Thursday 25 January 2018

Hindu Dharm Darshan-132 -V 16



वेद दर्शन - - -            
खेद  है  कि  यह  वेद  है  . . . 

जल धारण करने वाली नदियाँ आपस में मिलकर चारो ओर बह रही हैं एवं जल के स्वामी सागर को भोजन पहुँचती हैं, नीचे की ओर बहने वाले जलों का रास्ता एक सामान है, जिसे इंद्र ने प्राचीन काल में ये सब काम किए हैं, वह प्रशंशा के योग्य हैं.
द्वतीय मंडल सूक्त 13-2 

अर्थात विश्व की सारी नदियाँ राजा इन्दर की परिश्रम के परिणाम स्वरूप हैं. 
क्या हम अपने बच्चों को यह शिक्षा  और ज्ञान दे सकते है? 
योरोप के सभ्य समाज के लोग वेदों को पढ़कर भारतीय चिंतन को क्या दर्जा देंगे?
(ऋग्वेद / डा. गंगा सहाय शर्मा / संस्तृत साहित्य प्रकाशन नई दिल्ली )

जीम 'मोमिन' निसारुल-ईमान

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