Monday 2 December 2019

कहफ़ में फंसे मुसलमान


कहफ़ में फंसे मुसलमान          
  
कहफ़ के मानी ग़ुफा के होते हैं. 
क़ुरआन में मुहम्मद ने सिकंदर कालीन यूनानी घटना की योरपियन पौराणिक कथा को अपने ही अंदाज़ में इस्लामी साज़ ओ सामान के साथ गाया है. 
चार लोग किसी मुल्क की सरहद पार कर रहे थे कि इनको ख़बर हुई कि इन्हें गिरफ़्तार कर लिया जाएगा. ये लोग डर के मारे एक ग़ार में छुप गए, साथ में इनके एक कुत्ता भी था. 
कुत्ता बग़रज़ हिफ़ाज़त ग़ार के मुँह पर बैठ गया. 
रात हो गई, वह लोग ग़ार में ही सो गए, सुब्ह हुई तो उन्हें भूख लगी, 
वह बचते बचाते बाज़ार गए कि कुछ खाना पीना ले आएं. 
बाज़ार में सामाने-ख़ुर्दनी ख़रीद कर जब उन्होंने उसका भुगतान किया तो 
दूकान दार उनका मुँह तकने लगा कि 
ज़माना ए क़दीम का सिक्का यह कैसे दे रहे है? 
इस ख़बर से बाज़ार में हल चल मच गई. 
पता चला कि यह तो तीन सौ साल पुराना सिक्का है, 
यह लोग इसे अब चला रहे हैं? 
गरज़ राज़ खुला कि यह तीन सौ साल तक ग़ार में सोते रहे. 
कहानी तो कहानी ही होती है, यानी 'फिक्शन' 
कहानी में अस्ल किरदार कुत्ते का है जो इतने बरसों तक 
वफ़ा दारी के साथ अपने मालिकों की हिफ़ाज़त करता रहा. 
इस पौराणिक कथा का मोरल कुत्ते की वफ़ादारी है.
 इस्लाम ने अरबी तहज़ीब ओ तमद्दुन, 
उसका इतिहास और उसकी विरासत का ख़ून करके दफ़्न कर दिया है, 
 नई इस्लामी तहज़ीब बदले में मुसलमानों को मिली,  
वह उनकी हालत पर अयाँ है 
मगर क़ुदरत की बख़्शी हुई सदाक़तें कैसे रूपोश हो सकती हैं?
 इस्लाम ने कुत्तों की क़द्र ओ क़ीमत ख़त्म करके 
उसे नजिस और नापाक क़रार दे दिया. 
मुहम्मद कुत्तों से शदीद नफ़रत करते थे, कई हदीसें इसकी गवाह हैं - - -
''मुहम्मद की ग्यारवीं बेग़म मैमूना कहती है कि एक रोज़ मुहम्मद पूरे दिन उदास रहे, 
कहा 'जिब्रील अलैहिस्सलाम ने वादा किया था कि आज वह हम से मिलने आ रहे हैं, मगर आए नहीं, 
ख़याल आया कि आज एक कुत्ते का बच्चा डेरे से निकला था, यह वजेह हो सकती है, 
वह उठे, फ़ौरन उस जगह को पानी छिड़क कर साफ़ और पाक किया, 
फ़रमाया कुत्ते की मौजूदगी और नजासत फरिश्तों को पसंद नहीं. 
सुबह उठे और हुक्म दे दिया कि तमाम कुत्तों को क़त्ल कर दिया जाए, 
जब कुत्ते मारे जाने लगे तो इस हुक्म का विरोध हुआ, 
तब कहा अच्छा छोटे बाग़ों के कुत्तों को मार दो, 
बड़ों को बागों की रखवाली के लिए रहने दो, 
फिर एहतेजाज हुवा कि कुत्ते तो हमारी इस तरह से हिफ़ाज़त करते हैं कि 
हम अपनी औरतों को उनके हमराह एक गाँव से दूसरे गाँव तक तनहा भेज देते हैं - - - 
तब कुछ सोचने के बाद कहा अच्छा उन कुत्तों को मार दो जिनकी आँखों पर दो काले धब्बे होते हैं, 
ऐसे कुत्तों में शैतानी अलामत होती है. 
(मुस्लिम- - - किताबुल लिबास ओ जीनत+ दीगर)
इस तरह पूरी क़ौम क़ुदरत की इस बेश बहा और प्यारी मख़लूक़ से महरूम हुई. 
वह मानते हैं कि जहाँ कुत्ते के रोएँ गिरते हैं वहां फ़रिश्ते नहीं आते. 
बाहरी दुन्या से कुत्ते की ख़ुशबू पाकर मुहम्मदी अल्लाह इतना मुतासिर हुवा कि कुत्ते को क़ुरआनी सूरह बना दिया, 
जिसको आज मुसलमान वज़ू करके अपनी नमाज़ों में वास्ते सवाब पढ़ते हैं, 
यहाँ तक कि वह कहते हैं, 
जानवरों में सिर्फ़ यही कुत्ता जन्नत नशीन हुवा है. 
अजीब ट्रेजडी है इस क़ौम के साथ पत्थर की मूर्तियाँ इसके लिए कुफ़्र हैं. 
तो वहीँ पत्थर असवद को चूमती है. 
अंध विश्वास को कोसती है 
मगर मुहम्मदी अल्लाह अंध विश्वास से शराबोर है.
***

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

1 comment:

  1. मैं ने एक बार हज यात्रा करने का फैसला किया तो मेरे दोस्त ने कहा कि ढाई लाख खर्च करके बुत को चूमने और पत्थर मारने से बेहतर है कि बिना कुछ खर्च किए मेरे मुंह पर तमांचा मार लो,मगर उन कुरैशियों की मदद न करो जो जापानी इंजीनियर की मदद से मक्का और मदीना को मॉडलिंग शहर बनाने के मनसूबे बना चुके है ।

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