Monday 30 April 2018

Soorah yusuf 12 Q 2

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह यूसुफ़ -१२

(क़िस्त -2)

पिछली क़िस्त में मैंने कहा था कि यूसुफ़ की तौरेती कहानी आपको सुनाऊंगा जिसे मैं मुल्तवी करता हूँ कि यह बात मेरे मुहिम में नहीं आती. इतना ज़रूर बतलाता चलूँ कि 
मुहम्मद ने तौरेत की हर बात को ऐतिहासिक घटना के रूप में तो लिया है मगर उसमें अपनी बात क़ायम करने के लिए रद्दो बदल कर दिया है तौरेत में यूसुफ़ हसीन इन्सान नहीं बल्कि ज़हीन तरीन शख़्स है. 
उसने सात सालों में इतना ग़ल्ला इकठ्ठा कर लिया था कि अगले सात क़हत साली के सालों में पूरे मिस्र के किसानो को मजबूर कर दया था कि दाने के एवाज़ में बादशाह के पास अपनी ज़मीनें गिरवीं कर दें. 
ज़मीन बादशाह की हुई और उसका मालिक मज़दूरी पर रिआया बन कर उस पर काम करने लगी . 
कुल पैदावार का १/५ लगान सरकार को मिलने लगा. 
यूसुफ़ का यह तरीक़ा आलम गीर बन गया जो आज तक कहीं कहीं रायज है. 
मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - - 

''ये क़िस्सा ग़ैब की ख़बरों में से है जो हम वाहिय के ज़रीए से आप को बतलाते हैं. - - - और अक्सर लोग ईमान नहीं लाते गो आप का कैसा भी जी चाह रहा हो, और आप इनसे इस पर कुछ मावज़ा तो चाहते नहीं, यह क़ुरआन तो सारे जहान वालों के लिए सिर्फ़ नसीहत है."
सूरह यूसुफ़ 13  पारा 13 आयत (१०२-४)

मैंने आप को बतलाया था कि यूसुफ़ कि कहानी अरब दुन्या कि मशहूर तरीन वाक़ेआ है जिसे बयान करने के बाद झूठे मुहम्मद फिर अपने झूट को दोहरा रहे है कि ये ग़ैब कि ख़बर है जो इन्हें वाहिय के ज़रीए मिली है. 
मुसलमानों! 
मेरे भोले भाले भाइयो!! 
क्या तुम्हें ज़रा भी अपनी अक़्ल  नहीं कि ऐसे क़ुरआन को सर से उतार कर ज़मीन पर फेंको. 
सिड़ी सौदाई की ख़्वाहिशे-पैग़म्बरी की इन्तहा देखो कि ज़माने के दिखावे के लिए अपने आप में ग़म के मारे गले जा रहे हैं, अपने जी की चाहत में तड़प रहे हैं, जेहादी रसूल. क़ुरआन सारे ज़माने को एक भी कारामद नुस्ख़ा नहीं देता, बस इसका गुणगान बज़ुबान ए ख़ुद है.

''और बहुत सी निशानियाँ आसमानों और ज़मीन पर जहाँ उनका गुज़र होता रहता है और वह उनकी तरफ़ तवज्जे नहीं देते हैं और अक्सर लोग जो ख़ुदा को मानते भी हैं तो इस तरह के शिर्क करते जाते हैं तो क्या फिर इस बात से मुतमईन हुए हैं कि इन पर ख़ुदा के अज़ाब का कोई आफ़त आ पड़े जो इनको मुहीत हो जावे या उन पर अचानक क़यामत आ जावे और उनको ख़बर भी न हो.''
सूरह यूसुफ़ 13  पारा 13 आयत (१०५-१०७)

गंवार चरवाहा बग़ैर कुछ सोचे समझे  मुँह से बात निकालता है जिसको यह हराम ज़ादे ओलिमा कुछ नशा आवर अफ़ीम मिला के कलामे-इलाही बना कर आप को बेचते हैं. 
अब सोचिए कि आसमानों पर वह भी उस ज़माने में आप अवाम का गुज़र कैसे होता रहा होगा ?
या इन मुल्लाओं का आज भी आसमानों पर जाने की तौफ़ीक़ कहाँ , साइंस दानों के सिवा ? 
रह गई ज़मीन की बात तो इस पर अरब दुन्या के लड़ाके यूसुफ़ से लेकर मूसा तक हज़ारो बस्तियों को यूँ तबाह करते थे कि वह ज़मीन कि निशानयाँ बन जाती थीं. 
(पढ़ें तौरेत मूसा काल)

