Wednesday 4 December 2019

''शरीफ़ मुहम्मद इब्न ए इब्राहीम मुग़ीरा जअफ़ी बुख़ारी''



''शरीफ़ मुहम्मद इब्न ए इब्राहीम मुग़ीरा जअफ़ी बुख़ारी'' 
  
अल्लाह के मुँह से कहलाई गई मुहम्मद की बातें क़ुरआन जानी जाती हैं 
और मुहम्मद के क़ौल और कथन हदीसें कहलाती हैं. 
मुहम्मद की ज़िंदगी में ही मिलावटी हदीसें इतनी हो गई थीं कि 
उनको मुसलसल बोलते रहने के लिए हुज़ूर को सैकड़ों सालों की ज़िंदगी चाहिए थी, ग़रज़ उनकी मौत के बाद हदीसों पर पाबन्दी लगा दी गई थी, 
उनके हवाले से बात करने वालों ख़तिर कोड़ों से होती थी. 
दो सौ साल बाद बुख़ारा में एक नव मुस्लिम मूर्ति पूजक  का पोता 
इस भूली बिसरी बातों को फ़िर कलम बंद करता है, 
उसका नाम था 
''शरीफ़ मुहम्मद इब्न ए इब्राहीम मुग़ीरा जअफ़ी बुख़ारी'' 
 हदीसी मालूमात और वाक़िए की सच्चाई को ईमान दारी से उजागर किया है, 
इन्हें उर्फ़ ए आम में इमाम बुख़ारी के नाम से इस्लामी दुन्या में जाना जाता है, 
जिसने दर पर्दा इस्लाम की चूलें हिला कर रख दिया. 
इसने मुहम्मद की तमाम ख़सलतें, झूट, मक्र, ज़ुल्म, ना इंसाफी, 
बे ईमानी और अय्याशियाँ खोल खोल कर बयान कीं हैं.  
इसके साथ ही मुस्लिम सहीह हदीस को मुस्तनद माना जाता है.
 इन दोनों के मुसन्निफ़ हम जमाअत थे. 
इसके बाद की हदीसें ज़ईफ़ मानी जाती हैं.  
इमाम बुख़ारी ने किया है बहुत अज़ीम कारनामा 
जिसे इस्लाम के ज़ुल्म के ख़िलाफ़ ''इंतक़ाम-ऐ-जारिया'' कहा जा सकता है. 
अंधे, बहरे और गूंगे मुसलमान उसकी हिकमत-ए-अमली को नहीं समझ पाएँगे, 
वह तो ख़त्म क़ुरआन की तर्ज़ पर ख़त्म बुख़ारी शरीफ़ 
के कोर्स बच्चों को करा के इंसानी जिंदगियों से खिलवाड़ कर रहे हैं, 
इस्लामी कुत्ते, ओलिमा. लिखते हैं कि इमाम बुख़ारी ने छः लाख हदीसों पर शोध किया और तीन लाख हदीसें कंठस्त कीं, इतना ही नहीं 
तीन तहज्जुद (रात की नमाज़) की रातों में एक क़ुरआन ख़त्म कर लिया करते थे और इफ़्तार से पहले एक कुरआन. 
हर हदीस लिखने से पहले दो रकअत नमाज़ पढ़ते.. 
उनके मरने के बाद पाई गईं सिर्फ़ 2155 हदीसें मुनासिब 
और लगभग 6000 नामुनासिब.. 
बुख़ारी लिखता है मुहम्मद के पास कुछ देहाती आए और उनसे पेट की बीमारी की शिकायत की. हुक्म हुआ कि इनको हमारे ऊंटों के बाड़े में छोड़ दो, वहां यह ऊंटों का दूध और मूत पीकर ठीक हो जाएँगे.
(ग़ौर करें कि बुख़ारी ने मुहम्मदी हुक्म से पेशाब पीना जायज़ क़रार देने का इशारा किया है, जबकि किसी भी पेशाब की एक बूंद से तन पर पड़ा हुवा कपड़ा नजिस हो जाता है.) 
कुछ दिनों बाद देहाती बाड़े के रखवाले को क़त्ल करके ऊंटों को लेकर फ़रार हो गए जिनको कि इस्लामी सिपाहियों ने जा धरा. 
उनको सज़ा मुहम्मद ने इस तरह दी कि 
सब से पहले उनके बाजू कटवाए, 
फिर टागें कटवाई, 
उसके बाद आँखों में गर्म शीशा पिलवाया 
बाद में उन्हें ग़ार ए हरा में फिकवा दिया 
जहाँ प्यास की शिद्दत लिए वह तड़प तड़प कर मर गए.
(बुख़ारी170) (सही मुस्लिम - - - किताबुल क़सामत)
तो इस क़दर ज़ालिम थे मुहम्मद जिनको ओलिमा मोहसिन ए इंसानियत लिखते हैं.
और बुख़ारी मुहम्मद की हक़ीक़त बयान करता है.
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जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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