Monday 2 April 2018

Soorah taubah 9 – Q- 3

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह-ए-तौबः 9
(क़िस्त-3)

सूरह-ए-तौबः एक तरह से अल्लाह की तौबः है . 
अरबी रवायत में किसी नामाक़ूल, नामुनासिब, नाजायज़ या नाज़ेबा काम की शुरूआत अल्लाह या किसी मअबूद के नाम से नहीं की जाती थी, 
आमद ए इस्लाम से पहले यह क़ाबिल ए क़द्र अरबी क़ौम के मेयार का एक नमूना था. 
क़ुरआन में कुल 114 सूरह हैं, एक को छोड़ कर बाक़ी 113 सूरतें - - -
"आऊज़ो बिल्लाहे मिनस शैतानुर्र्र्जीम , बिमिल्लाह हिररहमान निर रहीम " से शुरू होती हैं . 
वजह ? 
क्यूंकि सूरह तौबः में ख़ुद अल्लाह दग़ा बाज़ी करता है इस लिए अपने नाम से सूरह को शुरू नहीं करता.  
बक़ौल मुहम्मद क़ुरआन अल्लाह का कलाम है तो इंसानी समाज का इसमें दख्ल़ क्यूँ ? 
क्या अल्लाह भी समाजी बंदा है ?


अब देखिए कि क़ुरआन में मुहम्मदी साज़िशी अल्लाह क्या कहता है - - - 

मुहम्मद पहले कुंद ज़हनों, लाखैरों और नादारों को मुसलमान बनाते हैं 
और उसके बाद मुसलमानों को जेहादी ज़रीआ मुआश फ़राहम करके उस पर क़ायम रहने पर आमादा किए रहते हैं. 
माल ए ग़नीमत को मुसलमानों को चार दिन सुकून से खाने पीने भी नहीं देते कि अगली जेहाद की तय्यारी का हुक्म हो जाता है. 
मुहम्मदी अल्लाह अम्न पसंदों को कैसे कैसे ताने देता है मुलाहिजा हो - - - 

''जेहाद से जान चुराने वालों को अल्लाह भी नहीं चाहता कि वह शरीक हों, वह अपाहिजों के साथ यहीं धरे रहें '' 
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (२५)

किसी फर्द की उभरती हुई हैसियत मुहम्मद को क़तई नहीं रास आती, किसी की इन्फ़िरादियत की ख़ूबी उनसे फूटी आँख नहीं देखी जाती, 
न ही किसी की भारी जेब उनको हज़्म होती है. 
ऐसे लोगों के ख़िलाफ़ धडाधड आयतें उतरने लगती हैं. 
आययतें ख़ुद गवाह हैं कि इस्लाम क़ुबूल किए हुए मुसलामानों के दरमियान अल्लाह, उसका ख़ुद साख़्ता रसूल, और उसके क़ुरानी फ़रमूदात तमसख़ुर (मजाक) का बाईस है, जिस पर अलाह बरहम होता है.

आखिर तंग आकर नव मुस्लिम, झक्की और बक्की मुहम्मद से एहतेजाज करते हैं कि आप तो हमारी ज़रा ज़रा सी बातों पर कान लगाए रहते हैं? जिसे मुहम्मद उनको बेवकूफ़ बनाते कि 
''यह बात मुझे बज़रिए वहिय अल्लाह ने बतलाई ''
दर अस्ल यह बातें बज़रिए चुग़लखो़रों से उनको मालूम पड़तीं. अपने नव मुस्लिम साथियों को डराना धमकाना, जहन्नमी क़रार दे देना, मुनाफ़िक़ या काफ़िर कह देना, मुहम्मद के लिए कोई ख़ास बात न थी, जोकि मुसलामानों में आज भी चला आ रहा है, 

अल्लाह कहता है - - -
''ऐ ईमान वालो! 
मुशरिक लोग निरा नापाक होते हैं, 
सो इस साल के बाद यह लोग मस्जिद हराम के पास न आने पाएं. 
अगर तुम्हें मुफ़लिसी का अंदेशा हो तो अल्लाह तुम को अपने फज़ल से अगर चाहेगा 
तो मोहताज नहीं रखेगा. 
बेशक अल्लाह ख़ूब जानने वाला और रहमत वाला है.''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (२८)