मुहम्मद हज़रते-इन्सान को कभी हालाते इत्मीनान में देखना या रहने देना पसंद नहीं करते थे. 
उनकी बुरी ख़सलत थी कि फ़र्द के ज़ातयात में दख़्ल अंदाज़ी जिसकी पैरवी इस ज़माने भी उल्लू के पट्ठे तबलीग़ी जमाअत वाले जोहला, तालीम याफ़्ता हल्के में, लोगों को जेहालत की बातें समझाने जाते है.
मुहम्मद की एक ख़ू शिर्क है कि जो उनके सर में जूँ की तरह खुजली किया करती है. शिर्क यानी अल्लाह के साथ किसी को शरीक करना. इसमें भी मुहम्मद की चाल है कि सिर्फ़ उनको शरीक करो.जेहादों की मिली माले-ग़नीमत,तलवारों के साए में रचे इस्लामी क़ानून और हरामी ओलिमा के ख़ून में दौड़ते नुत्फ़ा ए मशकूक ने एक बड़ी आबादी को रुसवा कर रखाहै. 

"आप फ़रमा दीजिए मेरा तरीक़ा है मैं ख़ुदा की तरफ़ इस तौर पर बुलाता हूँ कि मैं दलील पर क़ायम हूँ. मैं भी, मेरे साथ वाले भी और अल्लाह पाक है और मैं मुशरिकीन में से नहीं हूँ और हमने आप से पहले मुख़्तलिफ़ बस्ती वालों में जितने रसूल भेजे हैं सब आदमी थे. और यह लोग मुल्क में क्या चले फिरे नहीं कि देख लेते कि इन लोगों का कैसा अंजाम हुवा जो इन से पहले हो गुज़रे हैं और अल्बस्ता आलमे-आख़रत इनके लिए निहायत बहबूदी की चीज़ है जो एहतियात रखते हैं. सो क्या तुम इतना भी नहीं समझते. इन के क़िस्से में समझदार लोगों के लिए बड़ी इबरत है. ये क़ुरान कोई तराशी हुई बात तो है नहीं बल्कि इससे पहले जो किताबें हो चुकी हैं ये उनकी तस्दीक़ करने वाला है और हर ज़रूरी बात की तफ़सील करने वाला है और ईमान वालों के लिए ज़रीया हिदायत है और रहमत है."
सूरह यूसुफ़ 13  पारा 13 आयत (१०९)

तुम किसी दलील पर क़ायम नहीं हो, तुम तो दलील की शरह भी नहीं कर सकते, अलबत्ता अपने गढ़े हुए अल्लाह के दल्लाली पर क़ायम हो. 
तुम और तुम्हारे साथी यह आलिमान दीन मुशरिकीन में से नहीं, 
बल्कि मुज्रिमीन में से हो. 
आ गया है वक़्त कि तुम जवाब तलब किए जा रहे हो. 
तुम्हारे अल्लाह ने तुमसे पहले मूसा जैसे ज़ालिम जाबिर और दाऊद जैसे डाकू लुटेरे रसूल ही भेजे हैं, 
जिसे तुम अच्छी तरह समझते हो कि उनकी पैरवी ही तुम्हें कामयाब करेगी. 
मुहम्मद के पास एक यहूदी पेशावर शागिर्द रहा करता था जो तमाम तौरेती क़िस्से और वाक़िए इनको बतलाता था और यह उसे अपनी गंवारू ग्रामर की फूहड़ शाइरी में गढ़ कर बयान करते और उसे वह्यी कहते. 
कहते हैं अल्लाह की इस कहानी को दूसरी आसमानी किताबें भी तसदीक़ करती हैं. 
कैसा बेवकूफ़ बनाया है नादानों को और जो आज तक नादान बने हुए हैं. 


जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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