Saturday 7 December 2019

फ़ेस बुक पर आज की मेरी पोस्ट जन्मोत्सव


फ़ेस बुक पर आज की मेरी पोस्ट 

जन्मोत्सव 

दोस्तो!
रोते और गाते हुए, झूझते और मुस्कुराते हुए, 
आज मैं 75 साल का हो गया हूँ.
हैरत में हूँ कि मैंने इतनी लम्बी उम्र पाई है. 
क्या बात है, मैं आज बहुत खुश हूँ. 
मुझे बधाई दो. 
मैं ने कभी भी जन्म दिन नहीं मनाया दूसरे लोग ख़्वाह मख़्वाह बधाई देते हैं, 
फ़ेस बुक की तरह.
मैं अपने बारे आज कुछ ख़ुलासा करना चाहता हूँ.

ब्लॉग की दुन्या में मैं पिछले दस सालों से 
"जीम मोमिन निसारुल-ईमान" के नाम से लिख रहा हूँ. 
शब्द मोमिन मुझे बहुत पसंद है, 
इससे मुक़द्दस और पवित्र शै मेरी ज़िंदगी में कुछ भी नहीं. 
मोमिन का मतलब होता है फ़ितरी सच,(लौकिक सत्य) 
इसका कठोरता को ईमानदारी से निर्वाह करने वाला मोमिन होता है, 
 अलौकिक सत्य इसके लिए मज़ाक़ मात्र होते हैं . 
इस्लाम ने मोमिन को अग़वा कर रखा 
और इसके साथ मुसलसल बलात्कार करता चला आ रहा है. 
ईमान से बना शब्द कभी इस्लाम हो ही सकता. 
इसलाम तो सरापा झूट और मसलेहत का दूसरा नाम है. 
जीम यानी जुनैद मेरे नाम को दर्शाता है जोकि मेरे नाना ने रखा था, 
निसरुल-ईमान (ईमान पर न्योछावर) 
और निसार मेरे नाना का नाम भी था जिन्हों ने बहुत कुछ वैचारिक धरोहर मुझे दिया. ब्लॉग प मेरी तहरीर क़रीब दो लाख बर पढ़ी गई और फेस बुक पर भी दो लाख बार. 

पौने सौ साला ज़िंदगी पाई, एक बार जन्म दिन मानने का मौक़ा तो है न, 
शायद फिर न मिले.
मेरा पैग़ाम है कि यह जीवन जो हमें मिला है, 
बड़ा क़ीमती है 
और ये दुन्या बहुत ही खूब सूरत. 
हर इंसान इसका सदुपयोग करे. 
हम उपमहाद्वीप के लोग इस दुन्या में बहुत पीछे हैं, 
बाक़ी लोग बहुत आगे निकल गए हैं. 
हम अरचनात्मक विषयों को ढो रहे हैं और जीवन की सच्ची खुशियों से वंचित हैं. 
यह कब तक चलेगा ? 
हम दरिन्दे बने हुए है, जंगल में चरिन्दों और परिंदों को दौडाए हुए हैं, 
दोनों थके हुए बदहाल, ज़ालिम और मज़लूम की तरह. 
आओ हम जोकि मानव मात्र हैं, मिलकर नए संविधान की रचना करें, 
इतिहास हमारा अतीत है, मरे हुए लोगों की क़ब्र गाह, 
वर्तमान को इस पर सर्फ़ न करें, 
भविष्य की सोचें जो हमारे बच्चों का युग होगा, 
क्या हम अपने बच्चों को यही क़ब्र गाहें समर्पित करेगे ? 
धूर्त लोग दौलत बटोरने में लगे हैं और हम मूर्ख उनका गुणगान कर रहे हैं. 
हम तथा कथित माताओ के पुत्र नहीं, 
हम सिर्फ़ धरती माता की संतानें हैं. 
हर इंसान हमारा भाई है. 
क्या किसी को दुखी करके तुम सुखी रह सकते हो ? 
अगर रह सकते हो तो तुम अपनी अंतर आत्मा एक कीड़े नुमा जीव मात्र हो, 
इंसान नहीं. 
अगर दुन्या के किसी भू भाग में काल पड़ा है तो हमारा पेट भर खाना हराम होना चाहिए, इतनी संवेदना आएगी तब हम इंसान कहलाने लायक़ होगे. 
वहां हिटलर, सद्दाम, बगदादी पैदा हो रहे हैं, होने दो, 
तुम्हारे यहाँ यह पैदा नहीं होने चाहिएँ. यह देखो बस.
तुम विश्व गुरु न बनो, न विश्व गुरु कभी थे, न होने की ज़रुरत है. 
तुम हज़ारों सालों के ग़ुलाम थे, यह तुम्हारा इतिहास बतलाता है. 
नई दुन्या के आईने में अपनी सूरत देखो, 
तुम मंदिर और मस्जिद के मलबे चाट रहे हो, 
वह भी इक्कीसवीं सदी में.    
हम नवीन मानव मूल्यों को लेकर इस धरती पर एक नया जन्म लें,
और दुन्या को मानवता का पैग़ाम दें. 
 ***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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