Wednesday 18 December 2019

इनका मानसिक पोषण


इनका मानसिक पोषण \

ऐसा लगता है कि शायद एशिया के मद्य से लेकर दक्षिण और पूर्व की ज़मीन का तक़ाज़ा है कि इस पर जन्मा मानव बग़ैर भगवान् ख़ुदा अल्लाह या किसी रूहानी ताक़त की कल्पना के रह ही नहीं सकता.  
इनकी ज़ेहनी ग़िज़ा के लिए कम अज़ कम एक अदद महा शक्ति, एकेश्वर, वाहिद ए मुतलक़, ख़ालिक़ ए कुल, सर्व सृष्टा या सुप्रीम पावर चाहिए ही, 
पहले जाय नमाज़ चाहिए, फिर दस्तर ख्वान. पहले मंदिर मस्जिद फिर घर की छत. 
इनको पहले परम पूज्य चाहिए , वह इनके जैसा ही इंसानी सोच रखता हो 
या कोई जानवर पेड़ पहाड़ दरिया हत्ताकि पत्थर की मूर्ति हो या फिर हवा की मूर्ति निरंकार या अल्लाह और ख़ुदा बाप.  
कोई न कोई मिज़ाजी ख़ुदा या फिर आफ़ाक़ी ख़ुदा तो चाहिए ही वर्ना 
इनका सांस लेना दूभर हो जाएगा .
वह अनेश्वर वादी मानव को पशु मानते हैं और मुल्हिद, 
जो सुकर्मों और कुकर्मों में कोई अंतर नहीं समझता. 
मैं कभी दीर्घ अतीत में जाता हूँ और वक़्त की तलाश करता हूँ तो हिन्दू मिथक ब्रहमा विष्णु महेश का कल्पित महा काल ढाई अरब साल नज़रों में घूम जाता है 
कि इस काल में ब्रम्ह्मा अपने शरीर से कायनात को वजूद में लाते हैं , 
विष्णु सृष्टी को चलते हैं और फिर महेश इसका विनाश कर देते हैं. 
इस तरह ढाई अरब साल का एक महाकाल समाप्त होता है 
और यह महा काल समय चक्र में चलता ही रहता है. 
इसके बाद यहूदीयत तख़य्युल की बुन्याद है जिस पर दुन्या की तीनों क़ौमें की यकसाँ राय थोड़े बहुत इख्तेलाफ़ के साथ क़ायम है. 
इनकी राय है कि दुन्या सिर्फ़ छः सात हज़ार साल पहले वजूद में आई. 
तमाम कायनात और मख़लूक़ छः दिन में ख़ुदा ने पैदा किया. 
इनकी यह सोच बहुत ठिंगनी और हास्य स्पद है क्योकि दस्यों हज़ार साल की पुरानी इंसानी तहज़ीब आज साइन्स दान तलाश कर चुके हैं और लाखों साल पहले के इंसानी और हैवानी कंकाल तलाशे जा चुके हैं. 
पहला आदमी आदम को क़ायम करने के लिए दुन्या की संरचना यहूदियों की कोरी कल्पना हैं जिसे ईसाइयों और मुसलमानो ने मुफ़्त पा लिया है. 
अब बचती है एक सूरत जिसे डरबन थ्योरी कहा जाता है 
जिसमे पहली बार अक़्ल की दख़्ल  है. उसका ख़याल है कि इंसान का वजूद भी तमाम मख़लूक़ की तरह  ही पानी से हुवा  है 
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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