन्क़लाब आया और गया,
नतीजतन हम जहाँ के तहां पड़े हुए हैं. 
यहाँ धार्मिक लुटेरों की शाख़ मज़बूत जड़ें रखती है. 
बाबाओं और माल्याओं का बोल बाला है. 
सर उठाने वाले इंक़्लाबियों को नक्सल वादी, माओ वादी और देश द्रोही कह कर गोलियों से भून दिया जाता है.
परिणाम स्वरूप दुन्या का सब से ज़्यादः ज़रखेज़ टुकड़ा आज भी ग़रीबी और भुखमरी का शिकार है.


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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