Thursday 19 April 2018

Hindu Dharm 169




कृष्ण दोराहा 

क्या कभी आपने गौर किया है कि 
वेद और गीता में कहीं भी औरतों का कोई दर्जा है ? 
क्या उनको भी मानव समूह का कोई अंश माना गया है ? 
हमारा संविधान तो औरतों को मर्दों के बराबर लाकर खड़ा करता है, 
कहीं कहीं इस से भी ज्यादा, 
कि सार्वजानिक स्थानों पर अगर कोई महिला ख़ड़ी हुई है 
तो बैठे हुए पुरुष को उसका सम्मान करते हुए उठ खड़ा हो जाना चाहिए. 
वेद में शायद कहीं कोई ज़िक्र आ गया हो महिलाओं का किसी वस्तु की तरह, 
वरना हवन अनुष्ठान मर्दों द्वारा, 
यजमान पुरुष केवल , 
इन्द्र देव और अग्नि देव से लेकर दर्जनों देव सिर्फ़ पुल्लिंग. 
सोमरस और हव्य, सब पुरुषों द्वारा पाए और खाए जाते हैं.
गीता पर भी वेदों की गहरी छाप है, मनु के शिष्यों ने ही गीता को रचा, 
शायद भृगु महाराज. 
गीता भी पुरुष प्रधान है. 
कृष्णाभावनामृत तो वासना को पाप मानते है, 
अर्थात पाप कर्म का साधन स्त्री. 
कृष्ण भक्त अजीब दोराहा पर खड़े हैं,
कि मथुरा में इन्हीं भगवन श्री की राधा कृष्ण की लीला सुनाई और दिखाई जाती. 
यह धर्म के धंधे बाज़ हर अवस्था में और हर आयु के लोगों को अपने डोर में बांधे हुए हैं. समाज में कब जागृति आएगी ?
कि उसको बतलाया जाएगा कि तुम्हारी मंजिल कहीं और है. 
इनसे मुक्ति पाओ.
***
माताएं  
भारत माता, गऊ माता, गंगा माता, लक्ष्मी माता, 
सरस्वती माता, तुलसी माता, अग्नि माता 
यहाँ तक कि (चेचक) माता +और बहुत सी माताएं, 
सब  हिन्दुओं  के ह्रदय में बसती हैं, 
सिर्फ अपनी जननी माता के अतरिक्त, 
जो विधिवा होने पर सांड जैसे पंडों के आश्रम में बसती, 
माँ के पैरों तले जन्नत होती है, 
यह दुष कर्मी , कुकर्मी और मलेच्छ मुसलमानों का मानना है.

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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