मनु महाराज अपनी स्मृति में लिखते हैं कि शूद्रों का साया भी अगर किसी बरहमन पर पड़ जाए तो वह अपित्र हो जाता है और उसको स्नान करना चाहिए, इस क़िस्म की बहुत सी बाते. जैसे इनको जीने का हक़ बरहमन की सेवा के बदले ही है - - - 
इसी तरह यहूदियों को उनके ख़ुदा यहवाह ने नबी मूसा को ख़्वाब दिखलाया कि तुम दुन्या की बरतर क़ौम हो और एक दिन आएगा जब तुम्हारी क़ौम दुन्या के हर क़ौम पर शाशन करेगी, कोशिश जारी रहे - - - 

मेरा अनुमान है कि बरहमन जो बुनयादी तौर पर आर्यन हैं, 
इन के पूर्वज मनु मूसा वंशज एक ही खून हैं.
 यहूदी और ब्राह्मणों का ज़ेहनी मीलान बहुत कुछ यकसाँ है. 
दोनों के मूल पुरुष इब्राहीम, अब्राहाम, अब्राहम, बराहम, और ब्रह्मा एक ही लगते हैं. 
अब यह बात अलग है कि अतिशियोक्ति पसंद पंडितों ने ब्रह्मा का रूप तिल का ताड़ नहीं बल्कि तिल का पहाड़ बना दिया. 
मुहम्मद मूसा और मनु से भी चार क़दम आगे हैं, इन दोनों ने विदेशियों से नफ़रत सिखलाया और यह जनाब अपने भाई बन्धुओं को ही अछूत बना रहे है.

''अहले किताब जो कि न अल्लाह पर ईमान रखते है 
न क़यामत के दिन पर और न उन चीज़ों को हराम समझते हैं 
जिनको अल्लाह और उसके रसूल ने हराम फ़रमाया 
और न सच्चे दीन को क़ुबूल करते हैं,
 इनसे यहाँ तक लड़ो की यह मातहत हो कर जज़िया देना मंज़ूर कर लें.''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (२९)

शर पसंद मुहम्मद, उनसे सदियों पहले आए आए ईसाई और मूसाई कौमों से जेहाद के बहाने तलाश कर रहे हैं, वह भी जज़िया वसूलने के लिए. कितने बेशर्म इस्लमी ओलिमा हैं जो कहते हुए नहीं थकते कि इस्लाम अमन पसंद मज़हब है. इस्लाम का अंजाम यही ख़ुद सोज़ बम रख कर एक मुस्लिम नव जवान अपने साथ ५० मुसलामानों को पाकिस्तान जैसे मुस्लिम मुल्क में हर हफ्ते मौत के घाट उतरता है. भारत में हर रोज़ सैकड़ों बे कुसूर मुसलामानों को ख़ुद अपनी नज़रों में ज़लील ओ ख़्वार करता है. 
शाह रुख खान जैसे फ़नकार को दुन्या के सामने ख़ुलासा करना पड़ता है 
''माय नेम इज खान बट आइ एम नाट टेरेरिस्ट.'' 
मुहम्मद की क़बीलाई दहशत पसंदी की वक़्ती कामयाबी ने आज दुन्या की एक अरब आबादी को शर्मसार किए हुए है मगर ओलिमा रोटियों पर रोटियाँ सेके चले जा रहे हैं. आजके मुस्लिम ओलिमा और दानिश्वर जिस की पर्दा दारी करते फिर रहे हैं वह कलमुही डायन क़ुरआन इन आयातों के परदे में अयाँ है जो दुन्या की हर ख़ास ज़ुबान में तर्जुमा हो चुकी है. 
इस्लाम के चेहरे पर काला धब्बा है यह माल-ए-ग़नीमत और जज़िया जो मौक़ा मिलते ही आज भी इस्लाम के ना इंसाफी पाकिस्तान में दो सिक्खों का सर क़लम करके अपनी वहशत का मुज़ाहिरा करते हैं.

क्या वह वक़्त आने वाला है कि मुसलमानों से दुन्या की मुतासिर क़ौमें माल-ए-ग़नीमत और जज़िया वापस तलब करें, मुसलामानों पर हर ग़ैर मुस्लिम मुल्क में जज़िया लगा करे?

