Wednesday 24 January 2018

Soorah Almayda -5 – Qist -1

मेरी तहरीर में - - -
क़ुरआन का अरबी से उर्दू तर्जुमा (ख़ालिस) मुसम्मी
''हकीमुल उम्मत हज़रत मौलाना अशरफ़ अली साहब थानवी''का है,
हदीसें सिर्फ ''बुख़ारी'' और ''मुस्लिम'' की नक्ल हैं,
और तबसरा ---- जीम. ''मोमिन'' का है।
नोट: क़ुरआन में (ब्रेकेट) में बयान किए गए अलफ़ाज़ बेईमान आलिमों के होते हैं,जो मफ़रूज़ा अल्लाह के उस्ताद और मददगार होते हैं और तफ़सीरें उनकी तिकड़म हैं और चूलें हैं.
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सूरह अलमायदा 5 - - -छटवाँ पारा 
(क़िस्त -1)

मैं वयस्कता से पहले ईमान का मतलब लेन देन के तक़ाज़ों को ही समझता था (और आज भी सिर्फ़ इसी को समझता हूँ) 
मगर इस्लामी समझ आने के बाद मालूम हुवा कि इस्लामी ईमान का अस्ल तो कुछ और ही है, 
वह है 'कलिमा ए शहादत', 
यानी अल्लाह और उसके रसूल पर ईमान रखना, 
और दो क़िस्म की क़समें,
क़स्म ए आम और क़स्म ए पुख्ता. 
इन बारीकियों को मौलाना जब समझ जाते है कि अल्लाह झूट को कितना दर गुज़र करता है, 
तो वह लेन देन की बेईमानी भरपूर करते हैं. 
मेरे एक दोस्त ने बतलाया कि उनके क़स्बे के एक मौलाना, मस्जिद के पेश इमाम, मदरसे के मुतवल्ली क़ुरआन के आलिम, बड़े मोलवी, 
साथ साथ ग्राम प्रधान, रहे. 
हज़रात ने क़स्बे की रंडी हशमत जान का खेत पटवारी को पटा कर जीम का नुक़ता बदलवा कर नीचे से ऊपर करा दिया जो जान की जगह ख़ान हो गया. हज़रात के वालिद मरहूम का नाम हशमत ख़ान था. 
विरासत हशमत ख़ान के बेटे, बड़े मोलवी साहब उमर ख़ान की हो गई.
हशमत रंडी की सिर्फ़ एक बेटी छम्मी थी (अभी जिंदा है), उसने बेटी को मोलवी के क़दमों पर लाकर डाल और कहा" मोलवी साहब इस से रंडी पेशा न कराऊँगी, इस की ज़िदगी इसी खेत के सहारे कट जाएगी, 
रहम कीजिए, अल्लाह का खौ़फ़ खाइए - - - " 
मगर मोलवी का दिल न पसीजा उसका ईमान कमज़ोर नहीं था, बहुत मज़बूत था. क़ुरआनी ईमान जो था. 
दो बेटे हैं, मेरे दोस्त बतलाते हैं दोनों डाक्टर है, 
और पोता कस्बे का चेयर मैन है. 
रंडी की और मदरसे की हड़पी हुई जायदादें सब उनके काम आरही हैं. 
यह है क़ुरआनी ईमान की बरकत.

मुसलामानों के इस ईमानी झांसे में हो सकता है ग़ैर मुस्लिम इन से ज़्यादा धोका खाते हों कि ईमान लफ्ज़ को इन से जाना जाता है.
अहद की बात आई तो तसुव्वुर क़ायम हुवा 
"प्राण जाए पर वचन न जाए"
 मगर अल्लाह तो अहद के नाम पर चौपायों के शिकार की बातें कर रहा है. 
ख़ैर, चलो शुक्र है दो पायों (यानी इंसानों) के शिकार से उसकी तवज्जो हटी हुई है.

मुहम्मदी अल्लाह कहता है - - -
"ऐ ईमान वालो! अहदों को पूरा करो. तुम्हारे लिए तमाम चौपाए जो पुरस्कार स्वरूप के हों, हलाल किए गए, मगर जिन का ज़िक्र आगे आता है, लेकिन शिकार हलाल मत समझना, जिस हालत में तुम अहराम (एक अरबी परिधान) में हो. बेशक अल्लाह जो चाहे हुक्म दे," 
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (1)

इस सूरह में शिकारयात पर अल्लाह का क़ीमती तबसरा ज़्यादा ही है गो कि आज ये फ़ुज़ूल की बातें हो गईं हैं मगर मुहम्मदी अल्लाह इतना दूर अंदेश होता तो हम भी यहूदियों की तरह दुनिया के बेताज बादशाह न होते. ख़ैर ख्वाबों में सही आक़बत में ऊपर जन्नतों के मालिक तो होंगे ही. 
मोहम्मद शिकार के तौर तरीक़े बतलाते हैं क्यूंकि उनके मूरिस ए आला इस्माईल इब्ने लौंडी हाज़रा(हैगर) के बेटे एक शिकारी ही थे जिनकी अलामाती मूर्तियाँ काबे की दीवारों में नक्श थीं, जिसे इस्लामी तूफ़ान ने तारीख़ी सच्चाइयों की हर धरोहर की तरह खुरच खुरच कर मिटा दिया. मगर क्या ख़ून में दौड़ती मौजों को भी इसलाम मिटा सका है ? 
खुद मुहम्मद के ख़ून में इस्माईल के ख़ून की मौज कुरआन में आयत बन कर बोल रही है. 
हिदुस्तानी मुल्ला की बेटी शादी के मौक़े पर तन पर लिपटे हुए सुर्ख़ लिबास का, क्या सफ़ेद इस्लामी लिबास का मुकाबला कर सका है? 
मुहम्मद कुरआन में कहते है बेशक अल्लाह जो चाहे हुक्म दे, 
यह उनकी ख़ुद सरी की इन्तहा है और उम्मत  की इंसानी सरों की पामाली की हद. एक सरकश अल्लाह बन कर बोले और लाखों बन्दे सर झुकाए लब बयक कहें,
 इस से बड़ा हादसा किसी क़ौम के साथ और क्या हो सकता है?

