Saturday 20 January 2018

Hindu Dharm Darshan-130- V-15



वेद दर्शन - - -    
       

 खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

हे मनुष्यों ! 
जिसने चंचल धरती को दृढ किया, क्रोधित पर्वतों को नियमित किया, विशाल आन्तरिक्ष को बनाया और आकाश को स्थिर किया, वही इंद्र है.
द्वतीय मंडल सूक्त 12-2 

वाह ! वाह !! वाह!!!
गोया गोया राजा इन्दर, मिनी अल्लाह मियाँ भी हुए. 
धन्य है पंडित जी.
*
हे मनुष्यों ! 
जो सोम रस निचोडने वाले यजमान, पुरोडाश पकाने वाले व्यक्ति, स्तुति रचना करने वाले एवं पढने वाले की रक्षा करता है. 
हमारा अन्न सोम एवं स्तोत्र जिसे बढ़ाने वाले हैं, हमारे इंद्र हैं. 
द्वतीय मंडल सूक्त 12-14 

पुरोहित जी मादक भंग को कूटने, पीसने, भिगोने और निचोड़ने वाले यजमान (मेज़बान) को और पुरोडाश (पकवान) बनाने वाले बावरची के उत्थान का भी ख़याल रखते हैं. 
उनके भले में ही सब का भला है.
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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