''और यहूद ने कहा अज़ीज़ अल्लाह के बेटे हैं और नसारा ने कहा मसीह अल्लाह के बेटे हैं. यह इनका क़ौल है मुँह से कहने का - - - 
अल्लाह इनको ग़ारत करे यह उलटे जा रहे हैं.''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (३०)

हाँ सच है कि कोई अल्लाह का बेटा नहीं है. 
न कोई अल्लाह का रसूल, 
न कोई अल्लाह न नबी, 
न कोई अल्लाह का अवतार न कोई अल्लाह का चेला 
और न कोई अल्लाह का दलाल. 
अभी तक यह साबित नहीं हो पाया है कि ख़ुदअल्लाह है भी या नहीं. अल्लाह अगर है भी तो ऐसा कोई नहीं जैसा इन अल्लाह के मुजरिमों ने अल्लाह का रूप गढ़ा है. 

मोह्सिन-ए-इंसानियत, इंसानों को ख़ुद बद दुआ दे रहे हैं कि उन्हें अल्लाह ग़ारत करे और मुसलमानों की आँखों में धूल झोंक रहे हैं कि यह मेरा नहीं अल्लाह का कलाम है, मुसलमानों का हाल यह है कि उनकी हाँ में हाँ मिला रहा है, हाँ में ना मिलाने कि हिम्मत ही नहीं है.

''लोग चाहते हैं कि अल्लाह के नूर को अपने मुंह से फूँक मार के बुझा दें ,हालाँकि अल्लाह तअला बदून इसके अपने नूर को कमाल तक पहुँचा दे, मानेगा नहीं, गो काफ़िर लोग कैसे ही नाख़ुश हों.''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (३२)

इस आयत में मुहम्मद ने लाशऊरी तौर पर ख़ुद को अल्लाह तस्लीम कराने की कोशिश की है जो कि उनकी मुहिम की मरकज़ी नियत थी. 
लात, मनात, उज्ज़ा जैसे देवी देवता के क़तार में अल्लाह के बुत निराकार की स्थापना ही तो करते हैं और उन्हीं के दिए की तरह अल्लाह के बुत का भी एक दिया जलाते हैं, 
कल्पना करते हैं कि जैसे हम इरादा रखते हैं इन देवो पर जलने वाले चिरागों को बुझाने का, वैसे ही यह काफ़िर, मुशरिक और मुल्हिद भी हमारे वहदानियत के बुत का दिया मुँह से फूँक मार के बुझादेने का.
कहते हैं - - ''अपने नूर को कमाल तक पहुँचा दे, हालाँकि अल्लाह तआला बदून इसके अपने नूर को कमाल तक पहुँचा दे, मानेगा नहीं, गो काफ़िर लोग कैसे ही नाखुश हों.'' 
अरे भाई उस ख़ुदाए बरतर का कमाल तो रोज़े अव्वल से कायम है. 
तुम पिद्दी? क्या पिद्दी का शोरबा? उसे कमाल तक क्या पहुंचाओगे ? 
हाँ उसकी मिटटी ज़रूर पिलीद किए हुए हो . 
उसकी मिटटी क्या पिलीद कर पाओगे ? 
हाँ मुसलमानों को पामाल ज़रूर किए हुए हो.

''वह ऐसा है कि उसने अपने रसूल को हिदायत और सच्चा दीन देकर भेजा है ताकि इसको तमाम दीनो पर ग़ालिब कर दे, गो कि मुशरिक कितने भी नाख़ुश हों.''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (३३)

ख़ुदाए बरतर? खालिक़-ए- कायनात? अगर कोई है तो निज़ाम ए कायनात की निज़ामत को छोड़ कर अरब के मुट्ठी भर क़बीलाई बन्दों की नाराज़ी और रज़ामंदी को देख रहा है. अफ़सोस कि लाल बुझक्कड़ी माहौल में कोई चतुर मुखिया पैदा हुवा था और वह ऐसा चतुर था कि उसकी बोई हुई घास हम आज तक चर रहे हैं.