"तुम पर हराम किए गए हैं मुरदार, ख़ून और ख़िजीर (सुवर) का गोश्त और जो कि ग़ैर अल्लाह के नाम पर मारा गया हो और जो गला घुटने से मर जाए, जो किसी ज़र्ब से मर जाए या गिर कर मर जाए, जिसको कोई दरिंदा खाने लगे, लेलिन जिस को ज़बह कर डालो."
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (3) 

ज़रा जिंदगी की हक़ीक़तों में जाकर देखिए तो ये बातें बेवकूफ़ी की लगती हैं. आप की भूक कितनी है, हालात क्या हैं? हराम हलाल सब इन बातों पर मुनहसर करता है. 
किसी बादशाह ने मेहतरों को हलाल खो़र का लक़ब ठीक ही  दिया था, आज का सब से बड़ा हराम खोर रिशवत खाने वाला है. 
धर्म ओ मज़हब की कमाई खाने वाले भी खुद को हराम खो़र ही समझें.

"और अगर तुम बीमार हो, हालत ए सफ़र मे हो या तुम मे से कोई शख्स इस्तेंजे (शौच) से आया हो या तुम ने बीवियों से कुर्बत (संभोग) की हो, फिर तुम को पानी न मिले तो पाक ज़मीन से तैममुम (भभूति करण) करो यानी अपने चेहरों पर, हाथों पर हाथ फेर लिया करो."
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (6)

तैममुम भी क्या मज़ाक है मुसलमानों के मुँह पर, इसकी लोजिक कहीं से भी समझ में नहीं आती, सिवाए इसके की मुँह और हाथों पर धूल मल लेना, हो सकता है जहाँ मोलवी तैममुम कर रहा हो वहां कल किसी जानवर ने पेशाब किया हो? इस से बेहतर तो हवाई तैममुम था, जैसे हवाई अल्लाह मियां हैं. 
मगर इसलाम में पाकी की बड़ी अहमियत है. इस तरह पाकी हफ्तों और महीनों बर क़रार रह सकती है भले ही कपडे साफ़ी हो जाएँ और इन से बदबू आने लगे. 
इसके बर अक्स एक क़तरा पेशाब धुले कपडे में लग जाए तो मुसलमान नापाक हो जाता है, यहाँ तक कि अगर वोह कपडा वाशिंग मशीन में डाल दिया गया है तो उस के साथ के सभी कपडे नापाक हुए. नापाक कपडे की नजासत को बहते हुए पानी से इसलाम धोता है 
और जिस्म पर जमी हुई गंदगी को तैममुम से जमी रहने देता है. 
देखने में आता है कि यू पी में लोग मुसलामानों को सवारी में पास बिठाना पसंद नहीं करते.

"और किसी ख़ास क़ौम की अदावत तुम्हारे लिए बाइस न बन जाए कि तुम अदल (न्याय) न करो. अदल किया करो कि वो तक़वा (तपस्या) से करीब है."
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (8)

मुहम्मद कभी कभी मजबूरन जायज़ बात भी कर जाते है.

"अल्लाह लोगों से मुसलमान होने के बाद ही अच्छे कामों के बदले बेहतर आख़िरत के वादे करता है. बनी इस्राईल को उन के बारह सरदारों की पद प्रतिष्ठा की याद दिलाता है, जो कि यूसुफ़ के भाई और हज़रत इब्राहीम के पड़ पोते थे. इन से इस्लामी नमाजें और ज़कात अदा कराता है. 
मुहम्मद अपने मज़हबी कर्म कांड के साथ चौदह सौ साल पहले पैदा होते है और साढे तीन हज़ार साल पहले पैदा होने वाले यहूदियों से इस्लामी फ़राइज़ अदा कराते हैं, अपने ऊपर ईमान लाने की बातें करते हैं, 
गोया दीर्घ अतीत में दाख़िल होकर इस्लामी प्रचार करते हैं और यहूदियों के नबियों को मुसलमान बनाते हुए वर्तमान में आँखें खोलते हैं. 
अल्लाह इन से क़र्ज़ लेकर इनके गुनाह दूर करने की बात करता है. मुहम्मद को हर रोज़ कोई न कोई बुरी खबर मिलती रहती है कि कोई टुकडी इनकी समूह से कट गई है. अल्लाह इनको तसल्ली देता है. 
नव मुस्लिम अंसार ताने देने लग जाते हैं, 
हम तो अंसार ठहरे, उन को भी मुहम्मद क़यामत तक के लिए बैर और अदावत की वजेह से पुन्य के एक हिस्से से वंचित कर देते हैं. 
मुहम्मद अपनी किताब को एक नूर बतलाते है, और इसकी रौशनी में ही राह तलाश करने की हिदायत करते हैं. 
जी हाँ! किताब यही  जिसमें होई राह नज़र नहीं आती." 
सूरह अलमायदा 5 छटवाँ पारा-आयत (9-16)




जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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