Monday 23 December 2019

अदना , औसत और तवासुत


अदना , औसत और तवासुत 

मुहम्मदी अल्लाह अपनी क़ुरआनी आयातों की ख़ामियों की जानकारी देता है 
कि इन में कुछ साफ़ साफ़ हैं और यही क़ुरआन की धुरी हैं 
और कुछ मशकूक हैं जिनको शर पसंद पकड़ लेते हैं. 
इस बात की वज़ाहत आलिमान क़ुरआन यूँ करते हैं 
कि क़ुरआन में तीन तरह की आयतें हैं---
1- अदना (जो साफ़ साफ़ मानी रखती हैं)
2- औसत (जो अधूरा मतलब रखती हैं)
3-तवास्सुत (जो पढने वाले की समझ में न आए 
और जिसको अल्लाह ही बेहतर समझे.)
सवाल उठता है कि एक तरफ़ दावा है हिकमत और हिदायते-नेक से भरी हुई 
क़ुरआन अल्लाह की अजीमुश्शान किताब है 
और दूसरी तरफ़ तवस्सुत और औसत की मजबूरी ? 
अल्लाह की मुज़बज़ब बातें, एहकामे-इलाही में तज़ाद, 
हुरूफ़े मुक़त्तेआत का इस्तेमाल जो किसी मदारी के छू मंतर की तरह लगते हैं. 
दर अस्ल क़ुरआन कुछ भी नहीं, मुहम्मद के वजदानी कैफ़ियत में बके गए 
बड़ का एक मज्मूआ है. इन में ही बाज़ बातें ताजाऊज़ करके 
बे मानी हो गईं तो उनको मुश्तबाहुल मुराद कह कर 
मुहम्मद ने अल्लाह के सर हांडी फोड़ दिया है.
***
जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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