Sunday 22 December 2019

नील गाय


नील गाय 

 किसानों की ज्वलंत समस्या पहली बार जोर शोर से मंज़र ए आप पर आई है. 
सूखा और बाढ़ पर तो इंसान का अभी तक कोई बस नहीं रहा मगर जिन पर बस है, वह धर्म और फ़िलासफ़ी के ताने बाने में फंसे हुए हैं.
नील गाय का आतंक मैंने अपने आँखों से देखा हुवा है, 
देख कर ख़ून के आंसू बहने लगे. 
सरकार ने शूटरों के ज़रिए नील गायों की सफ़ाई का काम जो शुरू किया है, 
वह फ़ौरी हल है, इसके मुश्तकिल हल बहुत से हैं. 
जैसे भारत के मांस एक्सपोर्टर गाय, बैल, भैंस और अन्य जानवरों का मांस एक्सपोर्ट करते हैं, वैसे ही नील गायों को उनके हवाले कर दिया जाए . 
अरबी नाम रख कर 85% इसके हिन्दू एक्सपोर्टर हैं, 
भग़ुवा ब्रिगेड को इस पर कोई एतराज़ नहीं, 
वह तो ग़रीब ट्रक ड्राईवर और क्लीनर को नंगा कर के देखते हैं, 
फिर जानवरों की तरह उन्हें पीट पीट कर मार देते हैं 
और उनके सर पर अपने जूते रख कर ISIS के विजई की तरह फोटो खिंचवाते हैं, 
उन्हें कोई डर नहीं कि सरकारें उन्हें इसकी छूट देती हैं.
इन ग़रीबों के बाल बच्चे घर में इनके मुंतज़िर रहते हैं कि 
अब्बू रात को कुछ खाने ला रहे होंगे.
हमारे किसानों का दुर्भाग्य है कि वह भी इन्हीं नील गायों की तरह ही शाकाहार हैं, वरना घर आई मुफ़्त की गिज़ा इनके लिए उपहार होता. 
बिना चर्बी का, रूखा गोश्त सेहत के लिए अच्छा होता है.
नील गायों के बचाव के पक्ष में जो धर्म भीरु नेता और दलीलों के दलाल आते हैं, उनको उनके एयर कंडीशन घरों से निकाल कर उन गावों में किसानी करने की सज़ा दी जाए, जिनकी फ़सलें रात भर में जानवर बर्बाद कर देते हैं. 
इंसान अशरफ़ुल मख़लूक़ात हैं, 
अगर तमाम जीव ख़तरे में आ जाएं तो पहले इंसान को बचाना चाहिए, 
क्योंकि इंसान ही तमाम प्रजातियों को बचा रखने की सलाहियत रखता है. 
जानवरों की प्रजातियां एक दूसरे को ख़त्म करने के जतन में रहती हैं.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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