''ऐ इमान वालो! तुम लोगो को क्या हुवा? जब तुम से कहा जाता है अल्लाह की राह में (जेहाद के लिए) निकलो, तो तुम ज़मीन को लगे हो जाते हो. क्या तुम ने आख़िरत की एवज़ दुनयावी ज़िन्दगी पर क़नाअत कर ली है? सो दुनयावी ज़िन्दगी का फ़ायदा बहुत क़लील है, अगर तुम न निकले तो वह तुम को बहुत सख़्त सज़ा देगा और तुम्हारे बदले दूसरी क़ौम को पैदा कर देगा. और तुम अल्लाह को कुछ ज़रर नहीं पहूंचा सकते और अल्लाह को हर चीज़ पर पूरी पूरी क़ुदरत है.''
सूरह तौबः -9 पारा-10 आयत (३८-३९)

मुहम्मद क़ुरआनी अल्लाह बन कर अपने पर ईमान लाए मुसलमान बन्दों को पैग़ाम ए तशद्दद दे रहे हैं. इन्हीं के एहकामात भारतीय मदरसों में आज भी पढ़ाए जाते हैं वह भी सरकारी मदद से. जब बच्चा जिज्ञासु होकर मोलवी साहब से पूछता है कि हमारे सल्लल्लाहो अलैहे वालेही वसल्लम किस के साथ जंग करने के लिए फ़रमा रहे हैं? तो जवाब होता है काफ़िरों के साथ. बच्चा पूछता है यह काफ़िर कौन लोग होते हैं तो मोलवी शरारत से मुस्कुरा कर कहता है बड़े होकर सब समझ जाओगे. 
बच्चा इसी तलब में बड़ा होता है 
कि काफ़िर कौन होते हैं? 
कुफ्र क्या है? 
बड़ा होते होते पूरी तरह से उस पर जब यह भावुक यक़ीन ईमान बन कर ग़ालिब हो लाता है तो उसकी तलब उसे तालिबान बना देती है.

अफ़सोस का मुक़ाम यह है कि देश में तालिबानी मदरसे ख़ुद हमारी सरकारें क़ायम करके चला रही हैं. हर एक को अल्प संख्यक वोट चाहिए, क्यूंकि इसके दम से ही बहु संख्यक वोट का दारो मदार है, अल्प संख्यक मुस्लिम समाज पर सिर्फ़ मज़हबी जूनून का भूत ग़ालिब है जिसके चलते वह पीछे हैं, अनपढ़ हैं, गरीब है, 
बस. 
मगर बहु संख्यक हिदू समाज पर धार्मिक नशे का भूत ऐसा सवार है कि शराब, जुवा, अफ़ीम. भाँग, चरस, गाँजा, कई अमानवीय, असभ्य नागा साधू जैसी नग्नता उसकी सभ्यता और धर्म का अंग बन चुके हैं. समाज सुधार का ढोल पीटने वाले मीडिया के नए अवतार केवल नाम नमूद की चाह रखते हैं अन्दर से पैसे की भूख उनको भी है. जम्हूरियत भारत के लिए इक्कीसवीं सदी में भी अभिशोप है. ज़मीर फ़रोश हर पार्टी के नेता किसी इंक़लाबी तलवार के इंतज़ार में हैं. 
न जाने कब कोई माओत्ज़े तुंग भारत में अवतरित होगा.

अल्लाह बने मुहम्मद कहते हैं ऐ ईमान वाले गधो! 
मैंने हुक्म दिया कि जेहाद के लिए खड़े हो जाओ , 
तुन ने सुना  नहीं? 
अभी भी ज़मीन से पीठ लगाए लेटे हुए हो? 
क्या तुम्हें मेरे क़बीले कुरैश के मुस्तक़बिल की कोई परवाह नहीं? 
गोकि मेरी नस्ल चुन चुन कर मार दी जायगी, 
मेरा तुख़्म भी बाक़ी नहीं बचेगा, 
मैं जनता हूँ कि मेरी बद आमालियों की सज़ा क़ुदरत मुझे देगी 
मगर मैं क्या करूँ अपनी फ़ितरत का ग़ुलाम हूँ. 
मैं फिर भी कहता हूँ क़ुरैशयों के भले के लिए लड़ो 
वर्ना अल्लाह कोई क़बीला,कोई क़ौम ए दीगर उन पर मुसल्लत कर देगा क्यूंकि वह बड़ी क़ुदरत वाला है. 
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                                        जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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