Monday 30 December 2019

दूसरों को जगाएँ


दूसरों को जगाएँ

दोसतो !
कल मैंने अपना परिचय फेस बुक पर डाल दिया था जिसे बर्षों पहले कभी मैंने कलम बंद किया था. आप लोगो के जज़्बात ने मेरी आँखें नम कर दीं. मै आभार कैसे गिनाऊँ, शब्द नहीं मिल पा रहे है.
आप के ख़ुलूस और भावनाओं में ज्यादा नाम मुझे हिन्दू हज़रात के दिखे, 
एक मुस्लिम नाम भी देखा. लिखते हैं - - - 
"अच्छी जीवनी हे आपकी.. अफ़सोस इस उम्र में आपकी औलाद आपके साथ नही है.. उन्हें माँ के कदमो में जन्नत और बाप जन्नत का दरवाजा वाला मज़हबी कॉन्सेट समझाया होता तो आज वे अपनी जन्नत के साथ होते बजाय , uk और अमेरिकन कम्पनी की सेवा के वाल्दैन की खिदमत कर रहे होते." 
इनकी तहरीर बतला रही है कि मुस्लिम किस क़दर मज़हबी अफ़ीम को पिए हुए हैं. इनका मज़हबी कांसेप्ट देखिए कि 
इंसान को मज़हब किस दर्जा स्वार्थी बनाता है, 
उनका मतलब यह है कि मैं अपनी खिदमत कराने के लिए बच्चों की तरक्की रोके रहता, इसमें बच्चों का भला भी था कि 
वह वालदैन के पाँव तले दबी मिलने वाली जन्नत से महरूम हैं.
आगे पूछते हैं कि - - -
"क्या आपके बच्चे भी आपके अक़ाइद से इत्तेफाक रखते हे??"
इनको डर और मलाल है कि कही उम्मत ए मुहम्मदी (मुसलमानों) में दस पांच कम तो नहीं हो गए. 
इनके अन्दर इतनी गहरी मज़हबी जड़ें पेवस्त हैं. 
यह ISIS के ज़ुल्म से तंग हो कर डूबते मरते योरोपीय देश के भले मानुसों की शरण में पहुँच तो जाते है, मगर दूसरे दिन अपनी नमाज़ों की जमात खड़ी कर लेते हैं. 
इनके ख़मीर में है कि हर हाल  में दूसरों को मुसलमान बनाओ. 
यह सीधे सादे लोग मुजरिम नहीं, यह नादान हैं, मुल्लाओं के शिकार हैं.
मैं किसी अल्लाह से नहीं डरता, डरता हूँ तो सिर्फ़ झूट से.
मैं दोस्तों को आज बतलाना चाहूँगा कि मज़हब को त्यागने का फ़ायदा 
मुझे यह है कि मैं आज भार मुक्त हूँ. 
सच्चाई मेरा धर्म, मेहनत की रोटी है मेरा ईमान 
और नस्लों की तालीम मेरी ज़िन्दगी का मंज़िल.
आज मेरी दूसरी नस्लों में एक स्वेटज़र लैंड में इल्म हासिल कर रहा है 
तो दूसरी मास्को में स्पेस साइंस (आंतरिक्ष विज्ञान) की तालीम ले रही है. 
मैंने अपने बच्चो से कहा था कि तालीम के लिए अगर मुझे बेच देने की 
नौबत आ जाए तो मुझे बेच देना.
दोसतो मैं कुछ ज्यादा बोल गया हूँ ? 
तो मुझे मुआफ़ का देना .
आप भी अगर सोए हुए हैं तो जागें .
और दूसरों को जगाएँ.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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